दिल्ली बीमार होती है तो चिल्लाती बहुत है। डेंगू-चिकनगुनिया के बढ़ते मामले देख कर एक एंकर बोला कि महामारी है, दूसरा बोला कि फैल रही है, तीसरा बोला कि मर रहे हैं, चौथा बोला कि इलाज नहीं है, पांचवां अग्निधर्मा एंकर चीख कर बोला कि ‘आप कहां है?’ ‘आप’ मंत्री ने खिसिया कर जवाब में चिकनगुनिया पर अकादमिक बहस छेड़ दी कि चिकनगुनिया से मौत नहीं होती! चार दिन तक भाजपा ‘आप’ को कोसती रही। कांग्रेस ‘आप’ को कोसती रही और ‘आप’ भाजपा के ‘निगमों’ को कोसती रही। प्रवक्ता अपनी-अपनी पार्टी के लिए ‘ब्लेम गेम’ की फाइट मारते रहे। टाइम्स नाउ पर ‘आप’ की हमदर्द सबा नकवी और पत्रकार पद्मा राव की झड़प बताती रही कि लोग मरें या जीएं, लेकिन ‘पार्टी पर इल्जाम न आए’, जनता की जान भले जाए, ब्लेम गेम में विश्वविजय करके दिखलाए, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा! अफसोस कि मच्छरों को मारने वाले सारे आल आउट, सारे गुडनाइट और विज्ञापन वाले ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ फेल हो गए। इतने विज्ञापन, इतने मच्छर-मार और फिर भी मच्छर अमर!

ग्यारह साल बाद बिहार का ‘डॉन’ जमानत पर छूटा और सब चैनलों में लाइव होकर छा गया। चार सौ एसयूवीज का काफिला, साढ़े तीन सौ किलोमीटर का सफर तय कर, जब उसके स्वागत में सिवान तक आया तो सारे रास्ते चर्चित ‘कातिल’ को सुपर हीरो जैसा कवरेज मिला। उसकी बॉडी लैंग्वेज अपनी खबर का महत्त्व जानती थी। छूटते ही उसने बिहार के सीएम नीतीश को ‘परिस्थिति का सीएम’ बताया और लालू को अपना नेता कहा। चैनलों ने इसमें ‘महागंठन’ में ‘दो फाड़’ की संभावना देखी, सो सवाल करने लगे कि इतने दुर्नाम कातिल को जमानत कैसे मिली? सरकार ने कुछ क्यों नहीं किया?  सबसे अग्निधर्मा चैनल के सबसे धुंआधार एंकर ने जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक से ‘देश की ओर से’ सीधा सवाल किया कि क्या सरकार जमानत के खिलाफ अदालत जाएगी? अजय ने कहा कि जाएगी और अवश्य जाएगी!

लेकिन दो दिन बाद फोटोज में डॉन के संग दिखे शूटर और पत्रकार राजदेव के आरोपी ‘कातिल’ मोहम्मद कैफ उर्फ ‘बंटी’ पर एंकरों की नजर पड़ी और बंटी का सौभाग्य कि उसे मुंहमांगा मीडिया मिला। चैनल उससे उसकी शूटिंग-कला की बाबत पूछते तो वह कुछ इस तरह बोलता रहा, मानो उसने सवाल सुना ही नहीं है। गजब की मीडिया चतुराई दिखी उसमें कि जम के चैनलों का अपने पक्ष में उपयोग किया। रिपोर्टर एक बार भी उसे नहीं फंसा सके।  खबरों में कश्मीर की जगह कर्नाटक आ गया। आते ही एक्शन किया। चैनल दो दिन लाइव करते रहे। बसें धू-धू कर जलती रहीं। लोग आगजनी करते रहे। चैनल कर्नाटक-तमिल अस्मिता की फाइट खुल कर दिखाते रहे। राज्यों के बीच आवागमन बंद। एक दुलहन अपनी शादी के लिए तमिलनाडु की सीमा में चार किलोमीटर पैदल जाती दिखी। पानी पर राजनीति की रोटी खूब सिंकी।

चार दिन बाद तमिलनाडु ने प्रोटेस्ट किया। सारे चैनल चेन्नई का प्रोटेस्ट लाइव करते रहे। अदालत आदेश देती रहे, जिनको अस्मिता की दुकान चलानी है हर हाल में चलांएगे।
‘इंडिया टुडे’ का रिपोर्टर बताता रहा कि इस बार दस हजार गणपति विसर्जित किए जाने हैं। मुसलमान तक ‘लाल बाग चा बादशाह’ की पूजा में शामिल हुए हैं। एक हिंदी चैनल ने एक ऐसी गणेश प्रतिमा भी दिखाई, जिसके चरणों में एक चूहा एक थाल से कोई चीज बार-बार रखता जाता था। वायस ओवर इसे ‘चमत्कारी चूहा’ बताता था। न्यूज एक्स ने दिखाया कि गणेश विसर्जन के जलूस में ‘कपूरों’ ने पत्रकारों को एक के बाद एक तीन थप्पड़ मारे। ऋषिकपूर एक्शन में दिखे। चैनल ने क्रमश: थप्पड़ एक-दो-तीन ठीक उसी तरह दिखाए, जिस तरह फिल्मों की शूटिंग के वक्त ‘टेक वन टू थ्री’ दिखाए जाते हैं।  तीन ताल मात्रा सोलह बहर-ए-तबील वाली यूपी की नौटंकी में चाचा-भतीजे का रोल सुपर हिट रहा। एक से एक मजेदार डायलाग सुनाई पड़े। कॉमेडी ऐसी कि सब हंसते हुए लड़ते और लड़ते हुए हसंते दिखते। चाचा बोले कि चुनाव जीतना है। एकजुट रहना है। नेताजी सही हैं। सही करेंगे। चाचा खुश, भतीजा खुश और फाइट खुश कि नौटंकी की वजह से पार्टी खबर में तो आई, लेकिन राजनीतिक अटकलों के मारे चैनल चाचा-भतीजे की फेमिली फाइट को भी सीरियसली दिखाते रहे। पता नहीं, हमारे चैनल राजनीति के देसी मुहावरे कब समझेंगे?

नौटंकी के ऐन बीच में आजम खानजी ने अपना नगाड़ा बजाया कि यह सब ‘उसी’ का किया धारा है, जिसे आउटसाइडर कहा है अखिलेश ने। किसी का किसी ने नाम नहीं लिया, फिर वे क्यों सफाई दे रहे हैं यानी ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’!थर्ड पार्टी बने राहुल ने चोट की: अखिलेश की साइिकल पंक्चर हो गई थी। अब टायर बदल रहे हैं। सुन कर उनके श्रोता मस्त हुए। इसके जवाब में सपा के नेता रामगोपाल ने चोट की: जिनकी खटिया ही खड़ी हो गई हो उनका क्या? इस पर पत्रकार भी मस्त!फाइनल सीन नेताजी देंगे और नौटंकी का अंत करेंगे। तब तक देखते रहिए पारिवारिक मनोरंजन से भरपूर सैफई वाली नौटंकी कि चचा चाची से कह देना भतीजा… तड़तड़ धड़ाम! चैनलों में विचार भी कभी-कभी खबर बन जाते हैं। इतिहासकार रामचंद्र गुहा की नई किताब ‘डेमोक्रेसी ऐंड डिस्सेंट’ का दो चैनलों पर चैनलार्पण हुआ। इंडिया टुडे में करन थापर ने और तीन दिन बाद एनडीटीवी में बरखा दत्त ने गुहाजी से बातचीत की। दोनों चैनलों पर कुछ ‘गुहा-सूत्र’ लगभग एक ही तरह से उतरे जैसे कि अपना जनतंत्र फिफ्टी-फिफ्टी जनतंत्र है, अस्मिता की राजनीति से खतरा है, भाजपा इंटेलेक्चुअल विरोधी है, भाजपा में एक भी इंटेलेक्चुअल नहीं है, ‘बंच आफ थॉट’ संघ के लिए वही है, जो कम्युनिस्टों के लिए ‘मेनिफेस्टो’ है, उदारतावादी और वामंपथी भी असहिष्णु हंै, अपना जनतंत्र फिफ्टी-फिफ्टी जनतंत्र है…। लेकिन गुहा जी, हिंदी-कवि धूमिल ने तो सत्तर के दशक में ही कह दिया था कि ‘संसद ऐसी घानी है, जिसमें आधा तेल और आधा पानी है!’ तब आपने ‘फिफ्टी फिफ्टी’ कह कर नया क्या कह दिया गुहा साहब?