बीस बाई सात हर खबर चैनल पर गुजरात-गुजरात बजता रहता है।
एबीपी चैनल एक ओपिनियन पोल लेकर आया है और बता रहा कि भाजपा को पंचानबे से सतानबे सीटें मिल सकती हैं और कांग्रेस उसकी बराबरी कर सकती है।
पोल देख कर कांग्रेसी प्रवक्ता पुलकित हैं। भाजपा प्रवक्ताओं के चेहरों से चमक गायब हो गई है। पोल ने फूले हुए प्रवक्ताओं को पोला कर दिया है!
यह पोल का असर है या क्या कि अचानक कांग्रेसी नेता सेल्फ गोल मारने लगते हैं। एक नहीं, दो नहीं, चार-पांच गोल मारते दिखते हैं!
पहला गोल राहुल का ‘जनेऊ प्रदर्शन’ मारता है। दूसरा गोल मनीष तिवारी अपने उस ‘टेलीफोन कथन’ से मारते हैं, जिसमें वे शहजाद पूनावाला से कहते हैं कि कांग्रेस एक ‘प्रोप्राइटरशिप’ है। तीसरा गोल राहुल के अधयक्ष बनने की प्रक्रिया को लेकर मणिशंकर अय्यर का व्यर्थ का ‘औरंगजेब दर्शन’ मारता है, जिसे बार-बार उद्धृत करते मोदी को दिखा-दिखा कर चैनल एक गोल को सौ गोल बराबर बनाए देते हैं। मणि कहते ही रह जाते हैं कि उनकी बात को गलत तरीके से पेश किया गया है, लेकिन इस हल्ले में कौन सुनता है? चैनलों के लिए तो राहुल का चुनाव सिर्फ एक ‘ताजपोशी’ है या ‘कोरोनेशन’ है, ‘चुनाव’ कहां है?
चौथा गोल ‘मंदिर की सुनवाई दो हजार उन्नीस तक खिसका दी जाए’ वाली कपिल सिब्बल की अपील मारती है! चैनलों में खबर आती रहती है कि वरिष्ठ वकीलों के व्यवहार पर मुख्य न्यायाधीश बेहद क्षुब्ध हुए हैं और सख्त शब्दों में अपनी नाराजी जता चुके हैं। यहां तक कहा है कि वरिष्ठ वकीलों की हल्ला मचाने वाली बिग्रेड का ‘टोन और टेनर’ आपत्तिजनक है! इस अदालत का सम्मान करना सबके लिए जरूरी है।…
सच कहा है: ‘जाको प्रभु दारुण दुख देहीं/ ताकी मति पहिलेई हरि लेंहीं!’
बिल्ली के भागों छींका टूटता है। भाजपा को कुछ नहीं करना पड़ता। वह इस अवसर को अपने पक्ष में मोड़ने और गुजरात के विमर्श को पलटने में कामयाब दिखती है। चुनाव का विमर्श विकास से हट कर धर्म पर टिक जाता है।
जैसे तैसे कांग्रेस को मिल रहा ‘गुड मीडिया’ अचानक ‘बैड मीडिया’ बन जाता है! जब अपने ही ‘वोटकटवा’ बन उठें, तो भाजपा का क्या दोष?
चैनलों पर एकदम सांप्रदायिक अर्थों वाली बाइटें जोर मारने लगती हैं: राहुल औरंगजेब की औलाद हैं। राहुल बाबर की औलाद हैं। राहुल असली हिंदू नहंीं हैं। नकली हैं। राहुल कैथोलिक हैं। राहुल दिल्ली में मंदिर क्यों नहीं जाते?
सारा विमर्श ‘असली हिंदू’ बरक्स ‘नकली हिंदू’ में बदल जाता है। हिंदुत्व का अखाड़ा खुल जाता है। इस अखाड़े को भाजपा से बेहतर कोई नहीं जानता!
वृहस्पतिवार को दूसरा ओपिनियन पोल टाइम्स नाउ देता है। यह भाजपा को कुछ तसल्ली देने वाला है, लेकिन एक सौ पचास सीटें तो दूर-दूर नहीं दिखतीं। एक व्याख्याकार कहता है कि ‘बिग प्रोजेक्ट्स’ और ‘मोदीनोमिक्स’ अपना काम कर रही लगती है। पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि सब कुछ के बावजूद पब्लिक की नाराजी का अंत:प्रवाह है कि भाजपा को एक ‘झटका’ देना जरूरी है। दूसरी ओर आंकड़े बताते हैं कि ‘गुजरात का गौरव’ अपना काम कर सकता है!
कुछ भी पक्का नहीं है। इसीलिए मुद्दों को लुढ़काने के लिए चैनलों की बहसों में खैंचमखांच नजर आती है। सेल्फ गोलों की वजह से हाथ से निकल चुके विकास के मुद्दे को कांग्रेस विमर्श में वापस लाना चाहती है, लेकिन भाजपा कांग्रेस के सेल्फ गोलों को बार-बार प्रकाश में लाती रहती है। राम मंदिर के मुद्दे पर कपिल सिब्बल की अनबूझ भूमिका उनको मुंहमांगी मुराद की तरह मिली है।
वक्फ बोर्ड कहता है कि कपिल सिब्बल हमारा प्रतिनिधित्व नहीं करते। कपिल आकर स्वयं कहते हैं कि वे बोर्ड का प्रतिनिधित्व नहीं करते। तब वे किसके लिए अदालत गए? यह सवाल अटका रह जाता है और चैनल इसे जम कर धुनते रहते हैं।
गुजरात में निकला एक पोस्टर अहमद पटेल को बोलने के लिए मजबूर कर देता है। पोस्टर में उनको कांग्रेस के मुख्यमंत्री का उम्मीदवार दिखाया गया है। वे रिपब्लिक पर सफाई देते हैं कि यह भाजपा का दुष्प्रचार है। भाजपा ‘फेक पोस्टर’ लगवा रही है। वे समझ गए हैं कि कांग्रेस की सरकार बनने वाली है। मैं मुख्यमंत्री की दौड़ में नहीं हूं!
लेकिन दुर्दमनीय मणिश्ांकर प्रधानमंत्री को ‘नीच आदमी’ कह कर एक और सेल्फ गोल मार देते हैं। कांग्रेस की धुनाई होने लगती है।
मोदी सूरत की रैली में मणि को ठोंकते हुए कहते हैं कि गुजरात की जनता इस तरह के नीच वक्तव्यों को कभी माफ नहीं करेगी!
कांग्रेस ‘डैमेज कंट्रोल’ में लग जाती है। राहुल ट्वीट कर मणि से माफी मांगने को कहते हैं। सीएनएन न्यूज अठारह लाइव दिखाता है। मणि बड़ी मुश्किल से सशर्त माफी मांगते हैं!
अरुण जेटली तुरंत आकर चैनलों में कहते हैं कि मणिश्ांकर ‘हैबिचुअल आॅफेंडर’ हैं!
जिस कांग्रेस के पास ऐसी ‘मणियां’ हैं उसे किसी दुश्मन की जरूरत नहीं?
‘हुए तुम दोस्त जिसके, दुश्मन उसका आसमां क्यंू हो?’

