इसे कहते हैं ‘बढ़ के खेलना’। बढ़ के दांव लगाना। बढ़ के चुनौती देना। चाल बढ़ा के चलना। अमित शाह का बयान रहा कि इस चुनाव के परिणामों ने दो हजार उन्नीस की आधारशिला रख दी है। कुछ ऐसी ही बात भाजपा के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने कही! और जब भाजपा कार्यालय में मोदीजी आए और अमित शाह ने उनको माला पहनाई, तो उन्होंने सिर्फ यह कहा कि परिणामों से कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा है।
अमित के उछाह के बरक्स मोदी के कंट्रोल्ड स्वर को देखें। एक हाथ से ऊंचा दांव लगाना, दूसरे से उसकी नजर उतारना! यह जुगलबंदी ध्यान देने योग्य रही। भाजपा कार्यालय से जश्न का फूहड़ प्रसारण इस बार ज्यादा नहीं दिखा। संसदीय दल की बैठक के अवसर पर उसका क्या काम? लेकिन सबके बाद भी अमित उवाच ही हर चैनल पर वायरल रहा और सबसे ज्यादा टाइम्स नाउ के अर्णव के लिए रहा। चुनाव परिणाम आ चुके थे, बहसें हार-जीत की चीर-फाड़ कर रही थीं कि अमित शाह के बयान ने अचानक उन्नीस के चुनाव का ‘तौक’ सबके सामने रख दिया।
हम सहमत हों या असहमत, लेकिन भाजपा के एक बड़े रणनीतिकार के इस दांव को तो समझना ही होगा कि जो बहसें सुबह से जीत-हार की चीर-फाड़ में लगी थीं, वे अचानक दो हजार उन्नीस के बारे में सोचने वाली हो रहीं। इस दांव को राम माधव की उन टिप्पणियों के साथ पढ़ना ही ठीक है, जो उनने एनडीटीवी पर बरखा से बातचीत में कहीं: ‘असम के चुनाव की जीत का श्रेय धु्रवीकरण को जाता है’ जैसे सवाल के जवाब में राम माधव ने कहा कि हमारा यह चुनाव ब्रह्मपुत्र और श्रीमंत शंकरदेवजी को समर्पित रहा। हमने असम की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए चुनाव लड़ा!
यही बात टाइम्स नाउ पर तब सामने आई जब सदानंद ने कहा कि हमने हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, नेपाली, बंगाली, असमिया, बोडो सबकी अस्मिता के लिए चुनाव लड़ा है। मार्के की एक बात और सामने आई कि इस बार हमने पहले ही तय कर रखा था कि चुनाव के दौरान कुछ भी कोई गड़बड़ न होने पाए और हम इस पर खरे उतरे। इसके लिए उनने अमित शाह की रणनीति की तारीफ की!
उधर तरुण गोगाई के पास क्या रणनीति रही? यह बात तब खुली जब एक ओर तरुण गोगोई, दूसरी ओर कांग्रेस के विद्रोही हिमंत विश्व शर्मा को अर्णव ने आमने-सामने बिठा कर चर्चा करवाई। भयानक हार के सामने भी प्रसन्न विनम्रता की प्रतिमूर्ति बने तरुण गोगोई से कांग्रेस के नए नेताओं को सीखना चाहिए कि हार के सामने भी जबर्दस्ती ही सही, मुस्कराते रहना होता है तो किस तरह और अपने निकट के प्रतिद्वंद्वी को बधाई दी जाती है तो किस तरह? और साथ यह भी कहना कि ‘गुडलक टू यू’!
शर्मा ने भी जब तरुण से बात की तो हर बार सर कह कर बात की। दो रकीबों के बीच यह एक शालीन बातचीत रही, जिसमें जरा-सी भी तिक्तता नहीं आ पाई। जब बात बढ़ने लगी तो तरुण ने ही बड़प्पन दिखाते हुए कहा कि अब छोड़िए भी, मैं ऐसी बातों में नहीं जाता! ग्रेट!
शर्मा इस चुनाव का वह चेहरा रहा, जिसने असम का चुनाव पलटा। टाइम्स पर उनको दो बार लाया गया। जब पहली बार वे आए तो मालूम पड़ा कि असम में कांग्रेस को हराने वाला कौन था।
प्रणय राय पर्सनल नहीं होते। राजदीप भी ऐसा ही करते हैं, लेकिन टाइम्स नाउ के अगर अर्णव का पंगा लटयंस की दिल्ली वाले कॉकटेल सर्किट से पुराने जमाने से है तो है और इस बार जेएनयू के बर्बादीवादी और संशोधनवादी उनके निशाने पर आ गए तो इसलिए कि अर्णव कामरेडों को उनके हारने की वजह समझाने की जिद ठाने रहे। कामरेडों से ऐसी तीखी बहस किसी अन्य चैनल पर नहीं दिखी।
सबसे सहज प्रेस कॉन्फ्रेंस ममता की रही। तीखी गरमी और पसीना-पसीना, लेकिन ममता दीदी की तुरंता प्रेस कॉन्फ्रेंस। वे अपने विरोधियों को धाराप्रवाह कोसती जाती थीं कि किस तरह कांग्रेस सीपीएम और भाजपा के लोगों ने चरित्रहनन अभियान चलाया, लेकिन जनता ने इन सबको धो दिया। मां, माटी, मानुष की जीत हुई। बंगाल में भ्रष्टाचार नहीं है। जनता के लिए जो काम किया है उसका नतीजा है चुनाव परिणाम! अचानक जब हिंदी में सवाल होने लगे तो ममता दी बांग्ला छोड़ हिंदी में शुरू हो गर्इं और अपनी बांग्ला वाली हिंदी में जम कर जवाब देती रहीं।
एक चैनल पर प्रकाश करात ने दर्शन दिए। वे केरल की जीत पर हिंदी में बोले। बंगाल की रणनीति पर उनका क्या जवाब रहा? यह नहीं दिख सका! लेकिन अम्मा के जो दर्शन चेन्नई से सीधे प्रसारित हुए, उनमें वे एक अथॉरिटेरियन सुपर अम्मा की तरह ही दिखीं। अभूतपूर्व जीत के इस अवसर पर वे अपने घर में सिंहासन पर देवी की भांति विराजी हुई थीं। एक-एक कर के बड़े अफसर, पुलिस अफसर, पार्टी के नेता आदि आते रहे। एक से एक बड़े पुष्पगुच्छ सिर झुका कर सादर भेंट करते रहे। कुछ उनके चरणों तक अपना मस्तक नवाते रहे। वे उनके पुष्पगुच्छों को स्पर्श कर थैंक यू-सा कहती नजर आतीं। यह कर्मकांड लाइन से चलता रहा।
सबसे शुष्क दृश्य त्रिवेंद्रम का रहा! जीतने के बावजूद कामरेडों के मस्त सीन नदारद थे। लगता है, बंगाल का झटका केरल में जोर से लगा। एनडीटीवी में सवाल रहा कि कौन बनेगा सीएम? विजयन बनेंगे कि अचुतानंदन फंसट डालेंगे। भाजपा प्रवक्ता यहीं से फंसट डालने लगे कि असली नेता तो अचुतानंदन हैं, जिनने चुनाव में जान फूंकी है। शेखर गुप्ता ने याद दिलाया कि जब विजयन से पूछा था कि क्या अब आप सीएम होंगे तो विजयन प्रणय का हाथ अपने हाथ में लेकर देर तक सिर्फ हंसते रहे थे। (यानी रस्मिया यह तक न कहा कि अपने यहां यह सब पार्टी तय किया करती है)। कामरेडों को यह क्या हो गया है कि पार्टी की बात नहीं करते और एक एंकर के सामने हीं हीं करते रहते हैं, जैसे वही सीएम बनवा देगा!