मोहन भागवत को समय का अलौकिक ज्ञान है। वे बहुत कम बोलते हैं, लेकिन दिन और अवसर का चुनाव बहुत चतुराई से करते हैं। उनके शब्दों का चयन भी शानदार होता है, हालांकि मैंने उन्हें केवल अंग्रेजी अनुवाद में पढ़ा है। कई लोग उनके विचारों से पूरी तरह असहमत हैं- और मैं भी हमेशा असहमत होता हूं- लेकिन कोई भी इस बात से असहमत नहीं हो सकता कि भागवत के भाषण ध्यान आकर्षित करते हैं, खासकर 2014 के बाद से।

उनके वक्तव्यों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के आधिकारिक बयान के रूप में लिया जाता है। ऐसा संगठन की प्रकृति और संरचना के साथ-साथ सरसंघचालक या संघ प्रमुख के रूप में उनकी स्थिति की वजह से है। ऐसा माना जाता है कि आरएसएस में उसके प्रमुख के पास सारे अधिकार होते हैं। इसलिए, भागवत के भाषणों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और हाल में, उन्हें गंभीरता से लिया भी गया है।

ठंडी हवा

जून 2024 में लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के कुछ समय बाद, भागवत ने एक भाषण दिया, जिसमें उनका मुख्य उद्बोधन था- ‘अहंकार त्यागो, विनम्रता का अभ्यास करो’। यह लोकसभा चुनाव के बाद उनका पहला सार्वजनिक संबोधन था और उन्होंने कहा- झूठ और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने वाले चुनावी भाषणों ने उस शालीनता का उल्लंघन किया है, जिसका पालन करने की राजनीतिक दलों से अपेक्षा की जाती है; आपका प्रतिद्वंद्वी कोई विरोधी नहीं है, वह केवल एक विरोधी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है; प्रतिद्वंद्वी के बजाय उन्हें विपक्ष कहें; विपक्ष की राय पर भी विचार किया जाना चाहिए; और एक सच्चा सेवक मर्यादा बनाए रखता है। उसमें यह कहने का अहंकार नहीं होना चाहिए कि ‘मैंने यह काम किया’। उस भाषण की व्यापक रूप से व्याख्या मोदी साहब और उनके चुनाव अभियान की ओर इशारा करते हुए की गई थी।

अगला उल्लेखनीय भाषण उन्होंने जुलाई में दिया, जिसमें भागवत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘एक आदमी सुपरमैन बनना चाहता है, फिर देवता, और फिर भगवान’। यह स्पष्ट रूप से मोदी साहब के उस दावे का प्रतिकार था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका जन्म ‘जैविक रूप से’ नहीं हुआ है। अगर मोदी साहब ने गर्भाधान, गर्भधारण और प्रसव की प्रक्रिया से इनकार किया, तो क्या वे खुद को ‘सृजन’ कह रहे थे? तो क्या भागवत इस बात का संकेत दे रहे थे कि मोदी साहब ने सीमा का उल्लंघन किया है?

शीत लहर

उनका तीसरा भाषण विजयादशमी के दिन, 12 अक्तूबर, 2024 को आरएसएस के सौवें वर्ष में प्रवेश करने पर था। मैंने उस भाषण का पाठ अंग्रेजी में पढ़ा है (इंडियाटाइम्स डाट काम)। उसे पढ़ कर मुझे निराशा हुई, लेकिन आश्चर्य नहीं हुआ, कि भागवत आरएसएस की स्थापित वैचारिक स्थिति पर लौट आए हैं। उनके भाषण में धर्म, संस्कृति, व्यक्तिगत और राष्ट्रीय चरित्र, शुभता और धार्मिकता की जीत तथा आत्मगौरव जैसे शब्द और वाक्यांश बिखरे हुए थे। उन्होंने हमास और इजराइल के बीच संघर्ष का उल्लेख किया, लेकिन तेतालीस हजार मौतों का कोई उल्लेख नहीं किया; जम्मू-कश्मीर में चुनावों का उल्लेख किया, लेकिन नई सरकार को अपनी शुभकामनाएं नहीं दीं; और मणिपुर के बारे में उन्होंने केवल इतना कहा कि वह ‘अशांत’ है।

भागवत के भाषण का बाकी हिस्सा ठेठ मोदी शैली का भाषण था: कैसे भारत एक राष्ट्र के रूप में मजबूत हुआ है, कैसे दुनिया हमारे सार्वभौमिक भाईचारे की भावना को स्वीकार कर रही है, और कैसे भारत की छवि, शक्ति, प्रसिद्धि और विश्व मंच पर स्थिति लगातार सुधर रही है। और भी बहुत कुछ था: देश को अस्थिर करने के प्रयास जोर पकड़ रहे हैं, उदार होने का दावा करने वाले देश दूसरे देशों पर हमला करने या उनकी लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों को अवैध या हिंसक तरीकों से उखाड़ फेंकने में संकोच नहीं करते, झूठ के आधार पर भारत की छवि को धूमिल करने का जानबूझकर प्रयास करते हैं, आदि।

भागवत ने गंभीर आरोपों का कोई सबूत नहीं दिया। बांग्लादेश का जिक्र करते हुए उन्होंने पूरे जोश में आकर ‘हिंदू समुदाय पर अकारण क्रूर अत्याचार’, ‘हिंदुओं समेत सभी अल्पसंख्यक समुदायों के सिर पर लटकने वाली खतरे की तलवार’ और ‘बांग्लादेश से भारत में अवैध घुसपैठ और उसके कारण होने वाले जनसंख्या असंतुलन’ की ओर इशारा किया। अंत में, मोदी की तरह भाषण देते हुए उन्होंने कहा, ‘दुनिया भर के हिंदू समुदाय को यह सबक सीखना चाहिए कि असंगठित और कमजोर होना दुष्टों द्वारा अत्याचार को आमंत्रित करने के समान है।’

देखने वाले की नजर

खासकर उनके भाषण के अंत वाले हिस्से में ‘हिंदू’ शब्द के स्थान पर ‘मुसलिम’ शब्द रख दें, तो ऐसा लगेगा कि वक्ता हर सांप्रदायिक संघर्ष को उचित ठहरा रहा है। भागवत के हर विचार और शब्द का इस्तेमाल भारत में मुसलमानों और दलितों, संयुक्त राज्य अमेरिका में अश्वेतों, विश्व युद्ध से पहले जर्मनी में यहूदियों, अपनी मातृभूमि में फिलिस्तीनियों, बहुसंख्यकों द्वारा भयभीत हर अल्पसंख्यक और हर जगह महिलाओं की दुर्दशा का वर्णन करने के लिए किया जा सकता है। हमलावर कौन है और पीड़ित कौन है, यह देखने वाले की नजर में है।

ऐसा भी लगता है कि आरएसएस ने आधुनिक राजनीतिक विमर्श की भाषा में महारत हासिल कर ली है, और भागवत ने ‘डीप स्टेट’, ‘वोकिज्म’, सांस्कृतिक मार्क्सवादी, कमजोर कड़ियों की तलाश और वैकल्पिक राजनीति जैसे शब्दों का उदारतापूर्वक इस्तेमाल किया है। भागवत ‘शहरी नक्सल’ और ‘टुकड़े टुकड़े गिरोह’ का जिक्र करने से चूक गए। उन्होंने ‘अरब स्प्रिंग’ और ‘पड़ोसी बांग्लादेश में हाल ही में जो हुआ’ उसका उल्लेख किया और ‘भारत के चारों ओर इसी तरह के बुरे प्रयासों’ के खिलाफ चेतावनी दी। मुझे आश्चर्य है कि अरब स्प्रिंग या बांग्लादेश में एक अत्याचारी सरकार के खिलाफ छात्रों के विद्रोह में ‘बुराई’ क्या थी, जिसने विपक्षी नेताओं को जेल में रखकर चुनाव ‘जीता’।

ऐसा लगता है कि आरएसएस और भाजपा ने अपने मतभेद सुलझा लिए हैं और एकजुट हो गए हैं। मोदी साहब की कथनी और करनी को नियंत्रित करने वाला कोई नहीं है, इसलिए वे अपने अधिकारों का उपयोग करने, विपक्षी दलों को गाली देने और अपनी नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित महसूस करेंगे, जिनके कारण मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, असमानता, मित्रवादी पूंजीवाद, सामाजिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक संघर्ष और अन्याय हुआ है। अभी और मोदी शैली के भाषणों और मोदी शैली के कार्यों के लिए खुद को तैयार रखें।