समंदर किनारे उसी गांव में हूं, जहां थी जब प्रधानमंत्री ने पूर्ण बंदी की घोषणा की थी देश भर में। इस गांव में अभी तक इस महामारी का शिकार कोई नहीं हुआ है और न ही महाराष्ट्र के इस जिले में। जिले की सीमाएं पूरी तरह सील हो गई हैं और गांव की भी, कोविड-19 को रोकने के लिए। अगले हफ्ते अगर इस पूर्ण बंदी का दायरा बढ़ा दिया जाता है, तो मुझे इस गांव में कई हफ्ते और रहने पड़ेंगे। सारी उमर दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में गुजारने के बाद गांव की दृष्टि से बाकी देश को देखना अजीब-सा लगता है। ऐसा लगता है जैसे बहुत दूर किसी दूसरे देश को देख रही हूं, जहां बीमारी फैली हुई है, जहां धारावी नाम की एक विशाल झुग्गी बस्ती में भूखे लोगों की लंबी कतारें लगती हैं रोज दो वक्त का खाना लेने। समझ में नहीं आता कि जब ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ अनिवार्य है इस विषाणु से बचने के लिए, तो मुंबई की नगरपालिका क्यों नहीं अधिक केंद्रों से खाना उपलब्ध करा सकती है।

इस सुंदर, शांत, वीरान गांव में अभी राशन काफी है और गांव की आबादी इतनी कम है कि लंबी कतारों में किसी को खड़े होने की जरूरत नहीं है। लेकिन लोग मास्क पहन कर, डरते-डरते दुकान तक जाते हैं अब, क्योंकि टीवी से रोज खबर मिलती है कि महाराष्ट्र में अभी तक करोना के सबसे ज्यादा मरीज पाए गए हैं। अपने देवी-देवताओं से लोग प्रार्थना करते हैं रोज कि महाराष्ट्र के इस हिस्से से यह महामारी दूर रहे। प्रार्थना यह भी करते हैं कि पूर्ण बंदी जल्दी हटा दी जाए, इसलिए कि बीमारी से ज्यादा आर्थिक मंदी के शिकार होने लगे हैं यहां के लोग। हर दूसरा घर इस गांव में या तो होटल है या अपने एक-दो कमरे पर्यटकों को किराए पर देकर कमाई होती है। पर्यटकों का आना-जाना बिलकुल बंद हो गया है पिछले तीन हफ्तों से, सो यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था तकरीबन ठप हो गई है।

टीवी पर प्रधानमंत्री के हर भाषण को सुनते हैं हम और उनकी हर हिदायत का पालन भी करते हैं दिल से। जिस नेतृत्व की उम्मीद थी नरेंद्र मोदी से वह उन्होंने दिखाई है संकट की इस घड़ी में, लेकिन शिकायत सिर्फ यह है कि उन्होंने अभी तक अर्थव्यवस्था को जीवित रखने के लिए कोई रणनीति पेश नहीं की है। मुंबई में अगर दिहाड़ी मजदूरों और छोटे कारोबारियों की हालत कमजोर हो गई है पिछले तीन हफ्तों में, तो बड़े उद्योगपति भी परेशान हैं। ओबेराय होटल में मेरी एक दोस्त दुकान चलाती है। जब उसने फोन किया मेरा हाल पूछने के लिए, तो मैंने उससे पूछा कि क्या होटल अभी तक खुला है। जवाब मिला कि होटल पूरी तरह बंद है, बिलकुल उसी तरह जैसे 26/11 वाले जिहादी हमले के बाद बंद हुआ था। संकट इस बार और भी ज्यादा है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि इस बीमारी का खतरा कब तक मंडराने वाला है देश की अर्थव्यवस्था पर।

जो नेतृत्व प्रधानमंत्री ने दिखाया है महामारी को रोकने के लिए, उससे भी ज्यादा नेतृत्व दिखाना होगा अर्थव्यवस्था को दुबारा जीवित करने के लिए। अकेले नहीं कर सकेंगे यह काम, इसके लिए प्रधानमंत्री को पूरी मदद लेनी होगी मुख्यमंत्रियों की। सो, अच्छा है कि उनसे पूरा सलाह-मशविरा करने के बाद फैसला ले रहे हैं आजकल। आपदा इतनी गंभीर है कि देश को एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा, इसलिए ठीक नहीं लगा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने यह समय चुना है अलग भाषा बोलने के लिए। बुरा लगा कि राहुल और प्रियंका गांधी भी सिर्फ आलोचक बने हुए हैं इस संकट के समय।

ऐसा कहने के बाद यह भी कहना मुनासिब समझती हूं कि संकट की इस घड़ी में प्रधानमंत्री को सकरात्मक आलोचना सुनने की शक्ति रखनी चाहिए। उनके ध्यान में अगर लाते हैं पत्रकार और विपक्ष के राजनेता कि दिहाड़ी मजदूरों का इतना बुरा हाल है कि भूख से मरने की नौबत आ गई है, तो उनकी बात सुननी चाहिए। उनके ध्यान में लाया जाता है जब कि किसानों की फसलें बर्बाद हो जाएंगी अगर मंडियों तक पहुंचाने के लिए रास्ते खोले नहीं जाते हैं, तो इसको भी सकरात्मक आलोचना मानी जानी चाहिए। अफसोस होता है जब इतनी बड़ी आपदा आने के बाद भी जो लोग अपने आपको कट्टर मोदी भक्त मानते हैं, वे आलोचना का एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं दिखते हैं।

मुझे इन दिनों भक्तों की नहीं, आलोचकों की श्रेणी में रख दिया है, लेकिन इसके बावजूद विनम्रता से अर्ज करना चाहती हूं कि इस पूर्ण बंदी से जो अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है, उसका समाधान अभी से ढूंढ़ना होगा, वरना जान तो बच जाएगी शायद, लेकिन जहान नहीं रहेगा।

इस समंदर किनारे गांव में समय इतना है मेरे पास कि कई दोस्तों से फुरसत में बात कर लेती हूं सुबह में योग करने के बाद। उन सबकी आजकल एक ही सलाह है कि भारत में महामारी से ज्यादा हमको खतरा है अभी से आर्थिक मंदी का। उनका कहना है कि अमेरिका और पश्चिम के अन्य विकसित देशों में विषाणु को काबू में लाने के बाद शीघ्र ही आर्थिक समस्याओं का हल ढूंढ़े जा सकेंगे, लेकिन हमारे यहां इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि हमारा आर्थिक हाल पहले से काफी कमजोर था। सो, अगर पूर्ण बंदी को हटा कर हम सिर्फ उन क्षेत्रों में बंदी रखते हैं, जहां महामारी का असर ज्यादा फैल चुका है, तो देश का भविष्य इतना बुरा नहीं दिखेगा शायद, जैसा अब दिख रहा है। विकसित देशों में अभी से पूरी तैयारी दिख रही है आर्थिक मंदी को दूर करने की। हमारे देश में ऐसा नहीं है।