देशभक्ति बहुतों की देखी, लेकिन जैसी भावभीनी देशभक्ति वाली उन देशभक्तजी और कुछ कथित वकीलोंजी की देखी, किसी की न देखी।
इनके पास बातों से ज्यादा एक्शन था और कैमरों से एकदम बेपरवाह था।
पहला सीन कारों के बीच दौड़ने का था, जिसमें एक कुर्ते वाला युवा घबरा कर दौड़ता दिखता था। उसके पीछे फिल्मी अंदाज में तीन-चार देशभक्त उसके पीछे दौड़ते दिखते थे। कैमरे उनके पीछे दौड़ते थे। एक पाइंट पर युवा पकड़ में आ गया, गिराया गया और उसके बाद युवा नीचे थे, देशभक्तजी ऊपर से मुक्का ताने दिख रहे थे। कैमरों के पीछे भी एक कैमरा तैनात था, जो डाउन शॉट ले रहा था।
फिर एनडीटीवी की एक रिपोर्टर कहती दिखती थी: काले कोट पहने कुछ ने कहा अदालत से बाहर जाओ, वरना तुम्हारे ‘फोन’ और ‘बोन’ दोनों को तोड़ देंगे। वह बताती जाती थी और अपने चोटिल होंठ पोंछती जाती थी।
यह जेएनयू की ‘देशद्रोह कथा’ का दूसरा राउंड था, जिसमें कुछ काले कोट वालों की टीवी पे्ररित देशभक्ति ने पत्रकारों को ठोक कर दूसरा मोर्चा खोल दिया। यह मोर्चा मीडिया का मोर्चा था, जो अब तक देशभक्तों को देशद्रोहियों के बरक्स कुछ अधिक महत्त्व दिए जा रहा था और काफी हद तक खुद वीर भाव में ‘देशद्राहियों’ को कठघरे में खड़ा करता आ रहा था।
इस पिटाई के बाद मीडिया इस तरह के ‘देशभक्तों’ पर बिगड़ता ही, सो खूब बिगड़ा। ऐसे देशभक्तों के विरोध में मीडियाकर्मी खुद सड़कों पर निकल पड़े। इसमें मीडिया के सारे तुख्म शामिल दिखे। लंबे जुलूस में अंगरेजी के दो बड़े टीवी चैनलों के नामी एंकर राजदीप और बरखा तक शामिल दिखे। देशभक्तों की हवा निकालने लिए यह प्रदर्शन काफी था।
मीडिया से बैर करके आप देशभक्ति का परचम कब तक लहरा सकते हैं?
उक्त ‘देशभक्त’ महोदय ने और काले कोट वाले ‘देशभक्तों’ के इस तरह के एक्शन ने जेएनयू की देशद्रोह कथा को वह ट्विस्ट दिया कि कहानी का मिजाज ही बदल गया!
यहीं नहीं, एक दिन बाद अदालत परिसर में पिटाई की ‘रिपीट परफारमेंस’ देकर दिखा दिया कि कथित ‘देशद्रोहियों’ को जांच और कानून बाद में देखेगा, पहले ‘हम’ देखेंगे। इस तरह जिस कन्हैया को खलनायक बनाने चले थे उसे अपनी हरकतों से ‘हीरो’ बना दिया! ‘देशद्रोह’ की कहानी ने दम तोड़ना शुरू कर दिया!
कथा के पहले राउंड में जहां ‘देशद्रोही’ निशाने पर रहे, लेकिन इस राउंड में देशभक्तों की समझ निशाने पर आ गई। शुरू में चला शब्द ‘एंटीनेशनल’ आखिर तक आते-आते ‘ट्रीजन’ बन गया! इस राउंड में बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा की अर्णव ने खबर ली। पूछा कि जेएनयू के अफजलवादियों का आप विरोध करते हैं, लेकिन पीडीपी के साथ आप सरकार बनाते हैं क्यों? जेएनयू का आपका विरोध सुसंगत नहीं है। भाजपा प्रवक्ता के पास इसका कोई जवाब नहीं दिखा।
इस बीच हर चैनल ने अतिरंजना में कंपटीशन किया। हिंदी चैनल स्वभाव से देशभक्त लगते हैं, इस अवसर पर और भी जोश में आ गए। यहां एक से एक अद्भुत वाक्य सुनने को मिले। राहुल को जेएनयू में छात्रों के बीच बैठा देख कर एक चैनल पर सुनील पंडित ने कहा: ये आदमी तो किसी कैंपस में दाखिला लेने लायक नहीं रहा, अब कैंपस में आ रहा है? शायद उनका इशारा राहुल की ओर था।
एक हिंदी चैनल में एक वक्ता ने कहा: जेएनयू आतंकवादियों का ट्रोजन हॉर्स है। एक ने कहा: आइएसआइ का अड्डा है जेएनयू! एक स्वामीजी ने फरमाया: जेएनयू को बंद कर देना चाहिए।
जेएनयू क्रांतिकथा में ‘देशद्रोहियों’ के चार-चार वीडियो थे, आग में घी डालने का काम किया। वे हर चैनल पर बजते थे और नई उत्तेजना पैदा करते थे। न्यूज एक्स ने दिखाए, एबीपी ने दिखाए, टाइम्स नाउ ने दिखाए, सीएनएन आइबीएन ने दिखाए, सबने दिखाए।
वही नारे यहां कैद थे, जो पहले दिन सुने थे: ‘कितने अफजल मारोगे? हर घर से अफजल निकलेगा!’… ‘कश्मीर मांगे आजादी’… ‘बंदूक की नोक लेंगे आजादी’! आश्चर्य कि ठीक ऐसे ही नारे जादवपुर यूनिवर्सिटी के जुलूस में गंूजे। गजब की एकता दिखी। इसने कहानी को अखिल विश्वविद्यालय बनाने का रास्ता खोल दिया। न्यूज एक्स ने लाइन देकर पूछा: क्या कोई इनको डिफेंड कर सकता है? सियाचिन में शहीद हुए सिपाहियों के शहादती ताबूतों के बरक्स सवाल लगाया: क्या हमारे शहीद उनके लिए टेररिस्ट हैं?
एनडीटीवी में वी द पीपल में लाइन देकर पूछा गया: देशद्रोह या विरोध की आवाज का दमन? भारत विरोधी नारे लगते हैं, लेकिन क्या सरकार कुछ अधिक नहीं बोल गई?
आखिर में देशभक्त की हड़बड़ कहानी का दम खुद जेएनयू प्रशासन की इस खबर ने निकाल दिया कि विश्वविद्यालय ने ही पुलिस को बुलाया था! यह आश्चर्यजनक तथ्य सात दिन बाद सामने आया। उससे पहले पुलिस की पिटाई इस बात पर होती रही कि पुलिस ने सीधे संज्ञान लिया और खुद घुस गई!
हड़बड़ी में गढ़ी ‘देशद्रोह’ की इस कहानी का कच्चा ट्रीटमेंट बताता है कि बिना तथ्यों के सिर्फ उत्तेजना से भर कर देशभक्ति के भाव को लोकप्रिय नहीं बनाया जा सकता।
बाखबरः देशभक्त बनाम देशद्रोही
जेएनयू क्रांतिकथा में ‘देशद्रोहियों’ के चार-चार वीडियो थे, आग में घी डालने का काम किया। वे हर चैनल पर बजते थे और नई उत्तेजना पैदा करते थे। न्यूज एक्स ने दिखाए, एबीपी ने दिखाए, टाइम्स नाउ ने दिखाए, सीएनएन आइबीएन ने दिखाए, सबने दिखाए।
Written by सुधीश पचौरी
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First published on: 21-02-2016 at 03:29 IST