पिछले स्तंभों को पलटते हुए देखा कि मणिपुर के बारे में मैंने ज्यादा नहीं लिखा है, इसके लिए खुद को कोसा। मैंने आखिरी बार 30 जुलाई, 2023 को मणिपुर पर लिखा था। अब उसे तेरह महीने से ज्यादा हो गए हैं। यह अक्षम्य है। यह उन सभी भारतीयों के लिए भी बिल्कुल माफ करने लायक नहीं है, जिन्होंने मणिपुर को अपनी सामूहिक चेतना के सबसे गहरे अंधेरे कोने में दबा दिया है। जब मैंने पिछले वर्ष लिखा था, तो संकेत अशुभ थे। मैंने कहा था, ‘यह नस्ली सफाए की शुरुआत है’।

मैंने कहा था ‘आज, मुझे जो भी रपटें मिली हैं या पढ़ी हैं, उनमें इंफल घाटी में व्यावहारिक रूप से कोई कुकी-जोमी नहीं रह गया है और कुकी-जोमी के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में कोई मैतेई नहीं बचा है’। मैंने कहा था कि ‘मुख्यमंत्री और उनके मंत्री अपने घर से दफ्तर के काम करते हैं और प्रभावित क्षेत्रों की यात्रा नहीं करते या नहीं कर सकते हैं’। मैंने यह भी कहा था कि ‘कोई भी जातीय समूह मणिपुर पुलिस पर भरोसा नहीं करता’ और ‘कोई भी हताहतों की आधिकारिक संख्या पर विश्वास नहीं करता है।’

कठघरे में तीन

मैंने जो कुछ लिखा था, दुर्भाग्य से उसका एक एक शब्द सच साबित हुआ। संसदीय लोकतंत्र में, मणिपुर की इस दुखद स्थिति के लिए, एक या उससे अधिक सत्ताधीशों को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। यहां तीन ऐसे लोग का जिक्र जरूरी है, जो सत्ता में हैं-

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: उन्होंने संकल्प लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे मणिपुर का दौरा नहीं करेंगे। उनका रवैया ऐसा लगता है कि ‘मणिपुर को जलने दो, मैं मणिपुर की धरती पर कदम नहीं रखूंगा’। 9 जून, 2024 को अपने तीसरे कार्यकाल की शुरुआत के बाद से, प्रधानमंत्री ने इटली (13-14 जून), रूस (8-9 जुलाई), आस्ट्रिया (10 जुलाई), पोलैंड (21-22 अगस्त), यूक्रेन (23-24 अगस्त), ब्रुनेई (3-4 सितंबर) और सिंगापुर (4-5 सितंबर) की यात्रा करने का समय निकाला। 2024 के बाकी बचे महीनों के लिए भी उनके कार्यक्रम तय हैं, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, लाओस, समोस, रूस, अजरबैजान और ब्राजील की यात्राएं शामिल हैं। इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि प्रधानमंत्री ने मणिपुर का दौरा, समय या ऊर्जा की कमी के कारण नहीं, बल्कि इसलिए नहीं किया है, क्योंकि वे इस बदकिस्मत राज्य का दौरा करना ही नहीं चाहते हैं।
मणिपुर का दौरा करने से उनका इनकार, उनकी जिद का सबूत है। गुजरात दंगों, सीएए विरोधी प्रदर्शनों और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शनों के दौरान भी हमें इसकी झलक मिली थी और तब भी जब उन्होंने अपने मंत्रियों को संसद के दोनों सदनों में सभी स्थगन प्रस्तावों का विरोध करने का निर्देश दिया था- चाहे वह कोई भी जरूरी मामला रहा हो।

गृहमंत्री अमित शाह: मणिपुर के शासन से जुड़े हर पहलू पर उनके निर्देश शामिल होते हैं, चाहे वह राज्य सरकार में वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति से जुड़ा मामला हो या सुरक्षा बलों की तैनाती का। वे मणिपुर सरकार का हिस्सा हैं। उनके कार्यकाल में हिंसा तेजी से बढ़ी है। मणिपुर के लोग सिर्फ बंदूकों और बमों से एक-दूसरे से नहीं लड़ रहे हैं। स्वतंत्र भारत में पहली बार राकेट और हथियारबंद ड्रोन का इस्तेमाल किया गया है। पिछले एक हफ्ते में दो जिलों में कर्फ्यू लगा दिया गया है, स्कूल और कालेज बंद कर दिए गए हैं, पांच जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया है और इंफल की सड़कों पर पुलिस छात्रों से लड़ रही है। मणिपुर में पहले से तैनात 26,000 कर्मियों को मजबूत करने के लिए सीआरपीएफ की दो और बटालियन (2000 पुरुष और महिलाएं) भेजी गई हैं।

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह: वे अपनी ही बनाई जेल में बंदी हैं। वे और उनके मंत्री इंफल घाटी में भी कहीं नहीं जा पा रहे हैं। कुकी-जोमी उनसे नफरत करते हैं। मैतेई लोगों ने सोचा था कि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे, लेकिन उनकी पूरी तरह से विफलता ने उन्हें मणिपुर में सबसे अलोकप्रिय व्यक्ति बना दिया है, जिसमें मैतेई भी शामिल हैं। प्रशासन का कोई नामोनिशान नहीं है। उनका अयोग्य और पक्षपातपूर्ण शासन नागरिक अशांति का कारण बना। अब वे खुद एक समस्या हैं और सभी पक्षों के लिए उकसावे का कारण बन रहे हैं। उन्हें कई महीने पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था। उनका पद पर बने रहना मोदी साहब और शाह साहब के निरंकुश, कभी अपनी गलती न मानने वाले रवैये को दर्शाता है।

वास्तव में विभाजित

मणिपुर वास्तव में दो राज्य है। चूड़ाचांदपुर, फेरजवाल और कांगपोकपी जिले पूरी तरह से कुकी लोगों के नियंत्रण में हैं, और तेंग्नौपाल जिला (जिसमें सीमावर्ती शहर मोरेह भी शामिल है) जिसमें कुकी-जोमी और नगा की मिश्रित आबादी है, व्यावहारिक रूप से कुकी-जोमी के नियंत्रण में है। कुकी-जोमी एक अलग प्रशासन चलाते हैं। कुकी-जोमी नियंत्रित क्षेत्र में कोई भी मैतेई सरकारी कर्मचारी नहीं है; वे घाटी के जिलों में बसे हुए हैं। कुकी-जोमी ऐसे राज्य का हिस्सा नहीं बनना चाहते, जहां मैतेई बहुमत में हों (60 सदस्यों वाले सदन में 40 विधायक)। मैतेई मणिपुर की पहचान और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना चाहते हैं। समुदायों के बीच दुश्मनी का स्तर बहुत ऊंचा और गहरा है। किसी के बीच कोई बातचीत नहीं है- सरकार और जातीय समूहों के बीच या मैतेई और कुकी-जोमी के बीच। नगा लोगों की केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ अपनी ऐतिहासिक शिकायतें हैं और वे मैतेई बनाम कुकी-जोमी संघर्ष में उलझना नहीं चाहते।

कहीं कोई रोशनी नहीं

मणिपुर संदेह, छल और जातीय संघर्ष के जाल में फंसा हुआ है। मणिपुर में शांति बनाए रखना और सरकार चलाना कभी आसान नहीं था। भाजपा द्वारा संचालित केंद्र सरकार की लापरवाही और राज्य सरकार की अक्षमता के कारण यह अकल्पनीय रूप से बदतर हो गया है। भारत के प्रधानमंत्री को शायद यह एहसास हो गया है कि संघ के एक राज्य, मणिपुर की उनकी यात्रा चंद्रमा के अंधेरे पक्ष की यात्रा जितनी खतरनाक होगी।