ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद दुनिया के देशों को भारत की ‘युद्ध और कूटनीतिक स्थिति’ के बारे में बताने के लिए सरकार ने सांसदों के कई सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने की योजना बनाई, वहीं विपक्ष ने कई सवाल उठाए। हालांकि कई दलों के सांसद इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए गए और सब खुशी-खुशी जाते भी दिखे।
‘आपरेशन सिंदूर’ भले स्थगित हो गया हो, लेकिन उसे लेकर ‘बयान युद्ध’ अभी तक जारी है। एक प्रवक्ता ने प्रतिनिधिमंडल को ‘बारात’ कहा! एक अन्य विपक्षी नेता ने इसे ‘पर्यटन’ कह कर एक बड़े ‘कूटनीतिक प्रयत्न’ को हल्का करने की कोशिश की। एक ने कुछ नामी सांसदों को ‘स्लीपर सेल’ तक कह दिया। इसे देख एक एंकर तक ने चुटकी ली कि यह कैसी एकता है! एक विपक्षी नेता ने ‘आपरेशन सिंदूर’ को ‘जीरो बटे जीरो’ नंबर दे दिया। विपक्ष के ही एक बड़े नेता ने ‘आपरेशन सिंदूर’ को ‘श्रीहीन’ करने के लिए यहां तक कह दिया कि जो हुआ, ‘छिटपुट युद्ध’ था। ऐसी हर टिप्पणी ‘देश’ के ‘मन-मिजाज’ के खिलाफ जाती हैं।
विदेश मंत्री पर भी साधा निशाना
फिर एक दिन विदेश मंत्री पर निशाना साधा जाने लगा। एक विपक्षी नेता कहिन कि विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को पहले क्यों बताया… सत्ता के प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने वही कहा, जो फौजी अफसरों ने कहा… विपक्ष विदेश मंत्री को गलत उद्धृत कर रहा है..! जो कल तक अपने को सरकार के साथ कहते थे, वे अब इसके उलट रुख में बोलते दिखते हैं। कैसी विडंबना है… यह कैसा साथ है साथी! इतनी खबरों और चर्चा के बाद ‘आपरेशन सिंदूर’ सिर्फ ‘सिंदूर’ का प्रतीक न रहकर आतंकवाद के खिलाफ ‘प्रतिशोध’ का एक ‘महाप्रतीक’ बन चुका है!
इस घमासान के बीच सबसे बड़ी खबर सोशल मीडिया पर खासा प्रभाव रखने वाली ज्योति मल्होत्रा की गिरफ्तारी ने बनाई। उस पर आरोप रहा कि वह पाकिस्तान के लिए जासूसी करती रही। पाक दूतावास का दानिश नाम का अफसर उसका ‘हैंडलर’ रहा। जासूसी के आरोप में पुलिस ने अब तक बारह लोगों को गिरफ्तार किया है! लेकिन इस मामले में पुलिस के बयान के बाद नया कोण सामने आ रहा है।
बहरहाल, ‘फौजी संवाददाता सम्मेलन’ में दो महिला अफसरों के संबोधन ने यहां के बहुत से बीमार मर्दवादी दिमागों को जितना ‘प्रतिक्रियायित’ किया, उतना न कभी देखा, न सुना। एक प्रदेश के एक मंत्री एक फौजी महिला अफसर को ‘आतंकी की बहन’ जैसा कह कर अपनी भड़ास निकाल बैठते हैं और मीडिया में छा जाते हैं। फिर जम कर उनकी आलोचना भी होती है, मुकदमे हो जाते हैं… अदालत जांच बिठा देती है..! अभी फैसला बाकी है..!
इसी तरह, एक निजी विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर दो महिला फौजी अफसरों को देख एक ‘आनलाइन’ टिप्पणी लिख देते हैं कि ‘आप्टिक्स’ बढ़िया थी… लेकिन इस पर नीचे तक अमल कहां है..! इस पर एक नागरिक और हरियाणा महिला आयोग आरोप लगाते हैं कि इनकी टिप्पणी से आपस में दुश्मनी को बढ़ावा दिया गया और राष्ट्रीय अखंडता को कमजोर किया गया।
फिर एक दिन सुनवाई के बाद अदालत प्रोफेसर को अंतरिम जमानत दे देती है, लेकिन प्रोफेसर के ‘शब्द चयन’ पर आपत्ति करती है और अभिव्यक्ति की आजादी और नागरिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाने की सलाह देती है। साथ ही, एक विशेष जांच समिति बना देती है। ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ को लेकर आयोजित एक बहस में एक पत्रकार यह कहने लगे कि मैं कुछ नहीं बोलूंगा… बोलूंगा तो गिरफ्तार कर लिया जाऊंगा..! क्या यह ‘बोलना’ नहीं था? फिर एक चैनल में देर तक ‘मीरजाफर’ बरक्स ‘जयचंद’ होता रहा!
अंत में,‘आपरेशन सिंदूर’ के ‘यौद्धिक सौंदर्यशास्त्र’ की एक ‘उत्तर व्याख्या’। प्रधानमंत्री ने बीकानेर में जनता के समक्ष बोलते हुए पेश की कि जो सिंदूर मिटाने निकले थे, उनको मिट्टी में मिला दिया… मेरा दिमाग ठंडा है, लेकिन खून गर्म है… सिंदूर बारूद बन गया… सिंदूर मेरी नसों में है… यह सिर्फ आक्रोश नहीं, भारत का रौद्र रूप है… आपरेशन सिंदूर नए तरह का न्याय है… मैं देश नहीं बिकने दूंगा… विपक्ष कटाक्ष करता है: यह तो कोरे फिल्मी संवाद हैं!