दो किस्म के पंडित नरेंद्र मोदी पर ताने कसते दिखे पिछले सप्ताह। एक थे राजनीतिज्ञ, जो खुद जीवन भर ऐसे राजनेताओं की सेवा में लगे रहे हैं, जिनकी राजनीति का आधार है जातिवाद और परिवारवाद और दूसरे थे मेरे कुछ पत्रकार बंधु, जिन्होंने दस जनपथ पर कई बार चाय पी है चुपके से कांग्रेस पार्टी की राजमाता के साथ। मई 26 को जब मोदी सरकार के दो साल पूरे हुए, इन पंडितों ने खूब मजा लिया इस बात को दोहरा-दोहरा कर कि ‘अच्छे दिन’ अभी आए नहीं हैं। असली राजनीतिक पंडित होते तो बहुत पहले जान गए होते कि जिस हाल में देश था मोदी के आने से पहले, उस हाल में अच्छे दिनों को लाना दो सालों के अंदर मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन था। मुझे उनकी बातों को सुन कर दुख हुआ, इसलिए कि मोदी की असली आलोचना कई स्तरों पर की जा सकती है।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने बहुत कम इंटरव्यू दिए हैं, लेकिन पिछले हफ्ते उन्होंने एक अहम विदेशी अखबार को इंटरव्यू दिया। वॉल स्ट्रीट जर्नल से मोदी ने कहा कि सत्ता संभालने के बाद उन्होंने कई विशेषज्ञों से पूछा कि उनकी नजर में ‘बिग बैंग’ (महान) आर्थिक सुधार क्या होंगे और उनके पास कोई जवाब नहीं था। प्रधानमंत्रीजी, विनम्रता से अर्ज करना चाहूंगी कि खासे लद्धड़ थे आपके विशेषज्ञ, वरना फौरन बता देते आपको कि एक तो उस टैक्स को समाप्त करना चाहिए, जिसके कारण हजारों विदेशी निवेशक भारत छोड़ कर भाग गए और दूसरा, आपको उन सरकारी कंपनियों को बेचना चाहिए, जिनमें आज भी जनता का पैसा डूब जाता है निवेश होते ही।
प्रधानमंत्री की बात सुन कर साफ जाहिर हुआ कि उन्होंने सुधारों की जरूरत सिर्फ आर्थिक नीतियों में महसूस की है। जबकि असली परिवर्तन के लिए भारत को चाहिए हर तरह के सुधार। सो, आज पेश करती हूं सुझावों की छोटी-सी फेहरिस्त। मेरी राय में सबसे पहले राजनीतिक सभ्यता में परिवर्तन लाने की जरूरत है, जिसकी शुरुआत होगी तब जब हम अपने सांसदों और विधायकों को उनके सरकारी मकानों ने निकाल फेंकेंगे। किसी भी विकसित पश्चिमी लोकतांतित्रक देश में यह प्रथा नहीं है। इसको हमने अपनाया रूस और चीन की नकल करके, जहां कम्युनिस्ट शासक रहा करते थे महलों में जनता की सेवा करने के बहाने। इस गलत प्रथा को तोड़ने की सख्त जरूरत है। न सिर्फ लटयंस दिल्ली में, उन सारे राज्यों में भी, जहां भारतीय जनता पार्टी की सरकारें हैं। जनता के प्रतिनिधि जब जनता के बीच रहने लगेंगे तो जनता की रोजमर्रा की समस्याएं भी बेहतर समझने लगेंगे।
प्रधानमंत्री वास्तव में प्रशासन में सुधार लाना चाहते हैं, जैसे चुनाव अभियान में कहा करते थे, तो हर सरकारी महकमे में सुधार करना होगा, खासकर उन विभागों में, जिनकी जिम्मेवारी है जनता को सरकारी सेवाएं उपलब्ध कराना। मेरी फेहरिस्त में सबसे ज्यादा सुधारों की जरूरत है शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में, ताकि हमारे स्कूल और अस्पताल कम से कम उतने अच्छे हो जाएं, जितने दक्षिण-पूर्वी देशों में हैं। भारत की आधी से ज्यादा आबादी नौजवानों की है और यही है देश का असली धन, लेकिन तब जब इन नौजवानों को हम शिक्षित और स्वस्थ बना सकेंगे। ऐसा नहीं कर पाते हैं अगर हम तो यही नौजवान बन सकते हैं भारत की सबसे बड़ी समस्या। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के बाद न तो मोदी ने इन विभागों में सुधार लाने की कोशिश की है और न ही किसी भाजपा मुख्यमंत्री ने ऐसा किया है अभी तक।
प्रधानमंत्री ने लाल किले से अपने पहले भाषण में स्पष्ट किया था कि उनकी नजर में सफाई बहुत अहमियत रखती है। देशवासियों से आग्रह किया था कि हम सब मिल कर तय करें कि अपनी गलियां, अपने गांव, अपने शहर, अपने मंदिर साफ रखेंगे। इसी से शुरू हुआ था स्वच्छ भारत अभियान, लेकिन इतना नाकाम रहा है यह अभियान कि प्रधानमंत्री के अपने चुनाव क्षेत्र में भी सफाई हुई है अगर तो नाम के वास्ते, दिखावे के तौर पर। बनारस शहर को दो सालों के अंदर साफ करना मुश्किल काम नहीं था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है। मोदी जब जाते हैं बनारस तो जिन घाटों पर वे जाते हैं वहां सफाई हो जाती है, लेकिन बाकी शहर वैसे का वैसा गंदगी में डूबा रहता है। हां, दिखावे के तौर पर बन गए हैं कुछ ई-टॉयलेट, लेकिन दिखावे से आगे गई होती बनारस की सफाई तो यकीन कीजिए कि उत्तर प्रदेश में आने वाला चुनाव भारतीय जनता पार्टी आराम से जीत सकती थी।
निजी तौर पर मैंने मोदी में देखा है एक परिवर्तन, जो चिंताजनक है। आजकल अपने भाषण में वे गरीबी हटाने की बातें करते हैं। माना कि गरीबी हटाना भारत के लिए सबसे जरूरी काम है, लेकिन इसको हटाने के दो रास्ते हैं। एक वह रास्ता जो कांग्रेस ने अपनाया है दशकों से, जिसके तहत मनरेगा जैसी योजनाएं तैयार की गर्इं, यानी असली रोजगार के बदले बेरोजगारी भत्ता। गरीबी कम नहीं हुई, पर गरीबों के लिए कुछ राहत दी गई। दूसरा रास्ता वह है जिसका जिक्र मोदी बार-बार करते थे 2014 के चुनाव अभियान में। उस रास्ते के लिए निवेश चाहिए बहुत बड़े पैमाने पर सड़क, बिजली, पानी, स्कूल, अस्पताल और अन्य सरकारी सेवाओं में। ये सेवाएं हैं गरीबी हटाने के असली औजार। इन औजारों को जिन देशों ने दिए हैं जनता के हाथों में उनमें गरीब जनता ने अपनी गरीबी खुद दूर कर दी है। बहुत उम्मीद थी प्रधानमंत्री से कि वे इस नए रास्ते पर चलेंगे, क्योंकि यही रास्ता है परिवर्तन लाने का। अफसोस कि उन्होंने रास्ता बदल दिया और उस पुराने रास्ते पर चल पड़े हैं, जिस पर हमने नाकामी ही देखी है।