अजीब रिश्ता है नरेंद्र मोदी की सरकार का इस देश के मुसलमानों के साथ। मोदी कहते नहीं थकते हैं कि वे मुसलमानों का भला चाहते हैं, इसलिए उन्होंने तीन तलाक वाली प्रथा को कानूनी अपराध का दर्जा दिया। और अब जो वक्फ कानून में संशोधन लाए गए हैं, उनके बारे में कहते हैं कि यह सिर्फ इसलिए कि गरीब मुसलमानों के लिए वक्फ का पैसा सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए।

सो, ऐसा क्यों है कि पिछले सप्ताह ईद पर मुसलमानों ने काली पट्टी अपनी बांहों पर बांध कर नमाज अदा की? मुसलिम राजनेता और बुद्धिजीवी क्यों हल्ला मचा रहे हैं वक्फ के नए कानून को लेकर? क्या इसलिए कि मुसलमानों का विश्वास नहीं जीत पाए हैं मोदी? मैंने जब अपने मुसलिम दोस्तों से इसके बारे में पूछा, तो उन्होंने याद दिलाया मुझे कि मोदी के शासनकाल में मुसलमानों और इस्लाम पर जरूरत से ज्यादा हमले हुए हैं। इन हमलों की शुरुआत हुई थी 2015 में, जब दादरी गांव में मोहम्मद अखलाक को उसको घर से घसीट कर हिंदुओं की भीड़ ने जान से मार डाला उसके परिजनों के सामने।

सड़कों पर घूम रहे गोरक्षक गाड़ियों को रोककर गायों का ढूंढ़ने में लग गए

प्रधानमंत्री ने इस बारे में कुछ नहीं कहा, लेकिन मैंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ नेता से जब बात की, तो उन्होंने निंदा करने के बदले कहा ‘कम से कम हिंदू अब मारने लगे हैं। पहले तो मरते ही थे।’ इस किस्म की बातें जब भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने कीं, तो इस दल के कार्यकर्ताओं को साफ इशारा मिला कि मुसलमानों को मारना जायज है। इसके बाद उत्तर भारत की सड़कों पर घूमने लगे गोरक्षक, जो गाड़ियों को रोक कर गायों को ढूंढ़ने लगे। गायें जब मिलतीं मुसलमानों के पास, तो उनको कई बार जान से मार दिया जाता।

फिर जब योगी आदित्यनाथ बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, तो उन्होंने थानों में ‘रोमियो स्क्वाड’ तैयार किए, जिनका काम था हिंदू लड़कियों को मुसलमान लड़कों से बचाना। लव जिहाद के नाम पर मारे गए कई मुसलिम पुरुष। इसके बाद ‘जमीन जिहाद’ को लेकर हल्ला मचने लगा और खबरें फैलाई गईं कि वक्फ सरकारी जमीनों पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है, इसलिए अब रेल और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे ज्यादा जमीन आज वक्फ के हाथों में है। माना कि वक्फ के मुतवालियों द्वारा कई किस्म का भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन पिछले सप्ताह जो कानून संसद में पारित हुआ है उसकी क्या वास्तव में आवश्यकता थी?

सरकारी अधिकारियों को इन संशोधनों ने ज्यादा अधिकार दिया है वक्फ के काम में दखल देने का, लेकिन क्या सरकारी अफसर दूध के धुले हैं? इससे भी अहम सवाल मेरी राय में यह है कि जब मोदी में मुसलमानों का विश्वास टूट गया है, तो क्या जरूरी था इस वक्त इस कानून को लाना? इस देश में जब भी सरकारी अधिकारियों को इजाजत मिली है धर्म-मजहब के मामलों में दखल देने की, नतीजे अच्छे नहीं दिखे हैं। मेरी जानकारी के विश्वनाथ मंदिर के महंत हैं, जिनकी शिकायत है कि मंदिर का प्रशासन छीन कर सरकार ने अच्छा नहीं किया है। इसलिए कि जिन परंपराओं को उन्होंने पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुरक्षित रखा है, उसके बारे में सरकारी अफसर कुछ नहीं जानते हैं।

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हो सकता है, वक्फ के कामकाज में दखल देकर ऐसा ही कुछ होने लगेगा। नहीं भी होता है अगर, तो सवाल यह है कि इस समय यह नया कानून क्या हिंदुओं और मुसलमानों के बीच जो पहले से तनाव बना हुआ है उसको और नहीं बढ़ाने का काम करेगा? यथार्थ यह है कि मुसलमानों का विश्वास मोदी नहीं जीत पाए हैं और वक्फ में यह दखल ज्यादातर लोग शक की नजर से देखेंगे। मेरी अपनी राय में मोदी सरकार के सामने इन दिनों आर्थिक समस्याओं का पहाड़ दिखने लगा है। डोनाल्ड ट्रंप के शुल्क युद्ध के बाद, तो बेहतर होता अगर इन आर्थिक समस्याओं पर ध्यान दिया जाए।

कुछ लोग मानते हैं कि यह सब किया जा रहा है देश की आर्थिक समस्याओं से ध्यान भटकाने के मकसद से और ऐसा मैं भी मानने लगी हूं। आर्थिक मंदी के आसार दिखने लगे हैं, तब क्या हमारे नेताओं को उसको लेकर देश को आश्वस्त नहीं करना चाहिए, न कि धर्म-मजहब के चक्र में पड़ना चाहिए। लोकसभा में जब चर्चा हुई थी पिछले सप्ताह, तो मंत्रियों ने बार-बार साबित करने की कोशिश की थी कि मोदी सिर्फ पसमांदा और गरीब मुसलिम कौम के भले के लिए यह नया कानून ला रहे हैं, लेकिन जब सरकारी अधिकारियों में उतना ही भ्रष्टाचार देखने को मिलता है जितना कहते हैं वक्फ में है, तो क्या वास्तव में गरीब मुसलमानों के अच्छे दिन आने वाले हैं?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब मुसलमानों का विश्वास पहले से खो बैठी है मोदी सरकार, तो वक्फ के कामकाज में छेड़खानी करके क्या हासिल होने वाला है? लगता है, इस बात की चिंता भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं को भी है। कई ‘सरकारी’ मुसलमानों के लेख पढ़ने को मिले पिछले सप्ताह, जिनमें उन्होंने वक्फ के इस नए कानून का समर्थन जताया प्रधानमंत्री की प्रशंसा करके। मेरी नजर में मुसलमानों को लेकर सबसे बड़ी समस्या मोदी सरकार के सामने यही है कि उनका विश्वास जीतने के लिए क्या करना चाहिए।

अशांति-सी फैली हुई है देश भर में मुसलिम समाज के अंदर। जो बहुत गरीब हैं वे चुपचाप मान चुके हैं कि भारत में अब उनका दर्जा दूसरे नंबर के नागरिक का हो गया है। जो बुद्धिजीवी हैं उनकी तरफ से कोशिशें जारी हैं हिंदुओं के साथ रिश्ते बेहतर करने की। सबसे ज्यादा खतरा है तो उन सिरफिरे जिहादी किस्म के लोगों से, जो ऐसे माहौल में आसानी से देश के दुश्मनों के प्यादा बन सकते हैं आतंक फैलाने के लिए।