उत्तराखंड में थप्पड़ खाने के बाद उम्मीद है कि भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं को समझ में आ गई है यह बात कि अगर उनको कांग्रेस पार्टी के नक्शे-कदम पर ही चलना है तो अभी से तय कर लेना चाहिए उन्हें कि वे उत्तर प्रदेश में बुरी तरह हारने वाले हैं। राजनीतिक पंडित अभी से इस विधानसभा चुनाव को सबसे महत्त्वपूर्ण मानते हैं, क्योंकि यह पूरी तरह से रिहर्सल होगा 2019 के आम चुनाव का। इस राज्य से इतनी सीटें न आतीं 2014 में नरेंद्र मोदी को, तो किसी हाल में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने वाला था। मुलायम सिंह परिवार और गांधी परिवार की कुल मिला कर पांच सीटों के अलावा तमाम सीटें भाजपा को मिली थीं, सो अब अगर विधानसभा चुनाव में हारती है भारतीय जनता पार्टी तो तय हो जाएगा कि मोदी का जादू खत्म हो गया है। लेकिन ऐसा लगता है कि इस बात को भूल कर भाजपा के आला पदाधिकारी कांग्रेस शासित राज्यों में साजिशें रचने में लगे रहे हैं इस साल के शुरू से।

इन साजिशों से कुछ नहीं हासिल होने वाला है बदनामी के अलावा। सो, विनम्रता से अर्ज करना चाहूंगी प्रधानमंत्रीजी से कि जल्दी ही एक चिंतन बैठक बुलाएं और नई रणनीति तैयार करने में लग जाएं। इस चिंतन बैठक में भाजपा मुख्यमंत्रियों से पूछें कि परिवर्तन और विकास के तौर पर उन्होंने अपने राज्यों में क्या हासिल किया है अभी तक।

मैं महाराष्ट्र में अपना काफी समय बिताती हूं, सो यहां परिवर्तन के आने न आने के बारे में बता सकती हूं। सच्चाई यह है कि पिछले दो वर्षों में मैंने परिवर्तन के आसार तक नहीं देखे हैं। कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की तरह इस राज्य के पहले भाजपा मुख्यमंत्री अपना ज्यादा समय मुंबई में बॉलीवुड और क्रिकेट के सितारों की संगत में व्यतीत करते दिखते हैं। उनके मंत्री अपनी आलीशान कोठियों में छिपे रहते हैं, इस राज्य की गंभीर समस्याओं से बेखबर। यह भी नहीं दिखता उन्हें कि इस महानगर के फुटपाथों और बागों में पहुंचने लगे हैं रोज भूखे-प्यासे शरणार्थी उन क्षेत्रों से, जहां सूखे के कारण उनके खेत तबाह हो गए हैं और उनके पशु बिक या मर गए हैं। इनसे जब पूछते हैं पत्रकार कि मुंबई में उनको क्या राहत मिली है, तो अक्सर कहते हैं कि सरकार से तो कुछ नहीं मिला है, लेकिन मुंबई में कम से कम पानी मिल जाता है आसानी से।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने पिछले साल से ही मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में राहत पहुंचाने का काम शुरू किया होता, तो रेलगाड़ियों में पीने का पानी भिजवाने की नौबत शायद न आती। राहत का काम पहले से शुरू हुआ होता, तो पशुओं के लिए चारे का प्रावधान और बच्चों-बूढ़ों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम बहुत पहले हो गया होता। प्रधानमंत्री बुलाते हैं अगर चिंतन बैठक तो जवाब तलब करने होंगे अपने मुख्यमंत्रियों से अन्य कई विषयों पर भी।

मेरी राय में भाजपा मुख्यमंत्रियों की सबसे बड़ी नाकामी रही है राजनीतिक सभ्यता को बदलने में। वही तामझाम, वही अकड़, वही शान, जो कांग्रेस के मंत्री और पदाधिकारी दिखाया करते थे, आज भी देखने को मिलता है। मसलन, हर सुबह जब मैं मरीन ड्राइव पर जॉगिंग करने जाती हूं, तो एक काफिला दिखता है सड़क के किनारे चलते हुए, जिसको देख कर शर्म भी आती है और गुस्सा भी। काफिले के सामने होते हैं महाराष्ट्र सरकार के एक आला अधिकारी सुरक्षा कर्मियों के घेरे में चलते हुए और उनके पीछे धीरे-धीरे चलती हैं दो एसयूवी गाड़ियां, जिनमें उनके बाकी सुरक्षाकर्मी होते हैं। सुरक्षा की इतनी चिंता है इस अधिकारी को तो क्यों नहीं अपने घर में ही एक जिम बनवा कर कसरत करते हैं? शहर की प्रदूषित हवा खाने का शौक है तो क्यों नहीं टहलते हैं किसी सुरक्षित सरकारी बाग के भीतर?

राजनीतिक सभ्यता में परिवर्तन का अभाव शायद इतना न तकलीफ देता अगर सरकारी सेवाओं में परिवर्तन के आसार दिखने लगे होते। सरकारी स्कूलों में अगर फर्क दिखने लगा होता या सरकारी अस्पतालों में तो कह सकते थे हम कि कुछ परिवर्तन आने लगा है, लेकिन ऐसा किसी भी भाजपा राज्य में अभी तक नहीं हुआ है। वही रद्दी सेवाएं हैं, जो पहले थीं, वही बदहाल बस्तियां, वही गंदगी, वही प्रदूषण। यहां तक कि मेरे कुछ बनारसवासी दोस्त बताते हैं कि यह शहर, जहां से मोदी खुद चुन कर आए हैं उतना ही गंदा और बेहाल है जैसे पहले था। एक महंत के शब्दों में, ‘जिस दिन मोदी स्वयं आते हैं शहर में तो खूब सफाई की जाती है उन घाटों पर, जहां उन्हें जाना होता है, लेकिन उनके वापस चले जाने के फौरन बाद वहां गंदगी दिखने लगती है। रही बात गंगाजी की, तो यहां भी कोई परिवर्तन नजर नहीं आता है।’

प्रधानमंत्री के लिए यह बुरी खबर है, क्योंकि 2014 का चुनाव उन्होंने इसलिए जीता, क्योंकि दूर-दराज देहातों में लोगों को मालूम हो गया था कि गुजरात में संपन्नता लाने में उनका व्यक्तिगत योगदान था। बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के छोटे-छोटे गावों में मुझे मिलते थे लोग, जो कहते थे कि मोदी को वोट इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि उनको विश्वास है कि गुजरात में अगर संपन्नता लाने में सफल रहे हैं मोदी, तो देश को भी संपन्न बना सकेंगे। मैं जब उनसे पूछती थी कि उनको गुजरात के बारे में यह सब कैसे मालूम हुआ, तो कइयों का कहना था कि गुजरात जाकर आए हैं, रोजगार की तलाश में।

प्रधानमंत्री को याद रखना चाहिए कि वे जीते क्यों थे और कांग्रेस की हार किस वास्ते हुई। उनको दो शब्द सुबह-शाम जपने चाहिए एकांत में: परिवर्तन और विकास।