पवन कुमार वर्मा
ए घर में आकर सभी बहुत खुश थे। सबको अपनी-अपनी जगह मिल गई। सोफा-सेट ड्राइंग रूम में, तो फ्रिज किचेन में, डबल-बेड बेडरूम में, तो डाइनिंग टेबल हॉल में। बोरे में बांध कर रखे गए बर्तन भी बाहर निकाले गए। बोरे से बाहर आते ही उनकी आवाज पूरे घर में सुनाई देने लगी। उनके लिए किचेन में अलमारी बनाई गई थी। कई साल से सारे सामान को एक के ऊपर एक करके रखा गया था। किराए के घर में जगह की कमी के कारण ऐसा करना पड़ता है। नए घर में बहुत जगह थी। यहां वे फैल कर रह सकते थे।
आज सुबह प्रणय के पापा एक बढ़ई को घर ले आए। उसे सारा सामान दिखाया। उससे पहले सोफा-सेट और डाइनिंग टेबल ठीक करने को कहा। सोफा-सेट के तो कपड़े तक बदलने की बात हो गई। यह सुन कर वह खुश हो गया। उसे अब नए कपड़े मिलेंगे। मगर सबसे बुरी हालत डबल बेड की थी। सामान ले आने में उसके एक पैर की लकड़ी चटक गई थी। अब यह डर था कि कहीं यह रात में टूट गई तो पूरा परिवार बेड से नीचे गिर जाएगा। उसकी ओर तो कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।
अगले दिन से बढ़ई आने लगा। उसने सोफा-सेट के पुराने कपड़े हटाए। उसकी लकड़ी को देखा। वह ठीक थी। उसने उसकी अच्छी तरह सफाई की। उस पर नया पेंट लगाया और फिर पॉलिश की। सोफा-सेट अब चमकने लगा। सोफा-सेट के बाद बढ़ई डाइनिंग-टेबल के पास आ गया। उसकी हालत ठीक थी। उस पर केवल पेंट और पॉलिश की जरूरत थी। बढ़ई ने अपने एक साथी को उस पर लगा दिया।
‘साहब, कुछ और काम हो तो बताइए।’ बढ़ई ने प्रणय के पापा से पूछा। बेड परेशान था कि उस पर तो कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है।‘अगर समय हो तो डबल बेड भी देख लो।’ प्रणय के पापा ने कहा। यह सुनते ही बेड खुश हो गया। बढ़ई ने उसको भी बहुत ध्यान से देखा। उसकी नजर बेड के पैर की ओर गई। सच में उसकी हालत ठीक नहीं थी। उसे बदलना बहुत जरूरी था। उसने तुरंत एक दूसरा पैर तैयार किया और उस टूटे पैर की जगह लगा दिया। अब डबल बेड खुश था। शाम होते-होते बढ़ई ने सारे सामान की हालत ठीक कर दी। अब सभी चमक रहे थे।
प्रणय की मम्मी ने बोरे में बंद बर्तनों को अच्छी तरह से धुलवाया। वे भी साफ-सुथरे दिखने लगे। उन्हें किचेन की अलमारी में लगा दिया गया।
मम्मी बड़े चाव से नए घर की साफ-सफाई करतीं थीं। घर के सारे सामान रोज के रोज साफ किए जाते थे।
एक दिन की बात है। रात का समय था। किचेन से बड़े जोर की आवाज आई। सब चौंक गए। एक गिलास जमीन पर पड़ा था। ‘तुम नीचे कैसे गिर गए?’ प्रेशर कुकर भी घबरा कर उठ गया। ‘पता नहीं किसने मुझे बड़े जोर से धक्का दिया।’ उसने रोते हुए कहा। ‘लेकिन यहां तो कोई भी नहीं है। फिर किसने तुम्हें धक्का दिया?’ शोर-गुल सुन कर कटोरे की भी नींद खुल गई।
‘इसे मैंने गिराया है। मेरे रास्ते में जो भी आएगा, उसके साथ ऐसा ही होगा।’ ऊपर की अलमारी से आवाज आई। सबने ऊपर देखा। वहां एक मोटा चूहा था। वह अपनी मूंछों पर हाथ फेर रहा था। ‘लेकिन यह तो हमारा घर है। तुम कहां से आ गए?’ दूर से डाइनिंग टेबल ने उसे समझाने की कोशिश की। ‘अब मैं भी यहीं रहूंगा।’ मोटे चूहे ने चीख कर कहा। उसकी कड़क आवाज सुन कर सब डर गए।
अब तो हर रात वह चूहा घर में धमा-चौकड़ी मचाता रहता। कभी बर्तनों को पटकता, कभी बाहर रखी सब्जियों को इधर-उधर बिखेर देता, तो कभी फ्रिज के अंदर जाने के लिए उसे अपने नाखून से खरोंच देता। सभी उससे परेशान हो गए थे। एक दिन वह सोफा-सेट से टकरा गया। वह उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गया। इस पर सोफा-सेट ने विरोध किया।
‘मैं इसी में अपना घर बनाऊंगा। इसके नरम-नरम गद्दे मुझे बहुत अच्छे लगते हैं।’ उसने सोफे से साफ-साफ कह दिया। ‘लेकिन मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा। बाहर से आने वाले लोग यहीं बैठते हैं। इसलिए मैं तुम्हें यहां गंदगी नहीं करने दूंगा।’ सोफा भी अपनी जगह पर तन गया।
फिर तो उसकी उस मोटे चूहे से जम कर टक्कर हुई। इस टक्कर में सोफा-सेट के नए कपड़े कई जगह से फट गए। लेकिन उसने उस चूहे को वहां नहीं आने दिया। सवेरा होने लगा था। चूहा वहां से भाग कर फिर से किचेन की अलमारी में छिप गया। मम्मी जब ड्राइंग-रूम की सफाई करने आर्इं तो देखा, सोफा-सेट का कपड़ा कई जगह से फटा है।
‘यह किसने किया?’ वह जोर से चिल्लार्इं। उनकी आवाज सुन कर घर के सभी लोग वहां आ गए। ‘रात-भर घर में बर्तन और सामान के गिरने की आवाज आती रहती है। लगता है, कोई चूहा घर में आ गया है। मैंने उसे रात में इधर-उधर भागते देखा है। अगर उसे नहीं भगाया गया तो वह सब कुछ खराब कर देगा। आज शाम को मैं घर लौटते समय चूहा पकड़ने वाला पिजरा ले आऊंगा।’ प्रणय के पापा ने कहा।
शाम को वे पिंजरा ले आए। रात के खाने के बाद उस पिंजरे में रोटी का टुकड़ा लगा कर किचेन के दरवाजे पर रख दिया गया। रात को मोटा चूहा बाहर आया। आज उसने सोफा-सेट को सबक सिखाने की सोच रखी थी। अलमारी से नीचे आते ही किचेन के दरवाजे पर सबसे पहले उसे वह पिंजरा दिखाई दिया। घर में आए इस नए सामान को वह बहुत ध्यान से देखने लगा।
‘यह तो छोटे से घर जैसा है।… और इसमें खाने के लिए रोटी भी है। पहले कुछ खा लेना चाहिए।’ वह मन ही मन बोला, फिर धीरे से पिंजरे के अंदर चला गया।
कटोरी बहुत ध्यान से यह सब देख रही थी। जैसे ही चूहे ने रोटी खींची, पिंजरे का दरवाजा बंद हो गया। मोटा चूहा उसमें कैद हो गया। पिंजरे से बाहर निकलने के लिए वह उसके दरवाजे को जोर-जोर से पीटने लगा, लेकिन वह नहीं खुला। अब उसको सारी बात समझ में आ गई। यह सब उसे पकड़ने के लिए किया गया था।
मोटे चूहे को पिंजरे में बन्द देखकर कटोरी जोर-जोर से चिल्लाने लगी, ‘वह देखो, चूहा पकड़ा गया।’ उसकी आवाज सुन कर सबका ध्यान उसकी ओर गया। चूहे को पिंजरे में देख कर सबके सब बहुत खुश हुए। अगली सुबह पापा ने उसे दूर तालाब के किनारे ले जाकर छोड़ दिया। उसके जाते ही घर में फिर से शांति लौट आई।
कविता
नागेश पांडेय ‘संजय’
धीरे चलिए न!
अरे! ड्राइवर अंकल, थोड़ा
धीरे चलिए न।
यह बच्चों की बस है, कोई
एरोप्लेन नहीं।
इतनी तेज चलाने पर क्या,
कोई बैन नहीं?
बस है या फिर कोई दमकल?
धीरे चलिए न।
जब जल्दी में ब्रेक लगाते,
हम सब जाते हिल।
कई बार तो टकरा जाते,
धुक-धुक करता दिल।
बला-मुसीबत टल-टल, थोड़ा
धीरे चलिए न।
दुर्घटना से देर भली है,
अंकल जानो ये।
जल्दी का तो काम बुरा है,
अंकल मानो ये।
डर लगता है पल-पल, थोड़ा
धीरे चलिए न।
शब्द-भेद
कुछ शब्द एक जैसे लगते हैं। इस तरह उन्हें लिखने में अक्सर गड़बड़ी हो जाती है। इससे बचने के लिए आइए उनके अर्थ जानते हुए उनका अंतर समझते हैं।