जबसे अनुच्छेद तीन सौ सत्तर का खात्मा किया गया है, कश्मीर पर ‘विशेषज्ञों’ की जैसे बहार आ गई है। रोज दिखते हैं टीवी चर्चाओं में बड़ी-बड़ी बातें करते हुए और रोज अखबारों में छपते हैं ऐसे लोगों के लेख, जिन्होंने शायद कश्मीर घाटी में कदम भी नहीं रखा होगा। लेकिन इनमें आम सहमति-सी बन चुकी है कि कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करके नरेंद्र मोदी कश्मीरियों की विशेष पहचान भी खत्म करना चाहते हैं। सवाल यह है कि किस विशेष पहचान की बात कर रहे हैं? उस विशेष पहचान की जब कश्मीर घाटी में इस्लाम का चेहरा इतना उदार हुआ करता था कि औरतें बेनकाब मस्जिदों में नमाज पढ़ने जाती थीं? उस विशेष पहचान की जब कश्मीरी मुसलमान और पंडित इतने करीब हुआ करते थे कि सांप्रदायिक दंगे कभी नहीं हुए थे? या वर्तमान विशेष पहचान की जब कट्टरपंथी इस्लाम ने काली चादर डाल दी है, उस पुरानी कश्मीरियत पर जो वास्तव में विशेष थी?

मैंने अपनी आंखों से कश्मीर को बदलते देखा है। याद है मुझे अच्छी तरह मेरे बचपन का कश्मीर, जब हम डल झील के किसी हाउसबोट में ठहरा करते थे और हंसते-खेलते छुट्टियां मनाते थे। ये वे दिन थे जब याद करना मुश्किल था कि यहां एक ऐसी राजनीतिक समस्या है, जिसको लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हुए हैं। याद मुझे वह कश्मीर भी है, जब जिहादी इस्लाम का साया तक न था घाटी में, जब श्रीनगर के होटलों में अक्सर दिखते थे हिंदी फिल्मों के सितारे, क्योंकि हमेशा यहां कोई न कोई शूटिंग हो रही होती थी। याद मुझे वे दिन भी हैं, जब कट्टरपंथी इस्लाम के प्रचार के लिए अरब देशों ने जमात-ए-इस्लामी जैसी संस्थाओं को इतना पैसा भेजना शुरू किया कि देखते-देखते बदलने लगा कश्मीर।

फिर जब दिल्ली में बैठे राजनेताओं की गलतियों के कारण आजादी के लिए मुहिम शुरू हुई और पाकिस्तान ने अपने जिहादी उतारे मैदान में तब इतनी अशांति फैली घाटी में कि मैं तकरीबन हर महीने जाया करती थी किसी नए हादसे के बारे में लिखने। मैं गवाह हूं उस दौर की, जब मुहिम की अगुआई करने पाकिस्तान ने हिज्बुल मुजाहिदीन को कायम किया और कश्मीर की शक्ल इतनी तेजी से बदल गई कि इस घाटी में पंडितों के लिए पांव रखने की जगह तक न रही। वर्तमान हाल यह है कश्मीर घाटी के हर कोने में आसार दिखते हैं कट्टरपंथी इस्लाम के। अनुच्छेद 370 हटाए जाने से अगर कट्टरपंथी इस्लाम ही खत्म होने लगता है घाटी में, तो बहुत बड़ी बात होगी।

रास्ता लेकिन कठिन है। कश्मीरियों ने साबित किया है पिछले तीन-चार सालों में कि उनकी नजरों में बुरहान वानी जैसे युवक आतंकवादी नहीं हीरो हैं। वानी के जनाजे में शामिल हुए थे हजारों की तादाद में कश्मीरी, सो जाहिर है कि जिस जिहाद के लिए वानी ने अपनी जान दे दी, उस जिहाद का समर्थन करते हैं नौजवान कश्मीरी। इस जिहाद का एक ही मकसद है और वह है कश्मीर में शरीअत नाफिस करना। यानी कश्मीर को एक इस्लामी रियासत में तब्दील करना। बुरहान वानी सिर्फ एक प्यादा था, पाकिस्तान के हाथों में और ऐसे प्यादे और भी हैं पाकिस्तान के पास, जिनके चेहरे अगले कुछ महीनों में दिखने लगेंगे। आखिर कब तक पूरी घाटी को कर्फ्यू में रख सकती है भारत सरकार?

पाकिस्तान इस बाजी को हार चुका है, लेकिन भारत के खिलाफ उसका अघोषित युद्ध जारी अब भी है और इतनी आसानी से खत्म नहीं होने वाला है। युद्धभूमि है कश्मीर घाटी। सो, पिछले हफ्ते जब प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि कश्मीर और लद्दाख दुनिया के सबसे पसंदीदा टूरिस्ट स्थल बन सकते हैं, शायद उन्होंने कश्मीर के वर्तमान यथार्थ को अनदेखा किया। वर्तमान हाल कश्मीर घाटी का यह है कि अशांति की जड़ें इतनी गहरी हैं कि उनको उखाड़ना बहुत मुश्किल होगा। वर्तमान यथार्थ यह भी है कि निवेशकों की लंबी कतार इतनी जल्दी नहीं लगने वाली है, क्योंकि जिस जगह जिहादी इस्लाम का साया दिखने लगता है वहां पर्यटक नहीं जाते हैं। पर्यटक वहां जाते हैं जहां वे खाने-पीने का मजा ले सकते हैं, जहां सिनमाघरों में जाना खतरनाक न हो, जहां घूमने-फिरने में खतरा न हो। ऐसा हाल कभी था कश्मीर घाटी का, लेकिन अब नहीं है।

रही बात कश्मीर की खास पहचान को जिंदा रखने की अनुच्छेद 370 के खत्म किए जाने के बाद, तो इस पहचान को कोई खतरा नहीं है। भारत में समस्या उलटी है। भारत में विविधता को इतनी अहमियत दी गई है कि हर भारतवासी को पहले पंजाबी, गुजराती या मराठी होने का गर्व है और उसके बाद भारतीय होने का। भारत के हर राज्य में अलग सभ्यता सुरक्षित है और अलग भाषा भी। सो, कश्मीरियों की कश्मीरियत को कोई खतरा नहीं होना चाहिए अनुच्छेद 370 जाने के बाद। खतरा अगर है कश्मीर घाटी की विशेषता को तो उन कश्मीरियों से, जो शिकार हो चुके हैं उस जिहादी सोच के, जिसने कई इस्लामी देशों को बर्बाद कर दिया है। इस सूची में पाकिस्तान भी है। पाकिस्तान में भी हैं कई खूबसूरत जगहें, कई प्राचीन इमारतें, लेकिन प्रधानमंत्री इमरान खान की पूरी कोशिश के बावजूद हमारे इस पड़ोसी देश में विदेशी टूरिस्ट नहीं जाते हैं। वजह है कट्टरपंथी इस्लाम।

कश्मीर घाटी में जो खास जादू कभी हुआ करता था उसको भी खत्म किया है इस किस्म के कट्टरपंथी इस्लाम ने। इसी में परिवर्तन अगर आता है धीरे-धीरे अनुच्छेद 370 जाने के बाद, तो बहुत बड़ी बात होगी। लेकिन आगे का रास्ता आसान नहीं है। मोदी ने अपनी इस चाल से सिर्फ एक बाजी जीती है। असली युद्ध अब आरंभ होगा जब कश्मीर घाटी में विकास और खुशहाली लाने का काम शुरू होगा।