कल तक लगता था कि नरेंद्र मोदी पर हमारे तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की इतनी मेहर है कि उनके अच्छे दिन हमेशा हमेशा रहेंगे। लेकिन जबसे मोदी, देवताओं की मेहर और मतदाताओं के विश्वास से, दूसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं कुछ बदल-सा गया है। अच्छे दिन मोदी के लिए अब इतने अच्छे नहीं रहे हैं। पिछले दो महीनों में आर्थिक और राजनीतिक तौर पर जितनी गलतियां उनकी सरकार कर सकती थी, कर चुकी है। दोष प्रधानमंत्री का है या उनके साथियों का, कहना मुश्किल है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि गलती पर गलती होती गई है।

मेरी नजर में गलतियों की शृंखला शुरू हुई तब जब मोदी के दूसरे दौर के पहले बजट ने साबित कर दिया कि न आर्थिक दिशा में कोई परिवर्तन आने वाला है और न ही प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण में। कभी बातें किया करते थे मोदी संपन्नता लाने की, लेकिन अब ज्यादातर बातें करते हैं गरीबों की, गरीबी हटाने की, बिलकुल उसी तरह जैसे इंदिरा गांधी किया करती थीं, जब देश में समाजवादी दौर उरूज पर था।

समाजवादी सोच खुशहाली ला नहीं सकती है, क्योंकि धन पैदा करनेवालों को इस सोच में अपराधी माना जाता है। हमारी सभ्यता में समाजवादी सोच की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। प्राचीन काल से हमने समृद्धि को पूजा है, दरिद्रता को नहीं। हमारे सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहार दिवाली में पूजा होती है लक्ष्मीजी की। शायद ही कोई दूसरी सभ्यता है जहां धन की देवी होती हो, लेकिन दशकों की समाजवादी मानसिकता ने हमारे राजनेताओं को इतना गुमराह कर दिया है कि मोदी भी गलत आर्थिक दिशा में चलने लग गए हैं। लगता है कि समाजवादी बन गए हैं।

सो, बजट में कर बढ़ाए गए देश के सबसे अमीर लोगों के इतना ज्यादा कि संदेश गया उनको कि बच कर रहना पड़ेगा। निवेश करना हो अगर इस देश में, तो फूंक फंूक के करना। बजट को हजम कर ही रहे थे वे लोग, जिन्होंने इस देश में धन पैदा करने में अपना पूरा जीवन खपाया है, कि वित्त मंत्रालय ने एक थप्पड़ और मारा। एलान किया कि सीएसआर (समाज के प्रति जिम्मेदारी) का उल्लंघन जो करेंगे उनको पच्चीस लाख रुपए का जुर्माना हो सकता है और जेल भी। सीएसआर को अनिवार्य करना पहले ही गलत था। ऐसा सोनिया गांधी ने किया अपने गरीबपरस्त एनजीओ दोस्तों की सलाह लेकर। माना कि धनवान भारतीयों का फर्ज होना चाहिए समाज के लिए कुछ करना, लेकिन जबर्दस्ती क्यों? डराने-धमकाने के बदले प्रधानमंत्री अगर इनसे मिलने की तकलीफ करते तो शायद पाते कि उनकी नई जलशक्ति योजना में ये लोग दिल से मदद करने को तैयार हैं। लेकिन वित्तमंत्री की नई धमकी के बाद उद्योग जगत में, जो पहले से मायूसी छाई हुई थी, गहरा गई है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था के ऊपर घने बादल छाए हुए हैं।

रही बात राजनीति की, तो पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को ऐसी फटकार लगाई कुलदीप सिंह सेंगर पर मेहरबान होने को लेकर, जो शायद ही इस न्यायालय ने पहले कभी लगाई होगी। प्रधान न्यायाधीश ने आदेश दिया है कि उन्नाव में पीड़िता के परिवार को उत्तर प्रदेश सरकार कल तक पच्चीस लाख रुपए मुआवजा देने का काम करे। आदेश यह भी दिया है कि जितने मुकदमे दर्ज हुए हैं सेंगर के खिलाफ उन सबकी सुनवाई आर्इंदा दिल्ली की किसी अदालत में हो।

इस आदेश के बाद ही भारतीय जनता पार्टी ने अपने इस विधायक को निष्काशित किया पार्टी से। यह काम अगर पिछले साल ही किया होता, जब उन्नाव की उस बच्ची की शिकायत पर सेंगर को बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, तो लोग मानते कि भारतीय जनता पार्टी वास्तव में नैतिकता की राह पर चलना चाहती है। इतना विलंब हुआ है, सेंगर को बचाने के इतने प्रयास हुए हैं, कि भारतीय जनता पार्टी की छवि भी खराब हुई है और व्यक्तिगत तौर पर मोदी की भी। क्यों विलंब हुआ, कोई नहीं जानता और वह भी ऐसे कांड में, जहां बच्ची की शिकायत है कि उसका सामूहिक बलात्कार किया है सेंगर और उसके साथियों ने।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत के तारे अब इतना नहीं चमक रहे हैं। इमरान खान हाल में गए वॉशिंगटन प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार और डोनाल्ड ट्रंप उनके करिश्मे से इतना प्रभावित हुए कि कश्मीर समस्या में मध्यस्थता करने का प्रस्ताव रख दिया यह कहते हुए कि मोदी के साथ जब उनकी मुलाकात हुई थी ओसाका में कुछ हफ्ते पहले, तो उन्होंने भी कश्मीर के मसले में अमेरिका की मध्यस्थता की बात की थी। बाद में हमारे विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत की तरफ से ऐसी कोई दरखास्त नहीं की गई है, लेकिन नुकसान हो चुका था। जिस पाकिस्तान के बारे में ट्रंप कभी कहा करते थे कि वह एक झूठा और धोखेबाज देश है, जिसने अमेरिका के अरबों डॉलर लेकर अमेरिका के जवान मारे हैं अफगानिस्तान में, उस पाकिस्तान के लिए फिर से वित्तीय मदद दिलवाने की अब बातें करने लगे हैं।

हम जानते हैं कि ट्रंप ऐसा कर रहे हैं, क्योंकि अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटाना चाहते हैं अमेरिका में अगला राष्ट्रपति चुनाव होने से पहले। लेकिन फिर भी यह कहना पड़ेगा कि पाकिस्तान ने यह बाजी मार ली है। भारत को न्योता तक नहीं मिला है निकट भविष्य में अफगानिस्तान में शांति वार्ता में भाग लेने के लिए। इधर अपने कश्मीर में शांति बहाल होने के बदले तनाव बना रहा उन अफवाओं को लेकर कि मोदी इस राज्य की विशेष स्थिति को हटाना चाहते हैं। धारा 370 को हटाने की बातें भारतीय जनता पार्टी दशकों से करती आई है, सो इन अफवाओं की अहमियत है। नतीजा, कश्मीर घाटी फिर से उबाल पर आ रही है। कहां गए मोदी के अच्छे दिन?