दिल्ली की हवा में जो नफरत फैली है, भारतीय जनता पार्टी के चुनाव अभियान की वजह से उसको कम होने में समय लगेगा। लेकिन इतना हुआ है कम से कम पिछले हफ्ते कि अमित शाह ने स्वीकार कर लिया है कि ‘गोली मारो’ और ‘भारत-पाकिस्तान मैच’ जैसे बयानों ने भाजपा को नुकसान किया। इतना ज्यादा कि दिल्ली में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। काश कि गृह मंत्री थोड़ा-सा आगे बढ़ कर यह भी बता देते कि जब नफरत और जहर घोले जा रहे थे, तब उनकी पार्टी को क्या करना चाहिए था। हड़बड़ी में आकर एक प्रतीक नहीं बनाया गया होता ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का, तो शायद भारतीय जनता पार्टी के प्यादे इतना बेकाबू नहीं होते कि एक मंत्री ने ‘गोली मारो’ वाला नारा कहलवाया एक आम सभा में! फिर शायद शाहीन बाग के बारे में अजीब-अजीब इल्जाम नहीं लगाए जाते।

अमित शाह के प्रशंसक भी मानते हैं कि उन्होंने चुनाव अभियान का रुख बदल कर भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं में नया जोश पैदा किया था। सबने सुना जब गृह मंत्री ने कहा ‘बटन इतनी जोर से दबाओ कि करंट शाहीन बाग में लगे।’ दिल्ली की गंगा-जमनी तहजीब से वाकिफ होते वे तो बहुत पहले जान गए होते कि इस शहर में नफरत और जहर घोलने से नहीं जीते जाते हैं चुनाव।

लेकिन अब आसान नहीं होगा कड़वाहट कम करना। जबसे मोदी सरकार का दूसरा दौर शुरू हुआ है, अमित शाह बने रहे हैं सरकार का चेहरा। अपने हर भाषण में उन्होंने कमोबेश यही जाहिर किया है कि वे हिंदुत्ववादी हैं… इतने कि उनके लिए मुसलिम, इस्लाम, पाकिस्तान, बिरयानी जैसे शब्द अनजाने महसूस होने वाले संबोधन हैं। तो उनका संदेश कैसे नहीं पहुंचता भारत के आम मुसलमानों तक? इसलिए शाहीन बाग जैसे मोर्चे खड़े हो गए हैं दिल्ली के अलावा कई शहरों में।

शाहीन बाग से मोर्चा अगर हट भी गया तो देश के मुसलमानों के बीच उनकी नागरिकता छिन जाने का डर कम नहीं होगा। डर उनको सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून से नहीं है। डर उनको है एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से। इसलिए कि वे समझ गए हैं अच्छी तरह कि जब भी यह लाया जाएगा, तो सबसे ज्यादा खतरा मुसलमानों को होगा। इसलिए कि किसी मामूली सरकारी अफसर के हाथों में होगा उनकी भारतीयता साबित करना। निराधार नहीं है उनका यह डर। भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही ऐसा माहौल बना है देश में जिसमें मुसलमानों को लगने लगा है कि वे दूसरे दर्जे के नागरिक बनाए जा रहे हैं। मोदी के पहले दौर में गौ-रक्षकों ने साबित करके दिखाया कि गौरक्षा के नाम पर वे मुसलमानों की हत्या भी कर सकते हैं और उनका कुछ खास नहीं बिगड़ेगा। मोहम्मद अखलाक और पहलू खान के हत्यारे आजाद घूम रहे हैं आज भी। न्याय होने की दूर तक संभावना नहीं दिख रही है।

मोदी के दूसरे दौर के शुरू होते ही तबरेज अंसारी को ‘जय श्रीराम’ कहलवा कर पीट-पीट कर जान से मारा गया। उसके हत्यारे भी जमानत पर छूट गए हैं। इसलिए कानून व्यवस्था में मुसलमानों का विश्वास कम होता गया है। इस विश्वास को दोबारा बहाल करना बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि सबने सुने हैं ऐसे भाषण जो दिल्ली के चुनाव अभियान के शुरू होने से पहले भी कई नेताओं के द्वारा दिए गए हैं। ऐसे भाषण जिनमें कुछ बड़े नेताओं ने बार-बार स्पष्ट किया नाम लेकर कि हिंदू, सिख, बौध, जैन, पारसी और ईसाइयों को अपनी नागरिकता छीने जाने की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए। संदेश कैसे नहीं पहुंचता मुसलमानों को? अब उसका खमियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा!

समस्या गंभीर है इसलिए कि गृह मंत्री का रुख देख कर मुसलमानों से नफरत करने वाली एक पूरी फौज खड़ी हो गई है जो रोज सोशल मीडिया पर इस्लाम, मुसलमान और पाकिस्तान के लिए नफरत प्रकट करती है। रोज याद दिलाते हैं भारतीय जनता पार्टी के ट्रोल कि ‘नया भारत’ बन चुका है जिस में हिंदुओं का बोलबाला रहेगा, किसी और का नहीं। मेरे पीछे पड़े रहते हैं ये ट्रोल, जब से मैंने नरेंद्र मोदी की कुछ नीतियों की आलोचना शुरू की है। इसलिए हर दूसरे दिन मुझे ये लोग पाकिस्तान जाने को कहते हैं। इनकी आवाज को समर्थन मिलता है कई टीवी पत्रकारों से जो बिलकुल इस ही तरह की बातें रोज शाम को करते सुनाई देते हैं टीवी की चर्चा में। इन चर्चा में मैं जब शामिल होती हूं तो हैरान रह जाती हूं इतनी नफरत देख कर। मुसलमानों के लिए इतनी नफरत मैंने उस वक्त भी नहीं देखी थी, जब लालकृष्ण आडवाणी अपने रथ पर सवार होकर अयोध्या के लिए निकले थे सोमनाथ से। जहां भी गई वह रथयात्रा, वहां दंगे हुए थे, जिनमें सैकड़ों लोग मारे गए थे। मरने वालों की तादाद में मुसलमान ज्यादा थे, जैसा अक्सर होता आ है। इस रथयात्रा ने घाव जरूर खोले देश भर में, लेकिन इसके बाद भारतीय जनता पार्टी की सीटें लोकसभा में जो 1984 में सिर्फ दो थीं, पांच वर्षों में सौ तक पहुंच गई थी। साबित हो गया था कि नफरत की राजनीति भारतीय जनता पार्टी के लिए लाभदायक है। उस दौर के घाव भर गए थे

बाबरी मस्जिद के गिरने के बाद।
अब आया है ऐसा दौर जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने साबित कर दिया है कि मुसलमानों के वोट के बिना लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिल सकती है। समस्या सिर्फ यह है कि मुसलमानों की संख्या इतनी ज्यादा है अपने देश में कि उनको कहीं और भेजना मुश्किल नहीं, नामुमकिन है। इसलिए ऐसा लगने लगा है कि ‘न्यू इंडिया’ में प्रयास होगा उनको दूसरे दर्जे के नागरिक बनाने का। नुकसान होगा भारत की छवि को लेकिन क्या किया जाए?