दो दिन बाद आने वाले हैं दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणाम। दिल्लीवाली होने के नाते बहुत सारे चुनाव देखे हैं मैंने इस शहर में, लेकिन यह चुनाव खास था। इसलिए कि पहली बार इतनी नफरत, इतनी कड़वाहट, इतना झूठ देखने को मिला किसी चुनाव अभियान में। दोष भारतीय जनता पार्टी का था। दिल्ली जीतने के लिए क्या नहीं किया इस राजनीतिक दल के वरिष्ठ नेताओं ने। गृहमंत्री के नेतृत्व में ऐसे योद्धा आए मैदान में, जिनका एक ही मकसद था और वह था इस शहर के हर मुसलमान को गद्दार साबित करना, ताकि हिंदू वोट बैंक मजबूत बन जाए। सो, शाहीनबाग को निशाने पर रखा भारतीय जनता पार्टी के हर प्रचारक ने।
किसी को अगर शक था कि पूरे अभियान का नेतृत्व गृहमंत्री खुद कर रहे थे, तो अमित शाह ने शक दूर किया चुनाव अभियान के आखिरी दिनों में यह कह कर कि वोट करते समय बटन (हिंदुओं को) इतनी जोर से दबाना चाहिए कि करंट शाहीनबाग में लगे। उधर थे भारत सरकार के वित्त राज्यमंत्री, जिन्होंने ‘देश के गद्दारों’ कह कर उकसाया एक आमसभा को ‘गोली मारो … को’ कहने के लिए। लखनऊ से योगी आदित्यनाथ आ टपके यह कहने कि केजरीवाल शाहीनबाग की औरतों को बिरयानी खिला कर साबित कर रहे हैं कि देश के साथ गद्दारी वे भी कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के छोटे-मोटे प्रवक्ताओं ने यह भी कह डाला कि शाहीनबाग में ऐसे लोग इकट्ठा हुए हैं, जो आपके घरों में जाकर ‘आपकी बहू-बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे’। और अगर शाहीनबाग जैसे प्रदर्शन रोके नहीं जाएंगे, तो दिल्ली में फिर से मुगल राज स्थापित हो जाएगा।
ऐसी बातों से साबित होता है कि देश के नए शासक दिल्ली को समझ नहीं पाए हैं। यह सच है कि मुगल बादशाहों ने इस शहर को अपनी राजधानी बनाया था। यह भी सच है कि मुसलमानों ने इस शहर में हिंदुओं के साथ जुल्म और अत्याचार किया था। लेकिन यह भी सच है कि दिल्ली में मुसलमानों के आने के बाद वह तहजीब पैदा हुई, जिसको उत्तर भारत में गंगा-जमुनी कहते हैं। यह भी सच है कि उनके आने के बाद उर्दू ने जन्म लिया इस शहर में और गालिब, मीर जैसे उर्दू शायर दिल्ली के थे। दिल्लीवासी थे भीष्म साहनी और यशपाल जैसे महान हिंदी लेखक भी और इन दोनों भाषाओं के संगम से पैदा हुई वह भाषा, जो दिल्ली के लोग अक्सर बोलते हैं और जिसको हिंदुस्तानी कहते हैं हम। दिल्ली की यह खास तहजीब बंटवारे के बाद भी जिंदा रही, बावजूद इसके कि यहां लाखों की तादाद में पंजाब से शरणार्थी आए थे नफरत और जुल्म की कहानियां साथ लेकर।
बंटवारे के बाद दिल्ली में थोड़ा-बहुत हिंदू-मुसलिम तनाव जरूर रहा होगा, लेकिन कभी इतना नहीं कि राजनेताओं के काम आए चुनावों में। पहली बार दिल्ली ने ऐसा चुनाव अभियान देखा है, जिसमें इतनी नफरत दिखी है। अरविंद केजरीवाल की मैं कभी समर्थक नहीं रही हूं, लेकिन मानना पड़ेगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ठीक कहा कि वे करते हैं शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की बातें, तो भारतीय जनता पार्टी का जवाब होता है : शाहीनबाग। वे कहते हैं कि दिल्ली में वायु प्रदूषण कम करना चाहिए, तो इसका भी जवाब आता है : शाहीनबाग। रजत शर्मा की अदालत में जब उनसे शाहीनबाग पर सवाल किया गया, तो केजरीवाल ने कहा- ‘अमित शाह देश के गृहमंत्री हैं, तो क्या एक रास्ता नहीं खाली करा सकते?’
सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपना चुनाव अभियान शाहीनबाग पर केंद्रित रखा, इस उम्मीद से कि हिंदुओं का वोट पूरी तरह उनको मिलेगा। सोशल मीडिया पर उनके योद्धा रोज ट्वीट करके कहते हैं कि मुसलमानों की देशभक्ति पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता है, इसलिए कि उनकी असली भक्ति सिर्फ इस्लाम के लिए होती है। यानी वे कभी भारत के नहीं हो सकते हैं। प्रधानमंत्री ने खुद संसद में पिछले हफ्ते कहा कि संविधान और तिरंगे के पीछे छिप कर शाहीनबाग जैसी जगहों से देश में अराजकता फैलाने का काम हो रहा है।
अगर उन्होंने अपने किसी मंत्री को शाहीनबाग भेजने की तकलीफ की होती, तो उनको मालूम हो गया होता बहुत पहले कि वहां की औरतों को डर कितना है उनके नए नागरिकता कानून से। मैंने जब उनसे इसके बारे में बातें की थीं कुछ दिन पहले, तो उन्होंने समझाया मुझे कि वे जानती हैं कि सीएए से उनको कोई खतरा नहीं है। मगर यह भी जानती हैं कि इसके बाद एनपीआर और एनआरसी जैसी चीजें आएंगी तो उनके पास कोई सबूत नहीं होगा अपनी नागरिकता का, क्योंकि लाखों की संख्या में ऐसे गरीब मुसलमान परिवार हैं इस देश में, जिनके पास दस्तावेज ही नहीं हैं अपनी नागरिकता साबित करने के लिए। यही कारण है कि वे अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। यही कारण है कि दिल्ली की ठंडी रातों में उन्होंने अपना विरोध जारी रखा है। सो, उनको गद्दार कहना या उनकी देशभक्ति पर शक करना गलत ही नहीं, पाप है।
ऐसा करके भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली के वातावरण में इतनी नफरत, इतना तनाव घोल दिया है कि अगले हफ्ते चुनाव परिणाम आने के बाद भी कम नहीं होने वाला है। कहने का मतलब यह है कि एक चुनाव को जीतने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की तहजीब को ही दांव पर लगा दिया है। फिलहाल सर्वेक्षण बता रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी हार रही है, यह सब करने के बावजूद। हारती है अगर तो अच्छा होगा, इसलिए कि इतनी गंदी राजनीति देश को जोड़ने के बदले तोड़ने का काम करती है।