बहुत बार कह चुके हैं गृहमंत्री कि भारत के मुसलमानों की नागरिकता छीनने का प्रावधान नहीं है नए नागरिकता कानून में। बहुत बार कह चुके हैं कि जब देश भर में भारत के नागरिकों की नागरिकता दर्ज की जाएगी एनआरसी में, तो किसी असली भारतीय को कोई खतरा नहीं होगा। लेकिन शायद अपने ही पुराने भाषण भूल कर कह रहे हैं ये बातें अब, जब देश के शहरों और विश्वविद्यालयों में उनके नए नागरिकता कानून का इतना विरोध दिखने लगा है। भूल गए हैं कि मुसलमान ‘घुसपैठियों’ को उन्होंने दीमक कहा है बार-बार। भूल गए हैं कि उन्होंने बहुत बार कहा है कि उनको ‘‘चून-चून’ कर बाहर फेंकेंगे।’’

किस मकसद से उन्होंने ये तकरीरें दीं, सिर्फ गृहमंत्री खुद जानते हैं, लेकिन आम मुसलमान तक संदेश यही पहुंचा है नागरिकता कानून में संशोधन के बाद कि उनके खिलाफ साजिश है यह कानून। क्यों नहीं यह संदेश जाएगा, जब गृहमंत्री इतनी बार कह चुके हैं कि सिख, हिंदू, बौद्ध, जैन शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए यह संशोधन किया गया है। बाकी रहते हैं सिर्फ मुसलमान, बावजूद इसके कि पाकिस्तान में उत्पीड़ित शिया और अहमदीया भी हैं। सो, अगर खौफ का माहौल बन गया है भारत के मुसलमानों में, तो क्यों न बने? अशांति और अराजकता देश के बड़े शहरों में फैलने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक चुनावी भाषण में पिछले हफ्ते कांग्रस पार्टी को चुनौती दी यह कहते हुए कि क्या कांग्रेस हर पाकिस्तानी को भारत की नागरिकता देना चाहती है, क्या तीन तलाक को वापस लाना चाहती है, क्या अनुच्छेद 370 को वापस लाना चाहती है?

चुनौती देते हुए मोदी ने शायद ध्यान नहीं दिया कि ये तमाम कदम मुसलमानों से वास्ता रखते हैं। थोड़ा सोचने के बाद दिया होता यह भाषण तो जरूर दिखता उन्हें कि अशांति के माहौल में ऐसा भाषण आग सुलगाने का काम करेगा, बुझाने का नहीं। सो, सुलगती रही है आग और लखनऊ में जहां हिंसक भीड़ ने पुलिस चौकी तक जला डाली और मीडिया के ओबी वाहन भी जलाए गए, मालूम पड़ा है बाद में कि नकाबपोश बदमाश घुस गए थे विरोध करते लोगों के बीच और हिंसा करने के बाद गायब हो गए। ऐसा अक्सर होता है, लेकिन विरोध की बुनियाद असली है, सो सबको ‘अर्बन नक्सल’ और राष्ट्रद्रोही कहने से आग और भड़कने वाली है।

अमन-शांति लाना चाहते हैं प्रधानमंत्री, तो जरूरी है कि अपनी ऊंचाइयों से उतर कर उन छात्रों से बातचीत शुरू करने का प्रयास करें, जिन्होंने नागरिकता कानून के खिलाफ इस आंदोलन का नेतृत्व किया है। जरूरी है इस बात पर भी ध्यान देना कि दुनिया में उनकी छवि कितनी बदल गई है उनके दूसरे दौर के पहले महीनों में। अपने पहले दौर में जब उन्होंने विकास और परिवर्तन के नारे पर पूर्ण बहुमत हासिल किया, तो दुनिया उनको भारत की नई आशा का प्रतीक मानती थी। जब उन्होंने कहा था कि उनकी सरकार ऐसा माहौल बनाना चाहती है भारत में, जो निवेशकों के लिए लाल कालीन बिछाएगा लाल फीताशाही हटा कर, तो विदेशी निवेशकों की कतारें लग गई थीं।

अफसोस कि अपने दूसरे दौर में उन्होंने विकास और परिवर्तन को ताक पर रख कर उन मुद्दों पर ध्यान दिया है, जो आरएसएस को प्रिय हैं। कोई छिपी बात नहीं है कि आम संघी मुसलमानों की तरफ शक की नजरों से देखता है, उनके राष्ट्र प्रेम और उनके मजहब पर शक करता है। सो, जब कोई सरकार ऐसे कदम उठाती है जो मुसलमानों के खिलाफ दिखने वाले होते हैं, तो आरएसएस के बड़े नेता हमेशा अपनी खुशी जाहिर करने में देर नहीं करते हैं। मोदी के दूसरे दौर में सिर्फ ऐसे कदम ही उठे हैं। कश्मीर जो भारत का अकेला मुसलिम बहुल राज्य था, तीन टुकड़ों में तोड़ दिया गया है। और अब आया है ऐसा नागरिकता कानून, जिसने आम मुसलमानों में एनआरसी की संभावना से ही डरा दिया है।

मोदी अपने आप को गांधीजी का भक्त मानते हैं, सो विनम्रता से अर्ज करना चाहती हूं कि वे अपने आप से पूछें कि गांधी आज हमारे बीच होते, तो क्या सरकार के इस नागरिकता कानून के समर्थन में खड़े होते या इस कानून के जो लोग विरोध कर रहे हैं उनके बीच दिखते? इस सवाल का जवाब उनको फौरन मिल जाना चाहिए, इसलिए कि हिंदुओं और मुसलमानों में भाईचारा लाने के प्रयास में ही उन्होंने अपनी जान गंवाई। इस भाईचारे को कायम करना मोदी सरकार का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए अब। इसलिए कि इस नए नागरिकता कानून ने अगर मुसलमानों को एक संदेश दिया है, तो हिंदुओं को एक अलग और उतना ही खतरनाक संदेश दिया है कि भारत अब एक हिंदू राष्ट्र बनने जा रहा है।

सोशल मीडिया पर जो लोग अपने आप को मोदी के कट्टर भक्त मानते हैं, अभी से कहने लगे हैं कि समय आ गया है, मुसलमानों को भारत से भगा देने का। ताने देते हुए ट्वीट करते हैं कि मुसलमानों के लिए कई इस्लामी मुल्क हैं जाने को और पाकिस्तान तो है ही पड़ोस में। ऐसी बातें करते हुए शायद जानते नहीं हैं कि पाकिस्तान के सैनिक शासकों का शुरू से सपना रहा है कि भारत एक बार फिर टूट जाएगा और बंटवारा होगा फिर से इस्लाम के नाम पर। इस बुरे सपने को पूरा करने का काम कर रहा है यह नया नागरिकता कानून, क्योंकि आम मुसलमानों ने इसको जोड़ लिया है एनआरसी के साथ, जिसमें वे जानते हैं कि लाखों, करोड़ों गरीब मुसलमान साबित नहीं कर पाएंगे कि वे हमेशा से रहे हैं भारत के नागरिक। जिनके सिर पर छत ही नहीं है, कहां से लाएंगे सबूत के दस्तावेज? कैसे साबित कर पाएंगे अपनी नागरिकता?