ऐसा लगने लगा है जैसे एअर स्ट्राइक के बाद हमारे विपक्ष के सारे नेता बौखला से गए हैं, इतना कि अपनी सुधबुध खो बैठे हैं। या फिर, जैसा नरेंद्र मोदी खुद कह रहे हैं, उनको मोदी से नफरत इतनी ज्यादा है कि देख नहीं पा रहे हैं कि इस नफरत की भावना को वे देश के लिए भी दिखाने लगे हैं। वरना क्या कारण है कि मोदी को नीचा दिखाने के मारे उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के गुण इतनी जोर-जोर से गाए हैं कि पाकिस्तान में कुछ लोगों ने मुहिम शुरू की है इमरान खान को नोबेल शांति पुरस्कार दिलवाने की। ऐसी बातें सुन कर इमरान खान खुद शर्मिंदा हुए और शर्माते हुए कहा कि वे अपने आप को इतने बड़े पुरस्कार के हकदार नहीं समझते हैं। ‘यह पुरस्कार मिलना चाहिए उनको जो कश्मीर में शांति लाने का काम करते हैं।’

चर्चा शुरू हुई भी है अगर, तो सिर्फ इसलिए कि भारत में विपक्ष के आला राजनेताओं ने एक स्वर में कहा है एअर स्ट्राइक के बाद कि उनको विश्वास नहीं है कि बालाकोट में उस जिहादी मुख्यालय पर बम गिरे हैं, जहां वायुसेनाध्यक्ष कहते हैं कि हमारे लड़ाकू विमान गिरा कर आए थे। सबूत मांगे हैं अपने प्रधानमंत्री से बार-बार। और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की तारीफ करते नहीं थके हैं, जबसे उन्होंने हमारे पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को सही सलामत वापस देश भेजा है।
मैंने जब ट्वीट करके पूछा कि ऐसा क्यों है कि हमारे विपक्ष के नेता पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की बातों पर भरोसा करते हैं और हमारे प्रधानमंत्री पर नहीं, तो ट्रोल सेना पीछे पड़ गई मेरे, यह कहते हुए कि हमारे प्रधानमंत्री ने पिछले चार वर्षों में इतने झूठ बोले हैं कि उन पर विश्वास करना मुश्किल हो गया है। सो, विश्वास उस प्रधानमंत्री पर करना आसान है क्या, जो अभी तक मानने को तैयार नहीं है कि उसके देश की सरजमीं से जिहादी हमले हो रहे हैं भारत पर? पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने खुद स्वीकार किया है कि पाकिस्तानी सेना ने जैश-ए-मोहम्मद को पैदा किया था और इस संस्था की सारी गतिविधियां पाकिस्तान से होती हैं, लेकिन अब उनको रोक देना चाहिए, क्योंकि इस संस्था ने उनको ही जान से मारने की दो बार कोशिश की है।

और हमारे विपक्ष के नेता हैं, जो अब भी मोदी से सवाल करते फिर रहे हैं, न कि पाकिस्तान के नेताओं से। इतनी शंका जताई है इन्होंने पुलवामा और बालाकोट को लेकर कि मेरे एक पाकिस्तानी दोस्त ने मुझसे पिछले हफ्ते पूछा कि क्या यह बात सही है कि मोदी ने पुलवामा में आत्मघाती हमला खुद करवाया चुनाव जीतने के लिए। मैंने अपने इस दोस्त को खूब समझाने की कोशिश की कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां ऐसी बात हुई होती, तो उसको छिपाना बहुत मुश्किल है। कोई भी प्रधानमंत्री अपने जवानों को इस घिनौने तरीके से नहीं मार सकता है।

मेरी बातें सुनने के बाद दोस्त ने कहा, ‘भई, मैं आपके टीवी चैनल देखता हूं और मैंने देखा है कि आप ही के मीडिया के लोग और आपके सियासतदान शंका जाता रहे हैं। बल्कि इतने लोगों को आपकी वायुसेना की कार्रवाई पर शक होने लगा है कि विदेशी मीडिया में भी इमरान खान को अमनपरस्त बताया जा रहा है और मोदी को युद्धपरस्त।’ यह सच है और काफी हद तक इसलिए कि भारत के ही पत्रकारों ने लंदन और न्यू यॉर्क के बड़े अखबारों में लिखा है मोदी के खिलाफ।
रही बात अपने विपक्ष के राजनेताओं की, तो उनको यह सुझाव देना जरूरी हो गया है कि अगर वास्तव में चुनाव जितवाना चाहते हैं अपने महागठबंधन को, तो शायद उनको मोदी को नीचा दिखाना बंद करना पड़ेगा। मोदी की छवि वैसे भी काफी अच्छी थी भारत के आम आदमी की नजरों में, लेकिन एअर स्ट्राइक के बाद और भी अच्छी हो गई है। वह इसलिए कि आम भारतीय तंग आ गया था बार-बार पाकिस्तान से मार खाकर। इतने जिहादी हमले किए गए हैं भारत में, जिसमें पाकिस्तान का हाथ साफ दिखा है, लेकिन आज तक हमारे किसी भी प्रधानमंत्री ने लौट कर वार करने की हिम्मत नहीं दिखाई है। सो, करोड़ों भारतीयों का दिल खुश हुआ था, जब हमारी वायुसेना ने एअर स्ट्राइक की थी सीमा पार।

इस स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान से ज्यादा हमारे विपक्ष के नेता बौखलाए हुए दिखे। पहले तो राहुल गांधी ने वायुसेना की तारीफ की, लेकिन ऐसे की जैसे सारा श्रेय उन्हीं को देने की कोशिश कर रहे हों। क्या जानते नहीं हैं कांग्रेस अध्यक्ष कि लोकतांत्रिक देशों में ऐसे हमले तब होते हैं जब प्रधानमंत्री की इजाजत हो? क्या जानते नहीं हैं कि वायुसेना किसी भी हाल में बिना इजाजत के दुश्मन देश पर हमला नहीं कर सकती? बौखलाहट सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष में नहीं दिखी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और भी ज्यादा बौखलाई हुई दिखीं। अपने खास अंदाज में उन्होंने भाषण दिया पिछले हफ्ते, जिसमें कहा कि उनका पूरा समर्थन वायुसेना को है, लेकिन ‘मोदी बाबू’ को नहीं। इसका मतलब क्या हुआ? यही कि ममता दीदी भी समझी नहीं हैं कि मोदी की इजाजत के बिना वायुसेना का एक भी लड़ाकू विमान उड़ान नहीं भर सकता है?
जैसे जैसे चुनाव पास आ रहा है, वैसे वैसे दिखने लगा है कि इस महागठबंधन के पास एक ही चीज है और वह है मोदी से नफरत। यही र्इंधन है, जिस पर यह महागठबंधन चल रहा है, यही गोंद हैं जिससे इसको जोड़ा गया है। सवाल यह है कि इसके आगे उनके पास अगर न नीतियां हैं न विचारधारा, तो इनको जिताएगा कौन? बहुत खोखला लगने लगा है यह महागठबंधन।