एक एंकर ने एक्जिट पोल को एक तरफ अतिरिक्त झुका दिखाने वाले विश्लेषक को परिणाम आने से पहले ही विदा कर दिया, क्योंकि चुनाव परिणाम उसके सर्वे को बुरी तरह से झूठा साबित करने वाले रहे। उधर दूसरे चैनल के एंकर द्वय ने अपने एक्जिट पोल वाले ‘एक्सपर्ट’ को उसकी ‘जोखिम भरी सटीकता’ पर मिठाई खिलाई!
परिणाम आने के पहले वाली शाम को सभी एक्जिट पोल भाजपा को महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों राज्यों में ‘स्वीप’ करा रहे थे। सिर्फ इंडिया टुडे पर प्रदीप गुप्ता ने एक दिन बाद अपना एक्जिट पोल देकर बताया कि किसी का स्वीप कहीं नहीं है और हरियाणा में तो लटकंत विधानसभा होगी।
और जब परिणाम आए तो यही होता दिखा! वृहस्पतिवार को दोपहर तक हरियाणा में भाजपा चालीस पर अटक चुकी थी और कांग्रेस इकतीस तक आ चुकी थी।
चर्चा के ऐन बीच चुनाव के पुराने विश्लेषक योगेंद्र यादव तक ने औरों के ‘अतिरंजित एक्जिट पोल’ दिखाने वालों के बीच ‘कड़वा सच’ बताने का साहस दिखाने वाले प्रदीप गुप्ता को खुल कर बधाई दी!
चर्चाकार पहली बार खुले कि राष्ट्रवाद, तीन सौ सत्तर नहीं चले, स्थानीय मुद्दे ही चले।
फिर भी भाजपा प्रवक्ता अपनी पर अड़े रहे कि दोनों राज्यों में सरकारें हमीं बनाएंगे!एक एंकर एक भाजपा वाले से बोला कि सर जी ये आपके लिए ‘चेतावनी’ है, ‘वेकअप काल’ है, यानी कि समय रहते जाग जाइए, वरना आगे बड़ा झटका भी लग सकता है।
बहुत दिन बाद कई भक्त चैनलों की बहसों तक में जान आई। कुछ एंकरों ने दो टूक बातें कहने का साहस दिखाया।
एक एंकर ने कहा कि हरियाणा के जाटों ने शायद इस बार तय कर लिया कि भाजपा को सबक सिखाना है।
एक चर्चक बोला : भाजपा अजेय है, यह मिथ टूट चुका है!
एक ने चुटकी ली कि ‘अबकी बार सत्तर पार’ कहने वाले चालीस भी पार न कर सके!
हरियाणा के परिणामों ने कांग्रेस को भाजपा को ठोकने का मौका दे दिया। कांग्रेस के आनंद शर्मा ने कहा कि बेरोजगारी, किसानों की बदहाली और आर्थिक संकट आदि जनता के मुद्दे थे, जबकि भाजपा अहंकार और प्रचार में बह गई थी। जनता चतुर है। उसने सबको संतुलन में ला दिया! यह एक बड़े परिवर्तन की शुरुआत है।
इसके बाद के सीन कुछ अजीब दिखे। जिस वक्त फडणवीस बोल रहे थे, ठीक उसी वक्त पीएम वाराणसी के लोगों को संबोधित करते दिखे। हम समझे कि अब चैनल पीएम के संबोधन को वरीयता देंगे, लेकिन ऐसा न हुआ। कई चैनलों ने ‘स्प्लिट स्क्रीन’ करके दिखाना शुरू किया। लेकिन कई चैनलों में फडणवीस बोलते दिखते रहे और पीएम को साइलेंट दिखाते रहे! हमें तो यह शुद्ध बदतमीजी लगी!
इन परिणामों ने बेचारे लड््डुओं को एकदम भूमिका विहीन कर दिया।
सुबह सुबह एक हिंदी चैनल एक जगह बड़े उत्साह से बहुत से लड्डू बनते दिखा रहा था, लेकिन शाम तक उसने भी लड््डुओं की थालियां तक गायब कर दीं!
सिर्फ मुंबई में कुछ पटाखे फटते और ढोल बजते सुनाई दिए, लेकिन हरियाणा में न लड््डू दिखे, न बहुत ढोल-नगाड़े!
शायद इसी वजह से भाजपा कार्यकर्ताओं को हौसला बढ़ाने के लिए भाजपा के मुख्यालय में एक धन्यवाद सभा की गई, जिसमें भाजपा के केंद्रीय नेताओं ने कार्यकर्ताओं को प्रबोधा। पहली बार कार्यकर्ताओं में पुराने वाला वह जोश-खरोश नहीं दिखा, जो अक्सर ऐसे अवसरों पर अक्सर दिखता रहा है।
यों चिंदबरम इडी की गिरफ्त में हैं, मगर ज्यों ही चैनलों के कैमरे चिदंबरम की ओर लपके, त्यों ही उन्होंने एक लाइन वाला तीर चला कर खबर बना दी कि ‘खामोश देश भक्ति ने पहलवान छाप राष्ट्रवाद को पटखनी दी है!’
इस सप्ताह साथियों को सबसे अधिक निराश किया तो नोबेल प्राप्त भाई अभिजीत बनर्जी ने। एक चैनल ने एक बातचीत का प्रसारण कर उनके लच्छन पहले ही जता दिए थे कि भाई जी लेफ्ट-राइट करने की जगह एकदम ‘प्रैक्टीकल’ बंदे हैं और ‘यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण’ नामक ‘विकासमूलक तकनीक’ के जरिए केंद्र और राज्य सरकारों की सेवा के लिए तैयार हंै। कथित जेएनयू ब्रांड ‘क्रांतिकारिता’ पीएम से भेंट करने के बाद पीएम की मुक्तकंठ से प्रशंसा करती दिखी।
आश्चर्य कि किसी चैनल ने पलट कर जेएनयू के क्रांतिकारी साथियों से न पूछा कि आदरणीय के प्रति अब आपके क्या विचार हैं?
सबसे स्पर्धात्मक दृश्य महाराष्ट्र के चुनावों के बाद दिखे। पहले उद्धव ठाकरे ने पे्रस को बताया कि पिछले चुनाव के पहले भाजपा अध्यक्ष घर आए थे, तब उनके साथ महाराष्ट्र में ‘फिफ्टी-फिफ्टी सीएम’ वाले फार्मूले पर सहमति हुई थी। हम उस पर कायम हैं। इसका मतलब था कि पहले ढाई साल शिवसेना का सीएम रहेगा, बाकी ढाई बरस भाजपा का सीएम रहेगा। इसी के तहत शिवसेना ने तो चुनाव के पहले ही आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने की बात कह दी थी!
हाय! कहां पूरी थाली और कहां आधी थाली! यह है : आधी थाली की उदासी!
इस बीच एक दिन केंद्रीय कैबिनेट ने दिल्ली की लगभग सत्रह सौ अनधिकृत कॉलोनियों को अधिकृत करने का एलान कर दिया। इसका चुनावी हेतु तब और साफ हुआ, जब केंद्रीय शहरी विकास मंत्री ने इस फैसले की वजाहत करते हुए कहा कि इस फैसले से दिल्ली के चालीस से पचास लाख लोग लाभान्वित होंगे! यानी इस हाथ ले उस हाथ दे!
लेकिन, ध्यान रहे कि दिल्ली के ‘दादा’ केजरीवाल हैं और वे कोई ‘हूडा’ या ‘पवार’ नहीं हैं!

