सय्यद मुबीन ज़ेहरा

यह बहुत चौंकाने और परेशान करने वाली सच्चाई देश की राजधानी दिल्ली से उभर कर सामने आई है। हमारे समाज का सोच देश भर में एक जैसा है, इसलिए अगर देश की राजधानी में ऐसा हो रहा है तो अन्य क्षेत्रों में न होता हो, कहना मुश्किल है। दिल्ली पुलिस ने इस साल पंद्रह अक्तूबर तक हुए बलात्कार और छेड़खानी के मामलों को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट को शपथपत्र सौंपा है। यह एक सप्ताह पहले दिए गए उसके हलफनामे से अधिक चौंकाने वाला है, जिसमें कहा गया था कि महिलाओं के साथ छेड़खानी या बलात्कार में शामिल लोगों में साठ प्रतिशत सगे संबंधी या जान-पहचान वाले होते हैं। अब पुलिस के ताजा शपथपत्र के मुताबिक दिल्ली में दर्ज हुए इस प्रकार के मामलों में पूरी तरह से अनजान आरोपी केवल पांच प्रतिशत हैं।

यानी इस वर्ष बलात्कार की दर्ज एक हजार सात सौ चार घटनाओं में सबसे अधिक वारदातें उन लोगों ने अंजाम दी हैं, जिन पर भरोसा किया जाता है, जिन्हें अपना माना जाता है। जिनके साथ आप अपनी बेटियों को यह कह कर भेज देते हैं कि जाओ उनके साथ सुरक्षित रहोगी। यह कैसा समाज है, जिसमें अपने खून के रिश्तों तक का भरोसा नहीं बचा है। जहां नैतिकता इस स्तर तक गिर चुकी है कि एक पिता अपनी बेटी का शील भंग करने से भी नहीं हिचकता। हां क्यों नहीं होगा, जब वह बेटियों की कोख में हत्या कर सकता है, तब उनके साथ कुछ भी क्यों नहीं कर सकता। हत्यारों के समाज से और क्या उम्मीद की जा सकती है?

दिल्ली पुलिस के शपथपत्र के अनुसार इस वर्ष पंद्रह अक्तूबर तक की वारदातों में तैंतालीस बलात्कारी पिता हैं। सौतेला बाप नहीं, अपना पिता। सौतेले पिता भी इसमें आरोपी हैं, मगर केवल तेईस। सगे भाई भी हैं, रिश्ते के भाई भी हैं। पिता समान ससुर समेत अन्य ससुराली संबंधी भी हैं, पड़ोसी और दोस्त भी। एक हजार सात सौ चार बलात्कार के आरोपियों में केवल बहत्तर अनजान हैं। ये वे आंकड़े हैं, जो पुलिस रिकार्ड में दर्ज हुए। जो मामले किसी कारण दर्ज ही नहीं हो पाते, उनको सामने रखें तो यह संख्या और भयावह हो जाएगी। इनमें एक तिहाई पीड़िता सोलह साल से कम उम्र की होती हैं।
बलात्कार करने वाले अठारह साल से कम उम्र के केवल आठ प्रतिशत दिखाए गए हैं। यानी ये वे लोग हैं, जो वोट देकर सरकार बना और गिरा सकते हैं। जो अपनों पर सितम ढाने में आगे हों, वे समझदार लोग वोट देने के हकदार भी हैं। एक हजार सात सौ चार बलात्कार के आरोपियों में दो सौ इकतालीस या तो सगे पिता हैं या सौतेले पिता। भाई या रिश्तेदार के भाई हैं, चाचा, मामा, फूफा, ससुर, जीजा या कोई ससुराली संबंधी हैं। है न घबराने वाली बात! दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते बलात्कार और छेड़खानी की घटनाओं पर सामाजिक कार्यकर्ता नंदिता धर की याचिका पर सुनवाई करते हुए पुलिस से इस पर केंद्रित विवरण देने को कहा था कि इस प्रकार की घटनाओं में पहचान के लोग शामिल होते हैं, जिससे लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा सके।

इस शपथपत्र के बाद और चिंता बढ़ गई है। जब रिश्तों का ही सम्मान नहीं रह गया तो आपको यह बताने से क्या होगा कि चार सौ तैंतीस बलात्कार की घटनाओं में पड़ोसी और परिवार की जान-पहचान के लोग शामिल हैं। यह तो केवल बलात्कार की घटनाएं हैं। इनमें अगर हम छेड़खानी और अन्य यौन अपराध जोड़ दें तो यह संख्या कहीं से कहीं पहुंच जाती है। ये आंकड़े एक ऐसे समाज की तस्वीर दिखा रहे हैं, जो नैतिक रूप से गिरावट का शिकार हो चुका है और उसका पतन अब भी जारी है।

कम आयवर्ग की चौंसठ प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हैं, वहीं छेड़खानी की घटनाओं की शिकार महिलाओं में मध्य आयवर्ग की संख्या अस्सी प्रतिशत है। सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि अठारह साल से पच्चीस वर्ष के बीच के आरोपी बलात्कार और छेड़खानी की घटनाओं में अधिक सम्मिलित हैं। इसके पीछे की सच्चाई क्या है, इस पर जरूर हमारे समाज को विचार करना होगा। इन आरोपियों में अधिकतर दसवीं पास कर चुके हैं। इसका मतलब है कि हमारी शिक्षा-व्यवस्था में कहीं न कहीं नैतिक शिक्षा की कमी साफ झलक रही है। ये आंकड़े दिल्ली हाईकोर्ट की दो सदस्यीय पीठ के सामने उस समय प्रस्तुत किए गए, जब उसने पिछले महीने दिल्ली के अपराध रिकॉर्ड के मद्देनजर दिल्ली पुलिस को एक विश्लेषण पेश करने को कहा।
सवाल है कि कौन रोकेगा इसे? अदालतें, सरकारें या धार्मिक नेता? या पुलिस? कह सकते हैं पुलिस में अधिकतम महिलाओं की भर्ती हो। पुलिस यह करे, वह करे, मगर याद रखिए कि पुलिस भी हमारे समाज से ही आ रही है। फिर क्या करें? कुछ समझ नहीं आ रहा। हम यहां बार-बार कह चुके हैं कि जब तक आप अपने मामलों में न्याय से काम नहीं लेंगे, समाज नहीं बदलेगा। अगर आप अपनों की बुराइयों को केवल इसलिए नजरअंदाज करेंगे कि वे आपके अपनों द्वारा की गई हैं, तब तक समाज से बुराई का अंत संभव नहीं है। हम दूसरों की गलतियों पर चीखते-चिल्लाते रहते हैं और अपनों की बुराई पर चुप रह जाते हैं उसी से तो अपनों के हौसले बढ़ रहे हैं। वे चाहे किसी प्रकार के लोग क्यों न हों, अगर गलत हैं तो उन्हें गलत कहना ही होगा।

जब हम अपने समाज के लोगों की गलतियों पर परदा डालते रहते हैं तभी तो हम अपने घर वालों द्वारा की जा रही बुराइयों को भी इसी परिधि में ले आते हैं। चुप रह जाओ, लोग क्या कहेंगे? बेटी हम महिलाओं का तो नसीब ही ऐसा है। अरे मीडिया शोर मचा देगी, अगर अपने ससुर के खिलाफ बयान दिया। रहने दो तुम्हारा ननदोई ही तो है। क्या अपनी ननद का घर उजाड़ोगी। माना पिता नहीं कसाई है, मगर बेटी अल्लाह देख रहा है। उसे और न जाने क्या-क्या ऐसी बातें करके जब हम किसी अपराध पर चुप्पी साध लेते हैं तब वह हमारे घरों के अंदर घुस जाता है। याद रखें, जब हम बात करते हैं तो किसी एक धर्म या जाति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की बात करते हैं। उस समाज में पूरा देश शामिल है। आप टीवी पर विज्ञापन देकर, अखबारों में अभियान चला कर या फिर लेख लिख कर बुराई का मुकाबला नहीं कर सकते। यह बुराई जो धीरे-धीरे हमारे घरों में प्रवेश कर रही है उसका तोड़ तो समाज को मिल कर ही निकालना होगा। केवल एक रास्ता है- जहां अन्याय होते देखो, चीखो, चिल्लाओ और जवाब दो। चाहे कोई क्यों न हो। तुम्हारा सगा ही क्यों न हो। अन्यायी किसी का सगा नहीं होता। बल्कि यह अन्यायपूर्ण है और अत्याचार को उसकी हद दिखानी ही पड़ती है।

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta