वक्फ कानून के खिलाफ ‘जंतर मंतर’ से ‘तालकटोरा’ तक गर्मी बढ़ाई जाती रही। वक्फ कानून का कांटा कुरेदता रहा। फिर आई पहलगाम से आतंकी हमले की खबर और हर चैनल यही दिखाता रहा कि आतंकियों ने नाम पूछ कर गोलियां मारीं। एक नवविवाहित दंपति एक रेस्तरां में बैठा भेल-पूरी खा रहा था कि हेलमेट कैमरे लगाए एके 47 ताने आतंकी ने आ घेरा और खबरों को मुताबिक, नाम पूछा और कलमा पढ़ने को कहा, उसके बाद  गोली मार दी। वह युवती पति की लाश के साथ बैठी रोती-बिलखती अपना दुख बताती रही। वहां छब्बीस लोगों को गोलियां मारी गर्इं।

इन दृश्यों ने पहली बार इस बात पर हुई बहसों में यह मुद्दा बनाया कि आतंकवाद का भी धर्म होता है। हालांकि इसके बावजूद कुछ लोग कहते रहे कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता। खबरें आती रहीं कि वे ‘नाम धर्म’ पूछ रहे हैं… कलमा पढ़ने को कह रहे हैं, फिर भी कुछ लोगों ने यही कहा कि  नाम और धर्म पूछे गए, इसका अभी कोई प्रमाण नहीं है। हालांकि खबरों में भी यह दिखाया गया कि जिसके पति को उसके सामने गोली मारी गई, उसने नाम पूछने और गोली मार देने की बात कही थी। यह पूछा जाने लगा कि कब तक आतंक के खिलाफ सख्त कार्रवाई से बचा जाएगा।

पाकिस्तानी सेना के प्रमुख के बयान पर हुई थी बहस

ऐसे ही एक बात पाकिस्तानी सेना के प्रमुख ने ‘दो राष्ट्र’ सिद्धांत के आधार पर बने पाकिस्तान को लेकर कही थी, जिस पर कई चैनलों में गरमागरम बहसें उठी थीं। इनमें भी कई छुटभैये इस सबके लिए हिंदुत्व को जिम्मेदार ठहराते रहे। एक तो यह उकसाते भी तक दिखे कि जवाब में पाक को ‘न्यूक’ क्यों नहीं कर देते… जिसका  सही जवाब एक आहत कश्मीरी ने ही दिया कि ये यही करते हैं… पहले कहेंगे कि पाक को ‘न्यूक’ कर दो, फिर कहेंगे कि पाक भी ‘न्यूक’ कर सकता है, इसलिए चुप रहो। ‘गरमी’ बढ़ते-बढ़ते जनसंहार में बदल गई तो भी ‘कलीमावादी’ प्रवक्ता हिंसा की ऊपरी निंदा करते हुए सवाल करते रहे कि इसके लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेदार है… खुफिया एजंसियां क्या कर रही थी… फौज क्या कर रही थी… आदि।

एक एंकर ने याद दिलाया कि कश्मीर के शासक दल के एक नेता एक दिन पहले कहे थे कि यह पर्यटक कश्मीरी संस्कृति पर हमला है। सवाल है कि क्या इस तरह बच गई कश्मीरी संस्कृति… बाजार बंद… कोई पर्यटक नहीं… कोई ग्राहक नहीं..! एक चर्चक ‘एक मुसलिम भी मारा गया’ कहकर इस हमले में अलग तर्क देता दिखा। ऐसे लोगों को देखकर एक चर्चक ने कहा कि जब तक ऐसे तत्त्व हैं, तब आप आतंकवाद को लेकर आप सख्त संदेश नहीं दे सकते।

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बहरहाल, इस ‘जिहादी हत्याकांड’ के ‘सीधे प्रसारण’ ने ऐसा वातावरण बनाया कि सारे ‘किंतु परंतु’ वाले शांत हो गए! यह हमला जानबूझ कर ऐसे समय पर किया गया, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति भारत के दौरे पर थे। हमला इतना अचानक हुआ कि प्रधानमंत्री को सऊदी दौरा बीच में छोड़ कर आना पड़ा और बिहार की मधुबनी में मनाए जाते ‘पंचायत दिवस’ की रैली में हिंदी में बोलते-बोलते प्रधानमंत्री ने दुनिया को अंग्रेजी में संबोधित किया कि यह भारत की आत्मा पर आघात है। धरती के कोने तक खोजकर आतंकियों को ऐसा सजा दी जाएगी जिसकी कल्पना भी न की होगी। 140 करोड़ लोग भारत के साथ हैं..!

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इसके साथ ही, सुरक्षा विशेषज्ञों की बैठक कर सरकार ने ‘सिंधु जल संधि’ को ‘निलंबित’ कर दिया और ‘अटारी बाघा बार्डर’ को बंद करने का एलान भी किया। इसके बाद फिर अपने और पाक दूतावास कर्मियों की संख्या को भी कम करके बता दिया कि भारत इसे यों ही नहीं जाने देगा। ऐसे ताबड़तोड़ फैसलों से कई ‘किंतु परंतु’ करने वालों को जवाब मिला। इसी बीच कई चैनलों पर अगली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की मांग उठने लगी। हर चैनल चीखता दिखा कि बदला लो… बदला लो..!

हमले की खबर के तुरंत बाद गृहमंत्री ने कश्मीर जाकर सारी स्थिति का जायजा लिया और आहत लोगों और उनके परिजनों को सहायता का आश्वासन दिया और आतंकियों के खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई करने का वचन दिया। अगले रोज रक्षामंत्री ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर सभी दलों को स्थिति से अवगत कराया और इस बार सभी ने एक स्वर में कहा कि वे सरकार के हर कदम के साथ हैं। इस गाढ़े वक्त में भारत को अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस इटली का भी समर्थन मिला। जाहिर है, हर भारतवासी के भीतर गुस्सा पैदा हुआ और हर चैनल कहता दिखा कि बदला लो… बदला लो!