जावेद अख्तर की पिछले सप्ताह उन लोगों ने भी तारीफ की, जो अक्सर उन पर देशद्रोही होने का आरोप लगाते हैं। तारीफ इसलिए कि लाहौर के एक मजमे में उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि अगर हिंदुस्तानियों को पाकिस्तान से शिकायत है, तो क्यों न हो। याद दिलाया अपने श्रोताओं को कि वे मुंबई में रहते हैं, सो याद है उनको 26/11 वाला हमला। हमलावर न नार्वे से आए थे न मिस्र से, वे यहां से आए थे और आज भी आपके बीच घूम रहे हैं।
गीतकार का सुझाव था- अमन की तरफ जाना है, तो इल्जाम लगाना बंद हो
हिंदी फिल्म उद्योग के इस प्रसिद्ध गीतकार ने सुझाव दिया कि अमन-शांति की तरफ अगर जाना है, तो एक-दूसरे पर इल्जाम लगाना बंद होना चाहिए। बातचीत का सिलसिला फिर से शुरू होना चाहिए। इसलिए कि बिना बातचीत के अमन-शांति की कोई संभावना नहीं है और बातचीत का सिलसिला बिल्कुल बंद रहा है 2019 के बाद। बल्कि यह कहना गलत न होगा कि पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों में इतनी कड़वाहट आ गई है, जितनी मैंने पहले कभी नहीं देखी। कड़वाहट की जड़ है 26/11 का हमला, लेकिन जबसे हमने लक्षित हमला किया था पाकिस्तान के अंदर 2019 में, तबसे मामला बिगड़ता ही गया है। जब मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 को रद्द करके कश्मीर के विशेष अधिकार समाप्त कर दिए, तबसे बातचीत की संभावनाएं बिल्कुल समाप्त हो गई हैं।
इसलिए कि उस वक्त के प्रधानमंत्री इमरान खान ने एलान किया था कि कश्मीर का मुद्दा वे दुनिया भर में उठाएंगे। कोशिश भी की, लेकिन जो हल्ला कभी मचता था पश्चिमी देशों में कश्मीर घाटी को लेकर, वह अब नहीं मचता है। पश्चिम के लोकतांत्रिक देश भारत से दोस्ती बरकरार रखना चाहते हैं, चीन को रोकने के लिए। बात आई है चीन की, तो यह कहना जरूरी है कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन चीन है, लेकिन पिछले हफ्ते विदेश मंत्रालय के आला अधिकारी बेजिंग गए थे इस उम्मीद से कि हमारे बीच रिश्ते थोड़े अच्छे हो जाएं। समझना मुश्किल है कि चीन से बातचीत हो सकती है, तो पाकिस्तान से क्यों नहीं? रिश्ते पाकिस्तान से अगर सुधर जाते हैं तो भारत के हित में होगा।
70 के दशक में पाकिस्तानी महिलाएं यहां आने की इजाजत पाईं तो चकित रह गईं
ऐसा कह रही हूं इसलिए कि मुझे याद हैं वे दिन, जब सत्तर के दशक के आखिरी दिनों में बहुत समय बाद पाकिस्तानियों को भारत आने की इजाजत मिली थी। याद यह भी है कि हमारे देश में घूमने के बाद कई पाकिस्तानी इतने प्रभावित हुए कि अपने शासकों पर दबाव डालने लगे रिश्तों में सुधार लाने के लिए। एक पाकिस्तानी महिला से मिली थी मैं उस समय, जिसने भारत की इतनी तारीफ की थी कि उसके शब्द मुझे आज भी याद हैं। वे ये थे, ‘हमको मालूम ही नहीं था कि यहां औरतें नाइट क्लबों और मयखानों में बैठ कर खुलेआम शराब पी सकती हैं। मालूम नहीं था कि बिकिनी पहन कर समुद्र किनारे घूमने की उनको पूरी आजादी है।
ऐसी चीजें हम पाकिस्तान में नहीं कर सकती हैं।’ आगे जाकर उस महिला ने औरतों की एक संस्था बनाई, जिसका मकसद था दोनों देशों की औरतों में दोस्ती का सिलसिला शुरू करना। आना-जाना इतनी जल्दी बढ़ा था कि पाकिस्तान से शायर आया करते थे मुशायरों में हिस्सा लेने। वहां से लेखक आते थे अपनी किताबें यहां छपवाने। हिंदी फिल्म उद्योग में काम ढूंढने वहां के अभिनेता आते थे और नुसरत फतेह अली और मेहदी हसन की संगीत सभाओं में इतने लोग जाते थे कि टिकट मिलना मुश्किल होता था। रिश्तों में इस तरह का सुधार आया, बावजूद इसके कि सीमाओं पर तनाव बरकरार था और कश्मीर को हासिल करने की कोशिश पाकिस्तान ने कभी नहीं छोड़ी।
क्या अब वक्त है रिश्तों में एक बार फिर सुधार लाने का? जावेद अख्तर ने जब अपनी बातें कही थीं भरी सभा में, तो उनको सबसे अच्छी बात यह लगी कि उनकी बातों पर तालियां बजाईं लोगों ने, खासकर तब जब उन्होंने याद दिलाया अपने श्रोताओं को कि उनके संगीतकार जब भारत आते थे तो उनके लिए बड़े-बड़े संगीत समारोह होते थे, लेकिन पाकिस्तान में कभी लता मंगेशकर का इस तरह स्वागत नहीं हुआ।
पाकिस्तान के शासकों से हमारी शिकायत है, पाकिस्तान के लोगों से नहीं। जावेद ने याद दिलाया कि लाखों आम पाकिस्तानी हैं, जो भारत से प्यार करते हैं और यहां आना चाहते हैं। उनको अगर आने दिया जाता है, तो अक्सर ये लोग वापस जाते हैं अपने दिलों में भारत के लिए दोस्ती और प्यार और भी ज्यादा लेकर। यानी अगर हम वास्तव में अमन-शांति चाहते हैं अपने इस पुराने दुश्मन देश के साथ, तो न सिर्फ बातचीत राजनेताओं और आला अधिकारियों के बीच होनी चाहिए, बातचीत होनी चाहिए आम लोगों के बीच भी। समस्या यह है कि अपने देश के अंदर भारतीय जनता पार्टी और मोदी भक्तों ने पाकिस्तान के खिलाफ इतनी नफरत फैलाई है पिछले आठ सालों में कि अगर दोस्ती की छोटी-सी कोशिश भी करते हैं प्रधानमंत्री तो उनके भक्त नाराज हो जाएंगे।
दूसरी समस्या यह है कि लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं और पाकिस्तान के साथ दोस्ती का सिलसिला शुरू किया जाता है तो कैसे भारतीय जनता पार्टी के प्रचार में वे हिंदू-मुसलिम दूरियां लाई जा सकेंगी? कोई राज की बात नहीं है कि भाजपा के आला नेता मानते हैं कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत तीसरी बार हासिल करने के लिए हिंदू-मुसलिम दूरियों का बहुत लाभ मिलता है। सो, जब तक चुनाव समाप्त नहीं होते, तब तक बातचीत पाकिस्तान के साथ तकरीबन असंभव है। मगर तल्खियां कम की जा सकती हैं। अटलजी ने कभी कहा था कि राजनीति ने दीवार खड़ी की है हमारे बीच। इस दीवार में एक दो ईंटें खिसकाई जाएं ताकि ‘तांक-झांक तो हो।’
