बदले की भावना से किसी का घर नहीं तोड़ा जाना चाहिए। ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने कहा पिछले सप्ताह। मगर तब तक उत्तर प्रदेश के कई निवासियों के लिए बहुत देर हो चुकी थी। मेरा खासतौर पर ध्यान प्रयागराज के नागरिक जावेद मोहम्मद पर रहा, जब योगी आदित्यनाथ के बुलडोजर इस शहर की गलियों में घूमने लगे थे, इसलिए कि उनकी बेटी ने अपना घर टूटने से एक दिन पहले अपनी दलील विडियो रिकार्ड करके सोशल मीडिया पर डाल दी थी। आफरीन फातिमा, छात्रा है जेएनयू की और जिस रात उनके पिता-माता और बहन की गिरफ्तारी हुई थी, वह अपने घर में थी अपनी भाभी के साथ।
विडियो में इस छात्रा ने बताया कि उसके मां-बाप और बहन को गिरफ्तार करने के बाद देर रात उसके घर में पुलिस आई, यह कहने कि अच्छा होगा कि वे घर को खाली करके चली जाएं कहीं। यह भी इत्तला दी कि बुलडोजर उसके घर के आसपास घूम रहे थे और उसको डर था कि जिस घर में उसका परिवार रहता था, उसको गिराने की योजना बन रही थी।
अगले दिन जब इस घर को तोड़ा गया तो हैरानी से मैंने उसको मलबे में तब्दील होते हुए देखा। वह घर कोई कच्ची झुग्गी नहीं था, एक दो-मंजिला पक्का मकान था, जिसको देख कर ऐसा लगा कि किसी ने इसको बहुत प्यार से बनाया था। शाम को मलबे में दिखीं कुर्सियां, मेज, पलंग और वाशिंग मशीन।
इन चीजों के बीच पड़े हुए थे रंगीन कपड़े। जाहिर था कि जावेद मोहम्मद के परिवार को घर से निकलने के लिए इतना कम समय दिया गया था कि वे अपने साथ सिर्फ जरूरी चीजें लेकर जा सके। जो नगरपालिका के अफसर आए थे इस घर को तोड़ने के लिए उन्होंने कहा कि घर अवैध था और इसके टूटने का नोटिस एक महीना पहले भेज दिया था, जिसका जवाब जावेद मोहम्मद ने दिया नहीं।
ये अधिकारी साबित करना चाहते थे कि सिर्फ संयोग था कि उनके बुलडोजर तब पहुंचे जब पैगंबर की बेअदबी का विरोध करने मुसलमानों की भीड़ पास वाली मस्जिद से निकल कर आई थी और हिंसक हो गई थी। उम्मीद करती हूं कि अगले हफ्ते जब सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की सुनवाई दुबारा होगी, आदरणीय जज साहबान इस दलील को स्वीकार न करके देख सकेंगे कि इस घर को तोड़ा गया था बदले की भावना से।
ऐसा अक्सर होता है उत्तर प्रदेश में और जब भी होता है, तो इस बुलडोजर चलवाए जाने का समर्थन करने निकलते हैं जाने-माने मोदी भक्त। गर्व से कहते हैं कि यही हश्र होना चाहिए दंगाइयों का, बल्कि उनके घर तोड़ना काफी नहीं, उनके राशन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट तक छीन लिए जाने चाहिए, ताकि वे कभी दुबारा किसी दंगे में शामिल होने की हिम्मत न दिखाएं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री खुद कहते हैं कि दंगाइयों और पत्थरबाजों के साथ सख्ती से पेश आने का आदेश दिया है उन्होंने अपने अफसरों को। नतीजा यह कि सहारनपुर के एक थाने में नौजवानों को एक कमरे में बंद करके उनको लाठियों से पीटे जाने का भी काम किया गया। इसका विडियो जब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ तो सहारनपुर की पुलिस ने पहले तो कहा कि ऐसा सहारनपुर के किसी थाने में हो नहीं सकता है।
एनडीटीवी ने जब जख्मी लड़कों की शिनाख्त करके उनके परिजनों से पूछताछ की तब जाकर साबित हुआ कि पुलिस झूठ बोल रही थी और यह घटना उस मुहिम का ही हिस्सा थी, जिसके तहत पुलिसवालों को न्याय अपने हाथों में लेने की पूरी इजाजत दी गई है।
योगी आदित्यनाथ जब दुबारा मुख्यमंत्री बने, तो अन्य भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में भी बुलडोजर न्याय की प्रक्रिया शुरू हुई, बिना यह सोचे कि जब सरकारी अधिकारी खुद न्याय-व्यवस्था का उल्लंघन करने लगेंगे तो आम आदमी के हौसले और बुलंद हो जाएंगे। ऐसा ही हुआ पिछले हफ्ते, जब अग्निवीर योजना की घोषणा भारत सरकार ने की।
फौरन निकल कर आए सड़कों पर कई राज्यों में बेरोजगार नौजवान, जिन्होंने नौकरी कि सारी उम्मीदें सेना में भर्ती होने पर लगा रखी थीं। अग्निवीर योजना की समझ उनको यही है कि सिर्फ चार साल की नौकरी मिलने वाली है सेना में। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और कई अन्य राज्यों में हिंसक युवकों ने ट्रेनों और बसों को फूंक डाला है और सड़कों, रेल की पटरियों को बंद कर दिया है। कितनों के घर पहुंचेंगे बुलडोजर?
सवाल अब उठने लगा है कि सरकार पर विश्वास कैसे किया जाए, जब उसके आला अफसर अपनी गलतियां मानने को तैयार नहीं हैं और जब सरकार खुद दुश्मन बन गई है इस देश के आम नागरिकों की? कोई छोटी बात नहीं है किसी का घर तोड़ना, बिना किसी अदालत में साबित किए कि वह वास्तव में अवैध था। और उसके बाद भी कोई भी रहमदिल सरकार घरों को मलबे में तब्दील करने से कतराती है, इसलिए कि उस घर के हर कोने में जुड़ी रहती हैं किसी की यादें, किसी के सपने।
उस घर के अंदर अक्सर होती हैं पुरानी तस्वीरें, जिनमें कैद है उस परिवार का निजी इतिहास। बच्चों के बचपन की तस्वीरें, शादियों की तस्वीरें, गुजर गए बुजुर्गों की तस्वीरें। यानी घर में रहनेवालों के पूरे जीवन की कहानी होती है छिपी हुई उस घर की दीवारों के अंदर। सरकार इंसानियत में विश्वास करती, तो अवैध निर्माण का सिर्फ जुर्माना वसूल करती, उसको ध्वस्त नहीं करती। जावेद मोहम्मद के घर तोड़े जाने के बाद पता लगा कि घर उनका नहीं, उनकी पत्नी का था, तो अब क्या मुआवजा देगी सरकार? जावेद मोहम्मद के साबित न हुए अपराध की सजा क्या उसके पूरे परिवार को देना न्याय है या घोर अन्याय?