संयोग से, जिस दिन मालूम हुआ कि स्कूली बच्चों की इतिहास की किताबों में कुछ चीजें मिटाने की कोशिश हो रही है, उस दिन मेरी नजर एक अमेरिकी कवयित्री के शब्दों पर पड़ी। माया एंजेलो, अश्वेत अमेरिकी थीं, सो उनकी कविताओं में अश्वेत लोगों की गुलामी का दर्द है, लेकिन वे इतिहास पर लिखती हैं- ‘इतिहास चाहे जितना भी दर्द भरा हो, दुबारा नहीं जिया जा सकता है/ साहस के साथ अगर उसका सामना किया जाए, तो उसको दुबारा जीने की जरूरत नहीं है’।

“काश अफसर इतिहास बदलने से पहले उन चीजों को याद किए होते”

काश कि एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) के अधिकारियों ने इतिहास की किताबों से उन चीजों को मिटाने के पहले इन शब्दों को याद किया होता, जो हिंदुत्ववादियों को इन दिनों बहुत तकलीफ देती हैं। भुलाना चाहते हैं आरएसएस मानसिकता से प्रभावित लोग कि गांधीजी ने कितना प्रयास किया था हिंदुओं और मुसलमानों में भाईचारा बनाए रखने के लिए। वह भी उस समय, जब देश का बंटवारा हुआ था इस्लाम के नाम पर। भुलाना चाहते हैं कि नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की इस नेक कोशिश को रोकने के लिए उनकी हत्या कर दी थी। भुलाना चाहते हैं कि गांधीजी की हत्या के बाद संघ पर प्रतिबंध लगाया था उनके सबसे प्रिय नायक सरदार पटेल ने। सो, इन चीजों को भविष्य में भारत के स्कूलों में बारहवीं कक्षा के बच्चे पढ़ नहीं पाएंगे। साथ में इन किताबों से गायब कर दिया गया है गुजरात के 2002 वाले दंगों का जिक्र।

बदलाव और भी कर रहे हैं एनसीईआरटी के अधिकारी। मुगल बादशाहों का इतिहास भी अब कम पढ़ाया जाएगा, इस बहाने कि स्कूली बच्चों पर वैसे भी बोझ ज्यादा है। यह इतनी बड़ी गलती है कि कई कट्टर मोदी भक्तों ने भी सोशल मीडिया पर कहना शुरू कर दिया है कि यह बेवकूफी है। अगर बदलाव लाना चाहती थी सरकार, तो बेहतर होता कि मुगल दौर में जो हिंदुओं के साथ अत्याचार हुआ था, उसके बारे में लिखा जाए विस्तार से।
इन किताबों में परिवर्तन लाना काफी हद तक जरूरी था।

कांग्रेस ने मुगलों की नेकी ज्यादा बताई उनके अत्याचारों के बारे में कम बताया

कांग्रेस के दौर में मुगलों की नेकी के बारे में ज्यादा सिखाया गया था स्कूलों में और उनके अत्याचारों के बारे में कम। एक प्रसिद्ध वामपंथी इतिहासकार ने यहां तक लिख डाला है अपनी किताबों में कि मुगल दौर में एक भी मंदिर नहीं तोड़ा गया था। एक बहुत बड़ी गलती यह भी की थी इन वामपंथी इतिहासकारों ने कि दक्षिण के महान राजाओं, राजवंशों के इतिहास को तकरीबन अदृश्य कर दिया गया था, बावजूद इसके कि दक्षिण-पूर्वी देशों में जो भारत की संस्कृति और सभ्यता का असर दिखता है, वह फैला था दक्षिण भारत से। चोल राजाओं ने एक हजार साल राज किया था और मुगल दौर था सिर्फ तीन सौ सालों का, लेकिन मुगल दौर को ज्यादा अहमियत दी गई थी पुरानी इतिहास कि किताबों में।

गलती यह भी हुई थी कि प्राचीन भारत को इतनी कम अहमियत दी गई थी कि कई भारतीय बच्चे जानते ही नहीं हैं कि सुश्रुत विश्व के सबसे पहले शल्य चिकित्सक (सर्जन) थे और गणित दुनिया को भारत के महान गणितिज्ञों ने दिया था प्राचीन काल में। अरबों द्वारा यह ज्ञान पश्चिमी देशों में पहुंचा था, सो वहां आज भी अंकों को अरबी अंक कहा जाता है, बावजूद इसके कि अरब देशों में इनको हिंदी कहा जाता है। कहने का मतलब है कि इतिहास की किताबों में सुधार जरूर थे, लेकिन इस प्रयास का मकसद यह नहीं होना चाहिए कि जो बातें हमारे वर्तमान हिंदुत्ववादी शासकों को नापसंद हैं, उनको किताबों से मिटा दिया जाए।

ऐसा करके हमारे वर्तमान शासक वही गलती कर रहे हैं, जो कांग्रेस के दौर में की गई थी हिंदू-मुसलिम भाईचारा सुरक्षित रखने के बहाने। सो, मुसलमानों का दिल न दुखाने के लिए इस्लामी दौर के शासकों के कई काले कारनामों पर पर्दा डालना ठीक समझा गया। आज के हिंदुत्ववादी दौर में हमारे शासकों का प्रयास है हिंदुओं को खुश करना। ऐसा करना आसान था सिर्फ इतना करके कि इस्लामी दौर का यथार्थ बता दिया जाए। ऐसा करता एनसीईआरटी तो असली सुधार होता। मगर ऐसा न करके वही पुरानी गलती कर रहे हैं कड़वे सच पर पर्दा डाल कर। ऐसा आजकल करना असंभव है, इसलिए कि इतिहास के सारे सच जान सकते हैं हमारे बच्चे इंटरनेट पर थोड़ा-सा वक्त गुजार कर।

फिर से अगर झूठे सच पढ़ाए जाएंगे इतिहास की किताबों में, तो साफ जाहिर है कि बच्चे किताबों को अलग रख कर असली सच जानने की कोशिश करेंगे इंटरनेट से। क्या दुनिया नहीं जानती है आज कि गुजरात में 2002 वाले दंगे तब हुए थे जब मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे? लेकिन बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह बीबीसी की उस डाक्यूमेंट्री पर मोदी सरकार ने प्रतिबंध लगाया था, वैसे ही कोशिश अब हो रही है इतिहास की किताबों से उन दंगों के तमाम सच झुठला कर।

राजनेता अक्सर रहते हैं अपनी दुनिया में, जहां उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ते हैं, सो शायद जानते नहीं हैं कि आजकल के बच्चे सब जानते हैं। कांग्रेस के दौर में जो खिलवाड़ किया गया था इतिहास की किताबों के साथ, वैसा करना आज के दौर में नामुमकिन है। भारत का इतिहास दर्द भरा है, लेकिन अल्लामा इकबाल का वह शेर भी याद रखना जरूरी है। ‘यूनान, मिस्र, रूमा सब मिट गए जहां से/ अब भी मगर है बाकी नामो-निशां हमारा। कुछ बात है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी/ सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-जमां हमारा।’

यह शेर उस गीत के हैं, जो भारतीय स्कूली बच्चों को सिखाया जाता है: ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’। मगर इन शेरों को मालूम नहीं, क्यों नहीं गाते हैं अब। इतना गौरवान्वित इतिहास है भारत का कि हमको बच्चों को झूठे सच सिखाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।