बहुत दिनों बाद ऐसा लगा पिछले सप्ताह कि मोदी को चुनौती देने के लिए विपक्ष अब रणनीति बना रहा है। पहले राहुल गांधी अचानक प्रकट हुए यह कहने कि कांग्रेस पार्टी ने एक श्वेत-पत्र तैयार किया है, जिसमें मोदी सरकार के लिए कोविड को हराने के सुझाव हैं। अपने खास अंदाज में कांग्रेस के सबसे बड़े राजनेता ऐसे पेश आए जैसे कि उनके पास वे सुझाव हैं, जो प्रधानमंत्री के सलाहकार उनको नहीं दे पाए हैं। लेकिन जब उन्होंने अपने ‘चार खंभों’ के बारे में विस्तार से बताया, तो ऐसा लगा जैसे किसी बारहवीं कक्षा के होशियार बच्चे ने किसी स्पर्धा को जीतने के लिए निबंध लिखा हो।
एक सौ पचास पन्नों वाले इस श्वेत-पत्र में सुझाव ये हैं : पहले जांच की जाए कि कोविड की दूसरी लहर से लड़ने में गलतियां क्यों इतनी हुईं कि नब्बे फीसद मौतें लापरवाही के कारण हुईं। दूसरा सुझाव है कि तीसरी लहर के लिए ऑक्सीजन, अस्पतालों में बिस्तर और दवाइयों की पूरी तैयारी अभी से की जानी चाहिए। तीसरा सुझाव है कि गरीबों की सहायता पूरी तरह से की जानी चाहिए आर्थिक तौर पर और चौथा सुझाव है कि कोविड का मुआवजा कोश बनाया जाना चाहिए। सुझाव अच्छे हैं, लेकिन क्या बेहतर न होता अगर देश की सबसे पुरानी और राष्ट्रीय स्तर की विपक्ष में इकलौती राजनीतिक पार्टी ने थोड़ी और मेहनत करके देश को बताया होता कि बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों में कितने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं, जो सिर्फ कागज पर हैं?
क्या बेहतर न होता अगर इस श्वेत-पत्र में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने अपने कार्यकर्ताओं को श्मशानों में भेज कर मालूम किया होता कि कितनी मौतें आमतौर से ज्यादा हुई हैं और कितनी कोविड से मौतें राज्य सरकारें छिपा रही हैं, ताकि मुआवजा मिले उन परिवारों को, जिनके लोग कोविड से मरे हैं? बहुत सारी और चीजें हो सकती थीं इस श्वेत-पत्र में, लेकिन इसलिए कि इसको किसी ने घर बैठ कर तैयार किया है, इसमें वे साधारण सुझाव ही हैं, जो मोदी सरकार के विशेषज्ञ अच्छी तरह जानते हैं। ऐसा कहने के बाद लेकिन यह भी कहना जरूरी समझती हूं कि अच्छी बात है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सदा युवराज कम से कम दिखे तो हैं। जब दूसरी लहर से लाखों लोग तड़प-तड़प कर बेसहारा मर रहे थे, तब कहां थे कांग्रेस के राजनेता? कहां थे कांग्रेस कार्यकर्ता? उत्तर प्रदेश जीतना चाहते हैं अगले साल, तो कम से कम इस प्रदेश केअस्पतालों और गांवों में तो दिखे होते।
राजनीतिक पंडित अलग-अलग कारण बताते हैं कांग्रेस की गिरती साख के और अलग-अलग साल और तारीखें बताते हैं इस गिरावट के शुरू होने की। आज 27 जून है, यानी वह दिन जब 1975 की सुबह जब मुझ जैसे पत्रकारों को नींद से जागते मालूम पड़ा था कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा कर हमारे सारे लोकतांत्रिक हक छीन लिए हैं। इतने सालों के बाद भी मुझे अच्छी तरह याद है कि मेरी मां मेरे कमरे में आई थी सुबह-सवेरे एक ट्रांजिस्टर हाथ में लिए, जिस पर सुनाई दे रही थी इंदिरा गांधी की पतली, लेकिन गंभीर आवाज। याद है कि मैं भागी-भागी स्टेट्समैन के दफ्तर गई थी, जहां मेरी नौकरी एक महीना पहले लगी थी। पहुंचते ही मालूम पड़ा कि प्रेस सेंसरशिप लग गई है।
कुछ महीनों तक हमने विरोध जताया, फिर चुप करके सूचना मंत्री के आदेश पर हमने संजय गांधी की तस्वीरें पहले पन्ने पर छापनी शुरू कर दीं और उनकी प्रशंसा में कसीदे लिखने शुरू कर दिए, बावजूद इसके कि आपातकाल की आड़ में देश के प्रधानमंत्री ने अपना वारिस उसी तरह चुन लिया था, जिस तरह राजा-महाराजा चुना करते थे। मेरी राय में उसी दिन से कांग्रेस कमजोर होने लगी थी और अब इतनी कमजोर है कि माना जाता है कि गांधी परिवार ही वह गोंद है, जिसने उसको टूटने से बचाए रखा है।
पिछले सप्ताह नरेंद्र मोदी का विरोध करने जुटे कुछ और लोग भी दिखे। दिल्ली में शरद पवार के घर कुछ राजनेता, अवकाश प्राप्त अधिकारी, बुद्धिजीवी और बॉलीवुड से मशहूर गीतकार जावेद अख्तर इकट्ठा हुए। इस छोटी-सी बैठक को देख कर अटकलें खूब लगीं कि पवार साहब एक तीसरा संगठन बनाने की कोशिश में लग गए हैं, जो बिना कांग्रेस पार्टी के मोदी का मुकाबला करेगी अगले लोकसभा चुनाव में। ऐसा अगर होता है, तो इस तीसरे संगठन का चेहरा कौन होगा, अभी कोई नहीं जानता है और न ही कोई यह जानता है कि संगठन का आधार क्या होगा। लेकिन मेरी राय में बिना कांग्रेस के ऐसा संगठन नाकाम रहेगा, इसलिए कि कांग्रेस ही विपक्ष में वह राजनीतिक दल है, जिसकी छाप राष्ट्रीय स्तर पर दिखती है।
मोदी ने कोविड की इस लड़ाई में इतनी गलतियां की हैं कि उनको छिपाना आसान नहीं है। पहली और सबसे बड़ी गलती तो यह थी कि जब दुनिया के अन्य राजनेता टीके के पैसे देकर आर्डर दे रहे थे पिछले साल, उस समय हम तालियां बजा रहे थे, दीये जला रहे थे। इस साल की जनवरी में ही भारत सरकार ने टीकों के ऑर्डर दिए और वह भी सिर्फ ग्यारह लाख खुराक के। फिर बड़े शान से मोदी ने दुनिया के सामने ऐलान कर दिया कि भारत ने जिस तरह इस महामारी को हराया है उससे दुनिया सीख सकती है। उसके बाद निकल पड़े मोदी बंगाल में बड़ी-बड़ी आम सभाओं को संबोधित करने और उनका साथ दिया गृहमंत्री ने, जिनकी जिम्मेदारी होती है अंदरूनी आपदाओं के हल ढूंढ़ने की। दूसरी लहर आने की बाद ही देश के ये दोनों सबसे बड़े राजनेता प्रकट हुए हैं। अफसोस कि इतनी गलतियों के बाद भी मोदी को हराने वाला राजनेता नहीं दिखता है क्षितिज पर।