बीस मिनट तक डर बरसता रहा! बीस मिनट तक चैनल गोल घेरा बना कर गाड़ी में बैठे पीएम को दिखाते रहे!
हम सोचते रहे कि क्या पीएम के साथ ऐसा भी हो सकता है? बाद की बहसों ने साफ किया कि हो सकता है और हो सकता है…
एक बेचैनी-सी घुमड़ती है! जिस देश का पीएम स्वयं अरक्षित हो, वहां आम आदमी की क्या औकात?

फिर फिर वही दृश्य लाइव, वही कि इस देश का पीएम किसी निरीह की तरह अपनी कार में अरक्षित बैठा है! एसपीजी के पांच-छह जवान बाहर तैनात हैं! कुछ दूर पर कुछ कथित किसानों ने रास्ता रोक दिया है! उनके साथ पुलिस वाले चाय पी रहे हैं! बारिश हो रही है!
फिर पीएम लौट जाते हैं और जाते-जाते बठिंडा एयरपोर्ट पर कह जाते हैं कि सीएम को धन्यवाद कहना कि मैं वापस लौट पाया!

बाद की बहसें इस वाक्य में कांग्रेस प्रवक्ता पंजाब, पंजाब के लोगों और पंजाबियत का अपमान पढ़ने लगती हैं और भाजपा प्रवक्ता पंजाब, पंजाबियत की जय बोलते हुए सुरक्षा में चूक के बुुनियादी सवाल पर जोर देने लगते हैं!

बहसें जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं, सुरक्षा के सवाल किनारे होते जाते हैं और सारी बहसें ‘साजिश’ या ‘लापरवाही’ या ‘साजिश’ या ‘सियासत’ में बदल कर और भी कटखनी होने लगती हैं और उसके बाद हर पार्टी ‘विक्टिम-विक्टिम’ खेलने लगती है!

‘यह साजिश थी। खूनी साजिश थी। पंजाब पुलिस ने रास्ते के लिए ओके दे दिया, तब वहां प्रदर्शनकारी कैसे पहुंचे? पीएम के काफिले के आने की खबर किसने लीक की?’ यह कहते हुए भी भाजपा के प्रवक्ता ठगे और छले गए से नजर आते हैं!

यही मारक है : इतना ताकतवर पीएम और इतना दयनीय!
(दृश्यों की ‘सब-टेक्स्ट’ अधिक रंजिशवाली है, जिसे यहां न कहना ही बेहतर!)
पीएम को लेकर एक कांग्रेस नेता ‘कटूक्ति’ ट्वीट कर चुका है : अब ‘जोश’ कैसा है? दूसरा कह चुका है कि पीएम की रैली फ्लाप हुई, तो वहां न जाने का कारण इस तरह गढ़ा गया!

बहरहाल, चैनलों का मूल सवाल रहा कि इस सबके लिए जिम्मेदार कौन? भाजपा कहे कि पंजाब पुलिस और पंजाब के सीएम कहें कि कोई साजिश नहीं! प्रदर्शनकारी तो कहीं भी आ जाते हैं, तो क्या उनको गोली मार देते हंै? आप रास्ता बदल कर चले जाते हैं! यानी भाजपा वाले ‘तिल का ताड़’ बना रहे हैं!

‘यह देखिए जिस जगह पीएम का काफिला रुका रहा, वह जगह पाक बार्डर से बीस किलोमीटर दूरी पर है। कुछ भी हो सकता था… जिस पार्टी ने दो-दो पीएम खोए हैं, उसे इस पर आनंद आ रहा है! धिक्कार है…’
‘हां हमने खोए हैं, लेकिन ऐसे तो नहीं रोए…’

एक विनम्र-कुटिल जवाब आता है : ‘वे हमारे भी पीएम हैं। देश के पीएम हैं। उनकी सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी है, लेकिन उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी एसपीजी की थी, वह क्या कर रही थी। इसलिए जो हुआ, उसके लिए गृहमंत्री जिम्मेदार हैं। वे इस्तीफा दें!’
इन दिनों हर बात ‘जिच’ में फंसती है और हर वाक्य में घृणा बरसती है! हर वाक्य में बैर भाव टपकता है!

लगता है कि किसी ने अपनी राजनीति को ‘मूठ’ मार दी है! शायद इसी वजह से राजनीति में ‘मारण और उच्चाटन’ के मंत्र जपे जा रहे हैं!
सिर्फ एक फर्क है : इस ‘मारण उच्चाटन’ की ‘सब-टेक्स्ट’ में धूर्तता का मजा भी दिखता है, जिसकी चुभन को खुल कर कहा नहीं जा सकता, लेकिन जिसे महसूस किया जा सकता है। यानी कि ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे’!

लेकिन इतने पर भी एक भाजपा प्रवक्ता दंभोक्ति करता है कि पीएम मोदी ‘शेर’ हैं! अरे भैया, प्रसंग और संदर्भ का खयाल तो किया होता!
चैनल पूरे सप्ताह चिल्लाते रहे कि कोरोना-ओमीक्रान की ‘तीसरी लहर’ का खतरा है, इसलिए रैलियां बंद करो और कई नेता भी कहते रहे कि रैलियां बंद करो, लेकिन जब पूछो कि कौन बंद करे, तो कहें कि पहले वे बंद करें तो हम करें! इस तरह न वे बंद करें, न हम बंद करें!

अपनी चिल्लपों मचा कर चैनल तीसरी लहर की खबर भी देने लगते हैं कि आज इतने मामले आए कि इतने आए, लेकिन ओमीक्रान के कम ही आए!
तीन जनवरी को पंद्रह से अठारह बरस के बच्चों को एक दिन में चालीस लाख टीके लगे, तो बड़ी खबर बनी!
हम तो कहेंगे कि इस सारी हाय-हाय के बीच टीके लगते रहें, यही क्या कम है?