पिछले सप्ताह खबर चैनलों पर जैसी खबरें और बहसें देखी, वैसी कभी न देखी न सुनी! रामनवमी देखी, अखिल भारतीय दंगे देखे और चैनलों में लोगों को आपस में वैचारिक दंगा करते भी देखा। फिर हनुमान जयंती पर वैसे ही दंगे और वैसी ही दंगाई बहसें देखीं! लेकिन कहीं कुछ नहीं सुधरा, किसी ने कुछ नहीं सीखा!

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जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती की शोभायात्रा पर पथराव के वीडियो देखे, फिर दंगा होता देखा ‘लाइव’। कई पुलिस कर्मियों को घायल होते देखा। कई गाड़ियों में तोड़फोड़ देखी और फिर इन पर अपने को दुहराती हुई बहसें देखीं! न तर्क नए थे, न तर्कशास्त्री नए थे, न दलीलें नई थीं! सबके पास एक ‘निर्ल्लज्ज हठधर्मिता’ थी, जो गाती रहती थी कि हम ‘शिकार’ कि हम ‘शिकार’, कि ‘अल्लाहू अकबर’ कि ‘जय श्रीराम’, कि ‘इस्लामी खतरा’ कि ‘हिंदू खतरा’!

और फिर दोनों खतरों के बीच खतरनाक किस्म की बातें, धमकियां, ‘अल्टीमेटम’ और सब एकदम ‘लाइव लाइव’ खुलेआम, जैसे हम एक सतत दंगा होते देखते-सुनते उस सबको सहते रहें! सीधा प्रसारण में दंगा दिखाना, दंगे की खबर बनाना, फिर दंगे की व्याख्या करना, फिर दंगे की कहानी बनाना, फिर कहानी को बदलना और फिर दंगाइयों की जुबानी सुनाना-दिखाना और फिर उम्मीद करना कि दंगे रुकें! लगता है सब चैनलों को पसंद है एक दंगा!

छोड़िए, तरह-तरह की ‘घृणाओं’ से ऊभचूभ करती अनंत घृण्य ‘बाइटों’ कोे, जो पिछले सात दिनों में दंगाइयों और उनके पैरोकारों ने बनाईं! वे अब भी उन हजारों पत्थरों की तरह हमारे दिमागों में बरस रही हैं! लेकिन अफसोस, किसी बहस में किसी ने न पूछा कि आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा? क्या इसका कोई इलाज नहीं?

हर बात तू तू, मैं मैं में बदल जाती है : एक ट्वीट नेता ट्वीटित कि नफरत भारत के नाम को डुबो रही है। भाजपा प्रवक्ता ने फौरन उनको चौरासी के दंगों की याद दिलाई गई! बहस खत्म! आश्चर्य कि सबसे उल्लेखनीय ‘बाइट’ भी दंगे के आरोपित ‘अंसार’ ने ही दी! जब पुलिस अंसार को गिरफ्तार करके ले जा रही थी कि ऐन रास्ते में उसने ‘पुष्पराज’ फिल्म के हीरो ‘पुष्पा’ की तरह अपना दायां हाथ अपने गले पर चाकू की तरह फेरा और मुस्कराया!

और इन दंगों का सबसे दयनीय दृश्य एक अन्य वीडियो ने दिखाया, जो इस प्रकार रहा : ऐन पथराव के बीच एक ठेले पर हनुमान जी की मूर्ति को खींच कर ले जाता एक युवक चिल्लाने लगता है- ‘चचा ये गलत हो रहा है…’ उसी वीडियो में एक बच्ची भी कहती सुनाई पड़ती है : रोजा के दिनों में मामू पत्थर क्यों मार रहे हैं?

क्या इससे अधिक प्रमाण की जरूरत है? लेकिन उस प्रशासनिक मूर्खता का क्या इलाज कि जो जहांगीरपुरी कल तक दंगाग्रस्त रही, उसी में आप अगले दिन अनधिकृत अतिक्रमणों को साफ करने के लिए बुलडोजर लेकर आ गए! एक रिपोर्टर ने अफसर जी से पूछा कि बिना नोटिस के कैसे तोड़ेंगे, तो जवाब मिला कि ऐसे अतिक्रमणों को हटाने के लिए नोटिस की जरूरत नहीं!

तय समय पर बुलडोजर चलने शुरू हो गए। सड़क पर बनी अवैध दुकानें तोड़ी जाती रहीं। मोबाइल की दुकानें, रस की दुकानें, परचून की दुकानें… कुछ हिंदुओं की दुकानें टूटीं, कुछ मुसलमानों की टूटीं, फिर बुलडोजर ने मस्जिद से सटी अवैध दुकानों को तोड़ना शुरू किया, तो लगा कहीं मस्जिद ही न टूट जाए। मगर ऐसा नहीं हुआ। फिर जैसे ही बुलडोजर मंदिर का अवैध अतिक्रमण तोड़ने को चला कि अदालत का आदेश आ गया और बुलडोजर लीला रुक गई!

पहली बार बहसों में प्रशासक पक्ष कुछ रक्षात्मक नजर आया! कहने की जरूरत नहीं कि इस प्रसंग में सबसे पहले ओवैसी ने दंगे के ‘नैरेटिव’ को बदला। उन्हीं ने तीसरे जुलूस के ‘बिना इजाजत’ निकलने पर आपत्ति की और राज्यसत्ता की मिलीभगत से मुसलिमों को निशाना बनाने का आरोप लगाया! लेकिन सबसे बेहतरीन टाइमिंग दिखाई सीपीएम की नेता वृंदा करात ने, कि इधर अदालत का आदेश आया, उधर वे जहांगीरपुरी पहुंचीं। एक रिपोर्टर ने कहा कि वे बुलडोजर के आगे खड़ी हो गईं और बुलडोेजर रुक गया, लेकिन ऐसा कोई ‘विजुअल’ नहीं दिखा!

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First published on: 24-04-2022 at 04:47 IST