हिजाब नहीं तो किताब नहीं!’ ‘हिजाब न पहनने वाली औरतों का बलात्कार होता है!’ ‘जो हमारे हिजाब पर हाथ डालेगा, उसे काट देंगे!’ आजकल चैनलों की खबरों में एक से एक ‘अमृतवचन’ बरसते हैं और सूप बोले तो बोले, छलनियां भी बोलने लगती हैं। एक दिन ‘ओआइसी’ ने हिजाब को लेकर भारत को कोसा, तो पाकिस्तान ने भी खुद को दुनिया के मुसलमानों का ठेकेदार बन कर ठोका कि हम सिर्फ मुसलमानों की अस्मिता से मतालबा रखते हैं, हम दुनिया के मुसलमानों के लिए आवाज उठाते हैं।
इसका जवाब ओवैसी ने दिया कि भाड़ में जाएं वे लोग, पाकिस्तान वाले कौन होते हैं हमें सबक सिखाने वाले! अगला गोला उनके चेले वारिस पठान ने दागा कि पाकिस्तान कौन होता है। पाक मुर्दाबाद। ये कौन होते हैं नाक घुसेड़ने वाले। यह हमारा देश है। हम ठीक कर लेंगे। आपका देश तो उधार पर चल रहा है। यहां क्या हो रहा है, हम देख लेंगे…
हर खबर एक घमासान लेकर आती है! ऐसी हर खबर पर कोई चैनल ‘दंगल’ कराता है, तो कोई ‘हल्लाबोल’, कोई ‘हुंकार’ कराता है, कोई ‘अपफ्रंट’, कोई ‘नेशन वांट्स टू नो’ कराता है, तो कोई ‘शंखनाद’ ही कराता रहता है! सवाल किए जाते हैं : किताब जरूरी है कि हिजाब? हिजाब का जिक्र कुरान में नहीं है। अदालतों ने भी हिजाब की अनिवार्यता नहीं मानी है। यह देश संविधान से चलता है, शरीआ से नहीं। कक्षा में एक वर्दी को मानना होगा!
जवाब आता है : हिजाब पहले, किताब बाद में। यह हमारे धर्म का मामला है। संविधान हमें अपने धर्म और संस्कृति को अपनाने का हक देता है। हमारी औरतें क्या पहनें, कैसा पहनें, यह हमारा हक है। बहुत से बिंदी, सिंदूर, मंगलसूत्र, चूड़ी पहन कर या पगड़ी बांध कर या कड़ा पहन कर या टीका, तिलक, त्रिपुंड, लगा कर आते है। उनको कक्षा से क्यों नहीं रोका जाता? आजकल हर बहस अपने ‘समाज का जटिल चिह्नशास्त्र’ रचती रहती है!
कुछ पढ़ी-लिखी मुसलिम महिलाएं हिजाब के खिलाफ जम कर बोलती हैं। इससे चिढ़ कर कई कट्टर मुसलिम पुरुष उनसे तू-तू मैं-मैं तक करने लगते हैं, लेकिन एक भी स्त्रीत्ववादी आवाज उनके पक्ष में नहीं खड़ी होती!
फिर एक दिन वारिस पठान को एक हिजाब-रैली के पहले ही ‘नजरबंद’ कर दिया गया, मगर वे वहीं से मोबाइल के जरिए एक चैनल के एंकर को अपनी नजरबंदी की खबर देते रहे! फिर एक दिन कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और पूर्वमंत्री अश्विनी कुमार ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया, तो चैनलों में बड़ी खबर बना! उन्होंने कई चैनलों पर आकर अपना दुख बताया कि जब कोई सुनने वाला न हो, तो आप क्या करेंगे? घुटन हो रही थी, इसलिए छोड़ दी! इसी क्रम में एक चैनल में मनीष तिवारी भी कहते दिखे कि कोई धक्के मार कर निकालेगा, तब देखेंगे! लेकिन कांग्रेस चुप्पी मारे रही!
एक बार फिर ‘पत्रकारिता’ पर बट्टा लगा। भंडाफोड़ू शैली में एंकर बताते रहे कि किस तरह से एक क्रांतिकारी महिला पत्रकार ने कोविड काल में कभी गरीबों की मदद के नाम पर, कभी उनके इलाज नाम पर, दो-ढाई करोड़ रुपए से ज्यादा इकठ्ठे किए और निजी खातों में डाले, फिर कोई बीस लाख अपने ऊपर भी खर्च कर डाले! ईडी की मार्फत खुली इस ‘धोखाधड़ी’ के बारे में एंकर बताते रहे और ‘लटयन्स गैंग’ की चुप्पी पर तंज कसते रहे।
लीजिए, पंजाब के एक कांग्रेसी नेता ने यूपी और बिहार के ‘भैयाओं’ का उपहास उड़ाया, जिसे सुन कर एक नामी कांग्रेसी नेत्री बुक्का फाड़ कर हंसती दिखाई दीं! भाजपा ने इसे तुरंत ‘यूपी के भैयाओं का अपमान’ बताया और यूपी के चुनाव में जनता से इसका मुंहतोड़ जवाब देने को कहा!