ऐसी बहसों के बीच एक एंकर बार-बार कहता है कि मीडिया का एक हिस्सा चाहता है कि श्रद्धा की हत्या में हिंदू-मुसलिम कोण न लाया जाए। आफताब के मामले को न उछाला जाए… लेकिन हम इस मामले को दबने नहीं देंगे, क्योंकि जब-जब मीडिया ने ध्यान नहीं दिया है, ऐसे मामले दबे रह गए हैं… श्रद्धा हत्या कांड की परतें एक-एक कर खुल रही हैं। एक दिन खबर आती है कि श्रद्धा ने दो साल पहले पुलिस को एक पत्र में लिखा था कि आफताब उसे मारता-पीटता है और टुकड़े-टुकड़े करने की धमकी देता है…
लेकिन पुलिस और उसके दोस्तों ने इस पर ध्यान नहीं दिया और आफताब ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर मेहरौली के जंगलों में इस तरीके से ठिकाने लगा दिए कि पुलिस अब तक उसके टुकड़े तलाश रही है… पुलिस ने बताया कि आफताब के ‘पालीग्राफ’ और ‘नारको टेस्ट’ किए जाने हैं, जबकि विशेषज्ञ ने साफ कहा कि अदालत इन जांचों को प्रमाण नहीं मानती…
पुलिस की मानें तो इन जांचों से आफताब द्वारा छिपाए जाते वे सूत्र मिल सकते हैं, जिनसे पता लग सकता है कि हत्या में उसने किन हथियारों का उपयोग किया और अंग कहां-कहां फेंके। यों आफताब के वकील का कहना रहा कि उसने हत्या करने की बात कबूल नहीं की है, लेकिन पुलिस के हवाले से चैनल यही बताते रहे कि उसी ने हत्या की है! जाहिर है, मामले में कई घुमेर हैं…
फिर एक दिन राहुल जी सावरकर की उस चिट्ठी को पढ़ कर सुना देते हैं, जिसमें सावरकर अंग्रेजों से दया की अपील करते हैं और दस्तखत से पहले लिखते हैं- ‘योर मोस्ट ओबिडियेंट सर्वेंट’! इसके बाद चैनलों में बहसें छिड़नी ही थीं। सावरकर के पक्षधर कहते रहे कि तब इसी शैली में पत्र लिखे जाते थे!
फिर एक दिन कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने गुजरात चुनाव के ऐन बीच कह दिया कि इस बार प्रधानमंत्री को उनकी ‘औकात’ बता देंगे… प्रधानमंत्री ने तुरंत जवाब दिया कि मेरी कोई औकात नहीं, मैं तो जनता का सेवादार हूं और सेवादार की क्या कोई औकात होती है… हमारी औकात तो सेवा करने की है… कांग्रेस अहंकार की भाषा बोलती है… सच ही कहा है: ‘अक्सर वही लोग उठाते हैं हम पर उंगलियां
जिनकी हमें छूने की औकात नहीं होती!’
इस बीच फुटबाल विश्व कप के दौरान ‘कतर’ द्वारा भारत के भगोड़े, हिंदू घृणावादी और जिहादी प्रचारक जाकिर नायक को निमंत्रण देने की खबर ने जाकिर नायक को ही मुख्य खबर बना दिया। कई चैनल उसके पुराने वीडियो दिखाते रहे, जिनमें वह कहता दिखता था कि हमारा दीन (धर्म) किसी और दीन को नहीं मानता, तो हम उनके मंदिर भी नहीं बनने देंगे… कि हर ‘मुसलमान को आतंकवादी होना चाहिए…’!
एक एंकर ने कहा कि फुटबाल विश्व कप के आयोजक ‘फीफा’ को इस्लाम के प्रचार का मंच नहीं बनने देना चाहिए…
फिर एक दिन मंगलूरू के आतंकी विस्फोट की कहानी आई, जो बताती रही कि किस तरह आतंकी शारिक हिंदू वेश में दक्षिण भारत में बड़े बम विस्फोट करने आया था और इस बार उसका निशाना एक प्रसिद्ध मंदिर भी था।
इसी बीच प्रधानमंत्री ने एक दिन इकहत्तर हजार नौकरियों के प्रमाणपत्र बांटे तो एक कांग्रेसी जी बोले कि बात तो सर जी, दो हजार करोड़ नौकरियां देने की थी? फिर एक दिन दिल्ली की जामा मस्जिद का एक नोटिस कहने लगा कि अकेली लड़कियों को नमाज अता करने की इजाजत नहीं है। तुरंत सारे चैनल स्त्रीवादी हो उठे और इसे ‘यौनवादी’, ‘स्त्री विरोधी’, तालिबानी बताने लगे। फिर जैसे ही दिल्ली के उपराज्यपाल ने इमाम से बात की, वैसे ही नोटिस हट गया।
इसी बीच एक क्षुद्र-कथा गहलोत ने ‘गद्दार’ कह कर बनाई, तो सचिन ने यह कह कर पानी डाल दिया कि यह वक्त कलह का नहीं, मिल कर काम करने का है। दूसरी क्षुद्र-कथा ‘रिचा चढ्ढा’ ने ‘गलवान सेज हाय’ ट्वीट से बनाई, फिर धिक्कृत होकर चैनलों में चंद सेकंड की शोहरत पाई!
फिर एक चिंताजनक खबर पंजाब ने बनाई। वीडियो में खालिस्तान-परस्त अमृतपाल सिंह के सैकड़ों समर्थक हाथों में तलवारें लेकर खुलेआम ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते दिखते रहे! इसी बीच सिर्फ असम के विस्मृत वीर ‘लचित बरफुकन’ की चर्चा एक सकारात्मक कहानी रही!