एक चैनल पर एक डॉक्टर : कोरोना की तीसरी लहर आनी है। एक एंकर टीप लगाता है : चौथी भी आ सकती है। लेकिन एक अन्य डॉक्टर कहते हैं : कोई जरूरी नहीं कि तीसरी लहर आए! फिर कुछ चैनल बताते हैं : ‘ब्लैक फंगस’ का खतरा बढ़ रहा है। एक राज्य ‘ब्लैक फंगस’ को महामारी घोषित कर देता है। बड़े डॉक्टर बताते हैं : ‘स्टेरायड’ के ज्यादा इस्तेमाल के कारण ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। अब उस ‘स्टेरायड’ और ‘प्लाज्मा थेरेपी’ को इलाज की सूची से हटा दिया है! लेकिन जिन्होंने गैर-जरूरी स्टेरायड पेला उनका क्या हो? यह कोई नहीं पूछता! फिर एक चैनल बताने लगता है कि ‘वाइट फंगस’ का भी खतरा है!
अरे भैया! एक बार में बता दो कि क्या क्या आफत और आनी है। ये क्या कि रोज-रोज किश्तों में डराते हो!

एक रोज, दो दो टीके लगवा कर डॉ. केके अग्रवाल कोविड के शिकार हो जाते हैं, लेकिन जाते-जाते ऑक्सीजन पर रह कर भी वीडियो संदेश दे जाते हैं कि ‘शो मस्ट गो ऑन’! लेकन एक एंकर के इस सवाल का जवाब किसी ने दिया कि आप तो कहते थे कि टीकाकरण के बाद अगर हुआ तो हल्का संक्रमण होगा, तब दो दो टीके लगवा कर एक डॉक्टर कैसे शिकार हो गया? माना कि डॉक्टर देवता हैं। डॉक्टर कोविड योद्धा हंै। वे अपनी जान की परवाह किए बिना हमारी जान बचाते हैं। उनकी सेवाओं को नमन!

लेकिन इन दिनों तो चैनलों पर अनगिनत डॉक्टर सबको चिकित्सा विज्ञान और वैज्ञानिक नजरिया पढ़ाने लगते हैं! जब कहा जाता है कि अब कोरोना गांवों में जा रहा है, आप ग्रामीणों के लिए क्या सलाह देते हैं, तो कहने लगते हैं ग्रामीण विज्ञान को नहीं समझ सकते। टीके को लेकर उनके पूर्वाग्रह होते हैं! सर जी! आज यही तो असली चुनौती है। आप उनकी भाषा में अपना विज्ञान समझाओ न! लेकिन आप क्यों समझाएंगे? आप तो कभी गांव गए नहीं और हलो भी करते हो, तो हजारों की फीस एडवांस लेते हो! गांव का गरीब कहां से लाए? चैनलों में बैठ कर अपनी और अपने अस्पताल के ब्रांड की मार्केटिंग करना और अंग्रेजी में गिटपिट करके गांव के स्वास्थ्य की चिंता में दुबले होना- यह अहसान क्या कम है?

एक दिन अदार पूनावाला एक बयान दे देते हैं कि ‘भारत की कीमत पर हमने किसी और देश को टीका नहीं बेचा’! भाजपा प्रवक्ताओं में जान पड़ जाती है!
लेकिन इसी बीच एक पोस्टर चैनलों में आकर सरकार को चिढ़ाने लगता है कि ‘हमारे बच्चों का टीका आपने विदेशों क्यों भेज दिया!’ जवाब में पुलिस पोस्टरबाजों पर ‘लॉक डाउन’ तोड़ने की धारा लगा कर पच्चीसेक को गिरफ्तार करती है! इसके तुरंत बाद राहुल भैया अपने ट्विटर पर पोस्टर को लगा कर चुनौती देते हैं कि अब मुझे पकड़ कर दिखाओ!

चैनलों के मजे आ जाते हैं। एक हिंदी चैनल इस पोस्टर पर अपने ‘दंगल’ में ‘दंगल’ कराता है, तो दूसरा ‘हुंकार’ कराता है और तीसरा चैनल तो सीधे ‘महाभारत’ करा डालता है! फिर एक चैनल खबर देने लगता है कि यही पोस्टर महाराष्ट्र में लगा है। यानी कर लो, क्या कर लोगे? बहसें इस पोस्टर का प्रचार बन जाती हैं! कांगे्रस अपनी बात चिपकाने में कामयाब नजर आती है! एक अंग्रेजी चैनल दो बार किसानों के धरने को ‘महासंक्रामक’ का खिताब देकर धरना उठाने को कह चुका है, लेकिन टिकैत एंकर के सारे तर्क यह कह कर लुढ़का देते हैं कि कोरोना यहां नहीं, बड़ी कॉलोनियों में है। दूसरा किसान नेता कहता है कि लाशें बार्डर पर नहीं, गंगा में बह रही हैं, उनको देखो! बेचारा एंकर अपना-सा मुंह लेकर रह जाता है!

इसी बीच एक भाजपा-प्रवक्ता प्रेसवार्ता कर कांग्रेस पर आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस ने ट्विटर पर एक ‘टूलकिट’ बनाया है, जिसमें ‘कोविड’ को ‘मोविड’ नाम दिया है। यह सुझाता है कि सरकार को इस तरह से निशाना बनाते रहो। ‘इंडियन वैरिएंट’ को ‘मोदी वैरियेंट’ कहो… ‘सेंट्रल विस्टा’ को ‘मोदी की वैनिटी प्रोजेक्ट’ कहो… ये रहा टूलकिट बनाने वाली सौम्या वर्मा का चित्र!

कांग्रेस तुरंत दुहत्थड़ लगाती है : यह कांग्रेस को बदनाम करने के लिए भाजपा की साजिश है। हमारा ‘लेटरहेड’ चुराया गया है। हम एफआईआर करेंगे और चार नेताओं के खिलाफ एफआईआर की खबर आने लगती है। भाजपा प्रवक्ता सिर्फ इतना कह पाते हैं कि मोदी कोविड से लड़ रहे हैं और ये मोदी से लड़ रहे हैं! लेकिन यह भी कांग्रेस पर चिपक नहीं पाता!

लेकिन ‘कोढ़ में खाज’ कि शुक्रवार की सुबह एक चैनल ट्विटर के हवाले से खबर देता है कि ट्विटर ने इसे ‘फर्जी मीडिया’ करार दिया है! ये ‘टूलकिट’ है या ‘शूलकिट’? ऐसे गाढ़े दिनों में हमें तो अपने एक प्रिय परम राष्ट्रवादी एंकर भैया की याद आती है, जो पिछले पंद्रह दिनों से अपने चैनल से गायब हैं और उनके रकीब चैनलों में से एक भी उनके इतने लंबे अरसे तक गायब होने की एक खबर तक नहीं देता!