पता नहीं क्यों, पर सम्मान प्राप्ति से हमें परहेज रहता है। जब भी कोई सम्मान देने की पेशकश करता है, तो उबकाई-सी आने लगती है। ऐसा लगता है जैसे कोई हलक में जबर्दस्ती खाना ठूंसने की कोशिश कर रहा है। सम्मान ग्रहण करना तो दूर की बात है, उसका जिक्र आते ही खट्टी डकारें आने लगती हैं और पेट फूल जाता है।
लोग हमसे कहते हैं कि बहुत सारे लोगों में सम्मान की भूख हमेशा बनी रहती है, जितना मिले उन्हें कम ही रहता है। हर सम्मान उनमें दूसरे सम्मान पाने की भूख बढ़ा देता है और एक आप हैं कि उसका नाम सुनते ही बिदक जाते हैं। अपने हाजमे की जांच करवाइए, आपको जरूर कोई बीमारी है। बीमारी की बात सुनी, तो चिंता स्वाभाविक थी। फिर हमने कई साहित्यकारों से बात की। सबने जैसे एक स्वर से कहा कि आपकी मेधा खराब है।
पेट में अफारा आपका दिमाग उठा रहा है। खराबी वहीं लगती है। शायद वह अपने को इस बात से ट्यून नहीं कर पा रहा कि आप भी लिखे-पढ़े इंसान हो सकते हैं। आप अपनी सोच को ‘अपलिफ्ट’ करिए, उसे परिष्कृत कीजिए। अपने लिखे को आत्मसात करिए। एक एक लाइन पर नजर डालिए और खुद के लिखे को चटखारे लेकर पढ़िए। फिर देखिएगा स्वत: ही अपने लिए मुंह से वाहवाही निकलेगी और आप अपने पर गर्व करने लगेंगे। अपने पर गर्व सम्मान की भूख पैदा करता है- इतनी भूख कि आप दूसरों के सम्मान को भी नोच कर खा जाएंगे।
साहित्यकारों का नुस्खा हमें ठीक लगा। सम्मान हजम करने में उनकी महारत हम वर्षों से देख रहे हैं। कई तो ऐसे हैं, जो एक ही समारोह में दो-चार सम्मान एक साथ प्राप्त करने के बाद ही डकार लेते हैं। अगर एक भी कम मिले, तो उनका दुर्वासा भाव जागृत हो उठता है। आयोजक उनसे भयभीत रहते हैं और हमेशा दो के बजाय कम से कम तीन सम्मान दे देते हैं, क्योंकि उन्हें शापित नहीं होना है।
एक और शाल और स्मृति चिह्न देना उनके शाप से उन्हें सस्ता जान पड़ता है। आयोजक का गर्व बना रहता है और साहित्यकार अपने गौरव पर थोड़ा और इतरा लेता है। दोनों ‘गर्व से कहो’ का नारा लगाते हुए स्वल्पाहार पर टूट पड़ते हैं।
दुशाले देने वाले तो थोक के भाव मिल जाते हैं, पर साहित्यकार को नकद इनाम देने वाले कम मिलते हैं। दो-चार सरकारी संस्थाएं हैं, जो सालना सम्मान के साथ नकद इनाम देती हैं। ऐसी संस्थाओं के माई-बाप लेखकों के लिए परम श्रद्धा का केंद्र होते हैं, क्योंकि नकद ही नारायण है और नारायण की प्राप्ति जिसको होती है वह साहित्यिक संरचना के मोक्ष द्वार को लांघ जाता है। पर चूंकि यह मार्ग लंबा और कठिन है, इसलिए साहित्य-ब्राह्मणों ने मंचीय हास्य व्यंग्य कविता का आसान रास्ता निकाल लिया है। यह तरीका खूब बिकाऊ है।
तरह-तरह के जोकर मजाक-मजाक में पैसा कमा रहे हैं और सहित्यकार होने का ढोंग रच कर सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में मसखरे कवि बन गए हैं और चुटकुले समकालीन साहित्य का नमूना बन चुके हैं। इस नए भारत की आपाधापी में लतीफेशाह साहित्य गोष्ठियों के फीते काट कर लेखकों को गौरवान्वित कर रहे हैं।
साहित्य की तरह हर तरफ सम्मान पाने की ललक बढ़ती जा रही है। कुछ समय पूर्व राजनीतिक या राजकीय ओहदा पाना सम्मान दर्शाता था। आज यह हालत है कि दर्जा प्राप्त व्यक्ति भी मुंह खोल कर कह रहे हैं कि मेरा सम्मान करो, क्योंकि मैं यह संत्री या वह मंत्री हूं।
हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि जब कोई दर्जा प्राप्त कर लेता है, तो लोग उस पर हंसते हैं, पर वह उनका हंसना यह कह कर प्रचारित कर देता है कि लोग उस पर हंस नहीं रहे हैं, बल्कि अपनी खुशी जाहिर कर रहे हैं।
अभी हाल में एक सज्जन अपना रोना लेकर हमारे पास आए थे। कहने लगे, सचमुच बहुत बुरे दिन आ गए हैं। देखिए, मैं इतना सम्माननीय हूं, पर मेरा सम्मान करने को कोई तैयार ही नहीं है। मैंने पुराने सब तरीके आजमा लिए हैं- लोगों को बुला-बुला कर दावतें करवाई हैं, मंच लगाने के लिए समर्थकों को पैसे दिए हैं, अखबार वालों को खूब पुचकारा है- पर हर बंदा सम्मान देने से बच रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है?
सम्मान प्राप्त करने की लालसा बहुतों को अपमान के द्वार पर ले गई है। इन सज्जन का भी ऐसा ही कुछ हाल हो रहा है। लोग खुलासा सम्मान न करके अपमान कर रहे हैं, पर वह अपने गिरेबान में झांकने के बजाय दूसरों के आकलन पर शक कर रहे हैं। उनका सम्मान सड़क पर पैदल हो गया है, दर-दर की ठोकरें खा रहा है, पर वह अब भी अपने पर फिदा है।
ऐसे सम्मानशील व्यक्ति राजपथ से लेकर गली के नुक्कड़ तक आपको भ्रमित अवस्था में सम्मान की मांग करते हुए मिल जाएंगे। कुछ तो ऐसे हैं, जो सम्मान छीनने पर उत्तारू हो गए हैं। संभ्रांत लोग अपने सम्मान भाव और सम्मान शब्दों को बैंक के लाकरों में सुरक्षित करवा रहे हैं। अगर वे इन्हें अपने पास रखेंगे तो कोई सम्मान-पिपासा से व्याकुल प्राणी इनको दिन-दहाड़े लूट लेगा।
सम्मान की इतनी दुर्गति होते देख चुके हैं कि अपनी सद्गति के लिए हम भरपूर सचेत हो गए हैं। वैसे भी हम क्षीण बल वाले हैं, कोई सम्मान-बली नहीं हैं कि लोगों को धमका कर सम्मान की फिरौती उठा लें। इस वजह से सम्मान की कलगी लगा कर फोटो खिंचवाने का शौक हम नहीं पाल पाए हैं। ऐसे में मन की बात अगर हम बताएं, तो बस यही कहेंगे कि प्रेम बनाए रखिए, सम्मान जाए बारह के भाव।