केंद्रीय गृहमंत्री ने पिछले हफ्ते ‘केंद्र शासित प्रदेश’ जम्मू-कश्मीर का दौरा किया। पांच और छह अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने, जम्मू-कश्मीर राज्य (जिसमें लद्दाख शामिल है) को दो हिस्सों में बांट और दर्जा छोटा कर दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख कर देने की उकसावे वाली और विवादास्पद कार्रवाई के बाद उनकी यह पहली यात्रा थी। (संसद ने कानून पास कर सरकार के फैसले की पुष्टि कर दी थी।)
हैरत की बात यह कि गृहमंत्री ने अगस्त 2019 के बाद दो साल से ज्यादा समय तक तत्कालीन राज्य का दौरा नहीं किया था। जबकि कई मंत्रियों ने इन केंद्रशासित प्रदेशों का दौरा किया, लेकिन लोगों ने उनका पूरी तरह से बहिष्कार किया। रक्षामंत्री ने अपनी यात्रा रक्षाबलों के अड्डों और चौकियों तक सीमित रखी।

कुल मिला कर केंद्र सरकार ने दोनों केंद्रशासित प्रदेशों को उपराज्यपालों और अधिकारियों के हवाले कर दिया था। तब के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 31 अक्तूबर 2019 तक प्रदेश की कमान संभाली थी और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 प्रभावी हो चुका था। पहले उपराज्यपाल जीसी मुर्मु करीब नौ महीने, 7 अगस्त, 2020 तक पद पर रहे। मौजूदा उपराज्यपाल मनोज सिन्हा एक साल से थोड़े से कम वक्त से पद पर हैं। मुझे पक्का भरोसा है कि गृहमंत्री ने यह देख लिया होगा कि जम्मू-कश्मीर के प्रशासन में बमुश्किल कोई नेतृत्व है।

नया सामान्य
गृहमंत्री के दौरे से पहले हालात ‘सामान्य’ होने के लेकर कई दावे किए गए और ऐसे दावे करने वालों में खुद गृहमंत्री भी शामिल हैं। जम्मू-कश्मीर की स्थिति कितनी ‘सामान्य’ है?

  • गृहमंत्री के दौरे के वक्त सात सौ लोगों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से कुछ को कठोर जनसुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत रखा गया,
  • हिरासत में लिए गए कुछ लोगों को जम्मू-कश्मीर से बाहर की जेलों में भेज दिया गया था,
  • राष्ट्रीय जांच एजंसी (एनआइए) ने आतंकी गतिविधियों की साजिश के संदेह में आठ लोगों को पकड़ा (गिरफ्तार लोगों की संख्या तेरह तक हो गई)
  • जिन रास्तों से गृहमंत्री को गुजरना था, वहां स्नाइपर तैनात किए गए थे,
  • श्रीनगर में यातायात प्रतिबंध लगा दिए गए थे, दोपहिया वाहनों की कड़ी जांच की जा रही थी (एक रिपोर्ट में बताया गया कि दोपहिया वाहनों की आवाजाही पर ‘प्रतिबंध’ लगा दिया था),
  • गृहमंत्री ने जम्मू-कश्मीर में कर्फ्यू और इंटरनेट पर पाबंदी को न्यायोचित करार दिया। उन्होंने इसे एक ऐसी कड़वी गोली बताया, जिसने कई लोगों की जान बचाई,
  • जम्मू-कश्मीर की आर्थिक स्थिति के बारे में गृहमंत्री ने कहा कि हालांकि इस प्रदेश को सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति सरकारी मदद मिली है, पर यहां गरीबी कभी कम नहीं हुई (सरकार के आंकड़ों के उलट कि 2019 में जम्मू-कश्मीर का गरीबी अनुपात 10.35 फीसद था, जो कि सबसे बेहतर राज्यों में आठवें स्थान पर था, जबकि राष्ट्रीय औसत 21.92 फीसद था।)
  • गृहमंत्री ने कहा, जैसे वे हमेशा दोहराते रहते हैं, ‘5 अगस्त, 2019 के पहले क्या जम्मू-कश्मीर के नौजवान इस देश का वित्त या गृहमंत्री बनने का सपना देख सकते थे?’ (उन्हें शायद याद नहीं रहा होगा कि 1989-90 में मुफ्ती मोहम्मद सईद देश के गृहमंत्री थे।)
  • उन्होंने गर्व के साथ अपनी बात पूरी की- ‘आतंकवाद खत्म हो चुका है और पत्थरबाज गायब हो गए हैं।’ सबसे भरोसेमंद आंकड़े देने वाले साउथ एशिया टेरेरिज्म पोर्टल ने 2014 से 2021 के बीच हुई मौतों के जो आंकड़े दिए हैं, वे इस प्रकार हैं: नागरिक- तीन सौ छह, सुरक्षाबल- पांच सौ तेईस और आतंकी- एक हजार चार सौ अट्ठाईस। वास्तव में पिछले दो सालों में अक्तूबर 2021 सबसे खराब महीना रहा है।
    दौरे के आखिरी दिन गृहमंत्री ने अपनी सरकार की नीति का एलान किया- ‘फारूक साहिब ने सुझाव दिया है कि मैं पाकिस्तान से बात करूं। अगर मैं बात करूंगा तो सिर्फ जम्मू-कश्मीर के लोगों और इसके नौजवानों के बारे में बात करूंगा, और किसी बारे में नहीं।’

विक्टर का न्याय
गृहमंत्री किसी भी राजनीतिक दल के नेता से नहीं मिले, बल्कि उन्होंने उन तीन परिवारों को ‘खलनायक’ बना दिया, जिन्हें जम्मू-कश्मीर में बर्बादी लाने के लिए जिम्मेदार माना गया था। कोई निर्वाचित विधानसभा नहीं है, इसलिए वे किसी विधायक से नहीं मिले। किसी नागरिक समाज संगठन के कार्यकर्ता से नहीं मिले। अगर गृहमंत्री किसी से बात नहीं करना चाहते, तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि उनसे भी कोई बात करने का इच्छुक नहीं है। बातचीत सिर्फ गृहमंत्री और नौकरशाहों के बीच ‘दरबार’ में हुई।

पीड़ादायक रूप से यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति विक्टर के न्याय पर आधारित है- (1) गुपचुप तरीके से बनाया और पास कराया गया असंवैधानिक कानून, (2) ऐसी नौकरशाही, जिसके बारे में यह कहा जा सकता है कि उसकी आत्मा भावशून्य हो चुकी है, (3) पीएसए जैसा दमनकारी कानून, (4) ऐसे प्रतिबंध जो नागरिकों के बोलने, अभिव्यक्ति, आवाजाही, निजता, आजादी, जीवन के मौलिक अधिकार और कानून के शासन को खत्म करते हैं, (5) राज्य विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन क्षेत्रों के सीमांकन जैसे कूट-बंदोबस्त करना और (6) किसी भी सूरत में पाकिस्तान से बात नहीं करना।

प्रतिरोध को ताकत
क्या यही सामान्य हालात और शासन है, जो मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लोगों को दे रही है? ऐसा ही लगता है, लेकिन एक बात साफ है- ऐसी ‘सामान्य स्थिति’ और ‘शासन’ से जम्मू-कश्मीर समस्या का राजनीतिक समाधान नहीं निकलने वाला। यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार मानती है कि जम्मू-कश्मीर में कोई राजनीतिक समस्या नहीं है, और कभी रही भी होगी तो इसे अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करके ‘हल’ कर दिया गया है!

अगर मोदी सरकार इतिहास, ऐतिहासिक तथ्यों, भारत-पाकिस्तान के बीच लड़े गए युद्धों, वादों, पिछली वार्ताओं के नतीजों (जिनमें गोलमेज वार्ताएं और रिपोर्टें भी शामिल हैं), राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं, पूर्व की ज्यादतियों, सरकार की दमनकारी कार्रवाइयों, जरूरत से ज्यादा सुरक्षाबलों की तैनाती और कानून के शासन को लगातार विकृत करने जैसी बातों को अलग नहीं रखती, तो कोई भी सार्थक बातचीत नहीं की जा सकती। गृहमंत्री किसी का दिल नहीं जीत पाए। अनजाने ही उन्होंने संविधान की अवहेलना और लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का विरोध करने वालों के दिल और दिमाग में गुस्सा भर दिया होगा।