अपने एंकर भैया की अहंकरी के क्या कहने और उनके रिपोर्टरों की वफादारी के क्या कहने कि पुलिस ने ‘पूछताछ’ के लिए बुलाया, तो ऐसे दिखाया मानो कि भैया जी शहादत देने जा रहे हों। उनके रिपोर्टर पूरे दिन इसी का हल्ला किए रहे। बारह घंटे की पूछताछ के बाद जब एंकर भैया जी बाहर आए, तो कैमरे के आगे उसी तरह हाथ हिलाया जैसे जाते हुए हिलाया था, फिर ‘थैेक्यू’ कह कर, घर जाकर ताजा होकर चैनल के प्राइम टाइम में तुरंत हाजिर होने को कहा! हम सोचे कि भैया जरूर दिन भर की आपबीती बताएंगे, लेकिन ऐसा होते न दिखा!
एक नामी एंकर से पुलिस की लंबी पूछताछ भी अन्य चैनलों के लिए एक लाइन की खबर तक न थी! लेकिन होती कैसे? जब भैया जी आए दिन बाकी चैनलों में किसी को ‘लटयन्स वाला’ किसी को ‘लॉबी वाला’ कह कर कोसते रहते हों, तो लटयन्स या लॉबी वाले खबर क्यों बनाएं?
लेकिन इससे भी बड़ा अफसोस यह कि एक दिन पहले तो एंकर भैया जी के पक्ष में भाजपा के एक से एक सूरमा लाइन लगा कर बोले, लेकिन इस पूछताछ के बाद सब गायब नजर आए!
जो हो सो हो, लेकिन पूछताछ के बाद अब भैया जी के शो में वह मजा नहीं मिलता, जो दो दिन पहले तक मिलता था!
सप्ताह की दूसरी बड़ी कहानी बंदी से बेघर और बेरोजगार हुए लाखों प्रवासी मजदूरों के घर जाने की आकुलता की रही। कहने की जरूरत नहीं कि चैनलों के बार-बार दिखाने के बाद ही शासकों-प्रशासकों को इनका ध्यान आया, वरना इनको कौन पूछे?
लेकिन राज्यों की टुच्ची राजनीति ने इनको फिर लटकाया! एक कहता कि हम बसों से ले जाएंगे, दूसरा कहता हम नहीं ले जा सकते! कैसी निष्ठुर सरकारें हैं हमारी! राज्य सरकारें गाल बजाती रहती हैं कि वे इनको खाना-पीना दे रही हैं! लेकिन कुछ ऐसी राज्य सरकारें ऐसी भी हंै, जिनके सीएम आए दिन अपने ऐसे उपकारों के प्रायोजित फीचर दिखाते रहते हैं!
और, खबर चैनल भी इन दुखियारों के दुख को छान-छान कर ही दिखाते हैं, ताकि प्रायोजकों की कृपा बनी रहे, वरना ऐसा क्यों हुआ कि इंसाफ अली नाम के उस मजदूर के सिर्फ पंद्रह सौ किलोमीटर पैदल चल कर श्रावस्ती के पास पहुंच कर मर जाने की दुखद कहानी किसी ने बताई!
इसी बीच, एक चिमटे के लिए एक भंगेड़ी द्वारा दो साधुओं की हत्या की कहानी बड़ी खबर बनते-बनते रह गई, क्योंकि कहानी में ‘पालघर’ वाला कोई ‘सांप्रदायिक ध्रुवीकरण’ वाला कोण ही नहीं बना!
फिर भी, तबलीगी जमात के ‘स्व-क्वारंटीन’ मौलाना साद के रुतबे का जवाब नहीं। अब तक गिरफ्तार न किए जा सके मौलाना की ताकत देखिए कि सक्रंमित तबलीगियों को कह दिया कि जो संक्रमित हैं, वे प्लाज्मा थेरेपी के लिए अपना प्लाज्मा दें! और भैये तबलीगियों की चैनलों की निर्मित कथित ‘खलनायकी’ अचानक ‘नायकी’ में बदलती नजर आई! चैनलों ने इस पर उनका उनको एक ‘थैंक्यू’ तक न कहा! पुलिस केस साद की गिरफ्तारी पर बैठी है और उधर साद पुण्य लूट रहे हैं! और, अंत में ‘ओआइसी’ के हवाले से लगे आरोपों का जवाब सरकार ने दे दिया है कि भारत में ‘इस्लामोफोबिया’ के आरोप निराधार और मनगढ़ंत हैं!
मगर अगले रोज भक्त एंकरों और प्रवक्ताओं को धार्मिक भेदभाव देखने वाली एक अमेरिकी समिति ने आरोप लगा कर फिर जवाबदेह बना डाला कि भारत में ‘इस्लामोफोबिया’ है, पाकिस्तान की तरह यहां भी अल्पसंख्यक निशाने पर हैं! ऐसी ही एक बहस में एक भक्त एंकर एक ‘लॉबी’ वाले के चैनल को ही ‘इस्लामोफोबिक’ करार देकर एंकर को गुस्सा दिला दिया, लेकिन एंकर संभल गया और सिर्फ दांत पीस कर रह गया!
इन दिनों विश्वस्तरीय सलाहकारों की बन आई है। कभी टामस फ्रीडमेन और कभी कोई मार्टिन वुल्फ टाइप आकर डराते रहते हैं कि कोरोना से जल्दी कोई निजात नहीं। वह यहीं रहने वाला है। घरों में बंद रहें, मास्क लगाए रहें, छह फीट की दूरी रखें और हाथ धोते रहें! अर्थव्यवस्था तो डूब चुकी है, उसे ठीक होने में बरसों लगने हैं। और चीन अपनी भूमिका को मानने वाला नहंीं है।
और ऐसी ही एक बहस में दिखे चीन के एइनर तेनजिन की हेकड़ी के क्या कि उन्होंने एंकर के हर उस आरोप को सीधे खारिज किया, जो कोरोना के लिए चीन को कठघरे में खड़ा करने वाला था। ‘चीन कोरोना को लेकर अंतरराष्ट्रीय जांच के लिए तैयार क्यों नहीं’ के जवाब उन्होंने भारत पर पलटवार करते हुए कुछ ऐसा बेतुका कह दिया कि एंकर राहुल कंवल भी चक्कर खा गए! उन्होंने जो कहा और जो हमें सुन पड़ा वह कुछ इस प्रकार रहा कि ‘वाइफ बीटिंग’ के बारे में इंडिया ने क्या कभी जांच कराई?
कोई समझाए कि चीन को समझाएं क्या? इसके आगे की दो कहानियां दो फिल्मी हीरोज के शोक की रहीं। एक दिन इरफान का निधन हुआ। दूसरे दिन ऋषि कपूर का निधन हुआ। दोनों कैंसर पीड़ित रहे। चैनल दोनों के लिए ‘शोकांजलियां’ दिखाने लगे। एक दिन इरफान की फिल्मों के टुकड़े दिखाते रहे और उनके मित्रों के फुटेज के जरिए एक कलाकार के संघर्ष को बताते और उनकी फिल्मों के टुकड़ों के साथ उनको ‘फाइटर’ बताते रहे। दूसरे दिन चैनल ऋषि कपूर को रोमांस का बादशाह बताते हुए उनकी फिल्मों के गाने सुनाते रहे! तीन मई के बाद बंदी खुलेगी कि नहीं? खुलेगी तो कैसे खुलेगी? ऐसे सवालों पर भी चैनलों ने चर्चाएं करार्इं, लेकिन किसी ने साफ नहीं किया कि खुलेगी तो कब और कैसे?
चलिए, खुलेगा तो देखेंगे!

