सभी खबर चैनलों में सात दिन तक ‘धर्मयुग’ छाया रहा।
धर्म सबसे पहले अयोध्या में प्रकट हुआ, तो दो-तीन दिन तक सिर्फ अयोध्या दर्शन होते रहे। एक धर्मसभा भी बैठी। समस्त संत-महंत चिंतन किए। ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’ हुआ।
कैमरों को देख भक्त आ जुटते और जय श्रीराम के नारे लगाने लगते। एक से एक ‘आकाशवाणी’ सुनाई पड़ती। दर्शक सीधे त्रेता में पहुंच जाते।
कई चैनलों ने अयोध्या में अलग-अलग जगह अपने मंच बनाए और ऐन अयोध्या से रिपोर्टें और बहसें लाइव करते रहे।
इधर शिवसेना दावा करती कि उसके एक लाख लोग पहुंच रहे हैं, तो उधर विश्व हिंदू परिषद दावा करने लगता कि उसके एक लाख से ज्यादा पहुंच रहे हैं। भक्ति में भी ‘कंपटीशन’ था।
सर्वप्रथम उद्धव ठाकरे सपरिवार अयोध्या पधारे। रामलला के दर्शन कर आरती उतारी। फिर उद्धव जी ने ये प्रिय वचन सरकार के प्रति कहे : पहले मंदिर, फिर सरकार! मंदिर नहीं तो सरकार नहीं। मंदिर नहीं बना, तो दुबारा सरकार भी नहीं बनेगी।
‘अयोध्या ने बुलाया है’ वाले भाव से प्रेरित अधिकतर खबर चैनल मानो अपने पाप-प्रक्षालन के लिए दो दिन अयोध्या में ही जमे रहे और मंदिर बनवाते रहे :
एक अंग्रेजी चैनल ने वीएचपी की मार्फत लाइन दी : हमें पूरी जमीन चाहिए।
एक हिंदी चैनल की लाइन रही : राम मंदिर के लिए सबने भरी हुंकार!
एक रामभक्त का काव्यात्मक वचन चैनल के प्रति : ‘मोदी की सांसों में मंदिर। योगी की सांसों में मंदिर।’
एक एंकर का उलाहना रहा : सांसों में होता तो बन न जाता!
एक भक्त : जहां आस्था होती है, वहां कानून क्या?
सबके माथे पर भगवा पट्टी बंधी थी। धक्का-मुक्की थी। जय श्रीराम के नारे थे। अयोध्या में बहस जारी थी।
एक हिंदी चैनल की एंकर को भक्त बार-बार घेर लेते। वह कहती रहती : हटिए। दूर रहिए। मंच पर न चढ़िए… लेकिन जोशीले भक्त माइक सामने देख कैसे रुकते?
एक भक्तिन बोली : क्या हमारे रामलला झोंपड़ी में ही रहेंगे?
एंकर ने टीप लगाई : आपको ये देख रोना आता है?
एक बाबाजी : राम ने रावण मारा था। हम भी राक्षस मारेंगे। राम का झंडा उनके सीने में गाड़ेंगे।
एक चैनल में लाईन आई : यूपी सीएम के वचन कांग्रेस के प्रति : ‘कीप योर अली!’ अपना अली अपने पास रखो। फिर लाइन लिखी आई : अली बरक्स बजरंग बली!
एक चैनल पर वीएचपी नेता सबको अभयदान देते हुए कहे : कोई तोड़फोड़ नहीं होगी। कोई हिंसा नहीं होगी। सब कुछ शांतिपूर्ण तरीके से होगा।
एक महंत : एक सीनियर मंत्री ने कहा है कि ग्यारह दिसंबर के बाद महत्त्वपूर्ण घोषणा होगी।
एक हिंदी चैनल पर एक कार सेवक बोला : 1992 में यहां मैंने मस्जिद तोड़ी थी, अब मंदिर बनाने आए हैं।
एक भक्त चैनल बताता रहा : भाजपा वेट ऐंड वाच की नीति पर चल रही है।
अयोध्या से निकले, तो सारे खबर चैनल करतारपुर साहिब कारीडोर से होते हुए करतारपुर साहिब को कवर करने में लग गए।
इधर सरकार ने कारीडोर की बात की कि उधर पाकिस्तान की ओर से कारीडोर की बात हुई।
नवजोत सिंह सिद्धू समारोह के हीरो। कोई कहता कि सिद्धू को श्रेय जाता है। बात उसी ने शुरू की। कोई कहता कि सब बाबे दी मेहर!
हर चैनल समारोह को लाइव कवर करता रहा। उधर इमरान खान और उसके मंत्री, सेनाध्यक्ष आदि। इधर से दो मंत्री और सिद्धू!
कैमरे सिद्धू के पीछे पीछे। सिद्धू हर सीन के हीरो। सिद्धू ने इस अवसर को बाबे दी मेहर कहा, लेकिन जिस मुक्तकंठ से उन्होंने इमरान की तारीफ की उससे लगा वे इसे इमरान की मेहर ही मान रहे हैं। मौका देखते ही इमरान ने भारत सरकार पर तंज कसा कि क्या हमें सिद्धू के पीएम बनने का इंतजार करना पड़ेगा?
ऐसे कटुक वचनों ने हमारे दो भक्त चैनलों के एंकरों के कलेजे चाक कर दिए। इसके बाद धर पकड़ा सिद्धू को। निकाल लाए सईद के चेले और खलिस्तानी चावला के साथ सिद्धू के फोटो! करने लगे दे दनादना! सिद्धधू बोले कि डेली दस-पंद्रह हजार फोटो खिंचे हैं। मुझे क्या मालूम कि चावला कौन है और चीमा कौन है?
हाय! जब कैमरे सीन में थे तब तक निंदा की एक लाइन न थी, लेकिन ज्यों ही सीन से हटे, निंदा में जुट गए।
ऐसा ही अपने पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यन जी के साथ हुआ। रिटायरमेंट के बाद ही होश आया कि नोटबंदी बड़ा ‘क्रूर कर्म’ थी!
राहुल ने फौरन कटाक्ष किया कि सरजी तभी इस्तीफा क्यों नहीं दे दिए?
एनडीटीवी ने तुरंत नोटबंदी के बाद सलाहकार जी द्वारा चैनल को दिए गए साक्षात्कार के टुकड़े दिखाए। वहां ‘क्रूर’ शब्द ढूंढ़े से भी न दिखा।
जब तक कुर्सी पास रहती है, सत्य दूर रहता है। जब कुर्सी दूर चली जाती है तो सत्य का साक्षात्कार होता है!
