मारते हैं आतंकवादी। मरते हैं अमरनाथ यात्री और हमारे अंग्रेजी एंकर ठुकाई करते हैं उनकी, जो जंतर मंतर पर खड़े होते हैं! इधर आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रियों की बस पर हमला कर सात लोगों को मारा, उधर दो मिनट हमले की खबर देकर दो अंग्रेजी एंकर दनदनाते रहे कि कहां हंै वो ‘नाट इन माई नेम’ वाले, वो ‘सूडोज’। एक शाश्वत कु्रद्ध-क्षुब्ध रहने वाला सुरक्षा एक्सपर्ट बोला कि ये जेएनयूवाले, ये जादवपुर वाले… दो चैनलों में वह हर वक्त बैठा ही रहता है! भइयाजी! आपकी जगह तो मोरचे पर है! स्टूडियो में बैठ क्यों गाल बजाते हो? लेकिन इस बार ‘नाट इन माई नेम वाले’ भी सवाए निकले। तुरंत जंतर मंतर पर हाजिर, मानो तैयार बैठे हों कि वह ललकारेगा, तो तुरंत प्रदर्शन करेंगे! यही नहीं, इस बार उनकी नेटवर्किंग भी बेहतर थी। कश्मीर में सिविल सोसाइटी खड़ी हो गई। उसने श्रीनगर में जंतर मंतर शैली का मोर्चा जमाया कि हम इन हमलों-हत्याओं-हिंसा और घृणा के खिलाफ हैं!
इनकी झांकी दिखाई तो सिर्फ एनडीटीवी ने! इनको कोसने वालों ने इनको न दिखाया!अगर दिखा देते तो कैसे कोसते? किसे कोसते? कुछ एंकरों का ‘सूडोज’ (सेकुलर) से और उधर ‘सूडोज’ का उन एंकरों से ऐसा पंगा फंसा है कि एंकर चाहे मौसम की जानकारी दे रहा हो, जगह बना कर एक लात तो सूडोज पर लगाएगा ही! और उधर सूडोज भी जिद के पक्के हैं कि अपनी दुकान लगा कर एंकरों को चिढ़ाए बिना नहीं रहेंगे!
कोसने से बचाया तो उस आक्रमित बस के ड्राइवर सलीम शेख ने बचाया। वह सभी चैनलों का हीरो था। सब उसे सलाम करते थे। उसके आते ही एंकरों, रिपोर्टरों को काम मिला कि पूछें कि जब हमला हुआ तब आपको कैसा लगा? आपको क्या सूझा? एक एंकर अलग से बात करने लगा: कब लगा कि हमला हुआ है? वह बोला: पटाखे की आवाज आई, लगा गोली चल रही है। तो आप झुक गए? हां, एक ओर झुक गया और बस दौड़ाता रहा। आप रोकते तो और लोग मर जाते? हां, अंदर आकर गोली मारते।…स्टूडियो में बैठ, आतंकी हमले के उस गरम क्षण को दूसरे के जरिए छू-छू कर देखने के इस पत्रकारीय आनंद के क्या कहने? जीरो रिस्क और टीआरपी टॉप पर! इतने बड़े कांड के खिलाफ गुस्सा न दिखाया जाए, यह नहीं हो सकता, सो शोक में गुस्से को बनाने को बेताब एक चैनल ने लाइन दी: वलसाड के गुस्से को देखो! चैनल ने पाक से पीरजादा को आन लाइन लिया और एंकर पाक को दांत पीस कर कोसने लगी। पीरजादा ने जवाब देने की कोशिश की, तो एंकर बोलीं कि हम भारत विरोधी प्रचार नहीं होने दे सकते! पहले दुश्मन को बिठाया। फिर ‘शटअप’ कर जवाब में ‘शटअप’ पाया! इसे कहते हैं नंबर वन चैनल की नंबर वन पत्रकारिता! जब सारे चैनल ‘भारत प्रथम’ (इंडिया फर्स्ट) की लाइन दे रहे हों, उस समय कांग्रेस ने बर्र के छत्ते में हाथ डाला। साफ कहा: सरकार ड्यूटी करने में चूकी और राहुल ने कहा: पीएम को जिम्मेदारी लेनी चाहिए!
कांगे्रस ने एंकरों की बौराई हुई देशभक्ति को डिस्टर्ब किया और ठुकनशील बनी! दो एंकर न जाने कहां-कहां से निकाल कर लाते रहे कि इसने, उसने, संदीप दीक्षित ने क्या नहीं कहा? सैनिकों का अपमान किया।… ये क्या राजनीति का वक्त है? आखिर में एक मंत्री उवाच के बहाने पूछा जाने लगा कि कांग्रेस द्वारा सत्तर साल पहले की गई गलतियों का नतीजा है यह हमला! जो चैनल सबसे कठिन सवाल पूछने पर अपनी ताल ठोकते रहते हैं, कांग्रेस के कठिन सवालों पर क्यों गुर्राने लगते हैं? इन दिनों सबसे बड़ी खबरें बनाते हैं: ‘फ्रिंज समूह’।
हिंदी में ‘फ्रिंज’ का मतलब है: कपड़े के बार्डर पर लगने वाले ‘फुंदने’, ‘झालर’, ‘किनारे’! तमिलनाडु में उन्होंने कमल हासन के बिगबॉस शो को लथेड़ दिया। केस कर दिए कि वे अपने शो में तमिल अस्मिता का अपमान कर रहे हैं। सदैव मुखर मीडिया सैवी कमल हासन प्राइम टाइम के सुपर हीरो थे, सो एक चैनल के नामी एंकर ने उनसे बातचीत की। वे बोलते रहे: मैं तर्कवादी हूं, कम्युनिस्ट समझा जाता हूं और राजनीति में तो हूं ही और अरेस्ट होने के लिए मैं तैयार हूं। हिंदी-विरोधी आंदोलन में रहा हूं, लेकिन हिंदी की फिल्म की है। यह भारत की बहुलता है।देखी तमिल फ्रिंज की महिमा! तमिल ‘बिगबास शो’ चर्चा में ला दिया! अगली बड़ी खबर बनाई नागपुर से गोरक्षक नामक फुंदनों ने। बीफ के संदेह में एक मुसलमान को पकड़ा, घसीटा, मारा, वह कहता रहा मैं भाजपा का हूं तो भी पीटते रहे! और, भाजपा की प्रतिक्रिया तक नहीं दिखाई दी!
आजकल ऐसे फुंदनों के हमलों की खबरों को चैनल बहुत लिफ्ट नहीं देते! चैनलों में कुछ एंकर ख्ुाद ही फुंदने बन जाते हैं। ऐसे में अपनी खबर दें कि दूसरों की लें?
अमर्त्य सेन पर बनी डाक्युमेंट्री पर कैंची चला कर पहलाज निहलानी जी ने एक बार फिर भारतीय संस्कृति को बचा लिया और डाक्यूमेंट्री को चर्चा में ला दिया। पांच शब्दों पर कैंची चला कर कहा कि गाय, गुजरात, इंडिया आदि बोलना पाप है! एनडीटीवी की निधि राजदान ने अमर्त्य सेन से बात की तो वे बोले: फिल्म में कुछ भी विवादास्पद नहीं।… ये निरंकुशतावादी शासन है, जो अपनी राय थोपता है।…बताइए, कोई गाय को गाय न कहे तो क्या बकरी कहे? लेकिन सरजी! अगर आप निरंकुश कहते हैं, तो फिर निरंकुशता का प्रसाद भी तो ग्रहण करें! है न न्यायसंगत बात! जय हो अपने निहलानीजी की! कुछ भक्त चैनलों का एजंडा है कि बिहार का महागठबंधन टूटे, लालू फूटें और नीतीश भाजपा की गोद में आ गिरें! बाइटों की बानगी से साफ है कि इस खेल में कुछ एंकर एक पार्टी की तरह काम करते दिखते हैं! आप सरकार को हिलाओ तो ठीक! तेजस्वी के पीछे पड़ो तो आपका हक और अगर भीड़-भड़क्के में आपके नाजुक रिपोर्टर-कैमरामैन को तेजस्वी के गार्ड जरा धकिया दें तो बिसूरने लगते हो कि मारा है! सबाल्टर्न को हिलाओगे तो क्या वह न हिलाएगा?

