कहते हैं कि जो नशा राजनीतिक शक्ति का होता है उसका मुकाबला कोई दूसरा नशा नहीं कर सकता। खासकर भारत जैसे देश में, जहां लोकतंत्र की जड़ें कमजोर हैं इतनी कि कोई बड़ी बात नहीं मानी जाती कि एक परिवार का राज रहा है हमारे आधे से ज्यादा लोकतांत्रिक जीवन में। सो, कोई बड़ी बात नहीं कि जब उस परिवार के वारिस से सत्ता छीन कर ले गया एक चायवाले का बेटा, तो उसे कबूल करना उस वारिस के लिए मुश्किल था। इतना मुश्किल था कि लोकसभा में जब राहुल गांधी ने चुनाव हारने के बाद अपना पहला भाषण दिया तो सत्तापक्ष की तरफ इशारा करके उन्होंने व्यंग्य के अंदाज में ‘आपका प्रधानमंत्री’ कहा। तीन वर्ष लगे हैं इस वारिस को स्वीकार करने में कि प्रधानमंत्री देश का होता है, किसी राजनीतिक दल का नहीं। हाल में जब उन्होंने इस बात को स्वीकार किया गुजरात चुनाव अभियान के दौरान तो अच्छा लगा। लेकिन उनके दरबारी अभी तक स्वीकार नहीं कर पाए हैं, सो नीच जैसे अपशब्द उनके मुंह से सुनते आए हैं हम।

अब इनके लिए इस चायवाले के बेटे को स्वीकार करना और भी मुश्किल हो गया है, क्योंकि अभी से आने लगे हैं उन्हें राजनीतिक शक्ति के सपने। टीवी चर्चाओं में जब दिखते हैं इन दिनों राहुल गांधी के दोस्त और मुरीद, तो एक ही बात कहते हैं : मोदी हर क्षेत्र में फैल हुए हैं। यह बात उनकी कुछ हद तक सही भी है, क्योंकि जिस परिवर्तन और विकास की आशा दिल में रख कर भारतवासियों ने तीस वर्ष बाद किसी प्रधानमंत्री को पूर्ण बहुमत देकर जिताया था, वह आशा पूरी नहीं हुई है। दोष भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्रियों का है सबसे ज्यादा। सत्ता का नशा इन राजनेताओं के सिर ऐसे चढ़ गया सत्ता संभालते ही कि भूल गए फौरन मोदी के परिवर्तन और विकास लाने के वादे। नतीजा यह कि जो थोड़ा बहुत परिवर्तन दिखता है उनके राज्यों में वह आया है स्वच्छ भारत और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं द्वारा। बाकी सब कुछ वैसा ही है, जो था कांग्रेस के राज में। नाकाम रहे हैं इतने भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री तो इसलिए कि इन्होंने अपने शासन के तरीकों में पूरी तरह कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की नकल की है। सो, मोदी अगर दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं 2019 में तो दोष इन मुख्यमंत्रियों का होगा।

सवाल यह करना चाहिए राहुल गांधी और उनके दरबारियों से कि विपक्ष में तीन साल गुजारने के बाद क्या उन्होंने कुछ सीखा है या नहीं? क्या यह सच सीखा है कि बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं जब तक आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होती हैं तब तक उनका गरीबी रेखा से ऊपर आना असंभव है? क्या सीखे हैं कांग्रेस के बड़े नेता कि उनकी सबसे बड़ी गलती यही थी कि उन्होंने देखा नहीं था कि गरीब जनता अब समझदार हो गई है इतनी कि जान चुकी है कि सरकारी खैरात से उनकी गरीबी दूर नहीं होने वाली है? बहुत ध्यान से सुनती हूं आजकल मैं कांग्रेस के नेताओं और राहुल गांधी के प्रवक्ताओं की बातें, लेकिन अभी तक किसी एक व्यक्ति से मैंने यह नहीं सुना कि उनको अपनी पुरानी गलतियों का अहसास हो गया है और फिर से अगर सत्ता में आने का मौका मिलता है तो नए सिरे से शासन चालाएंगे। मोदी की गलतियां गिनाने में ये लोग माहिर हैं शुरू से, लेकिन कभी अपनी गलतियों को स्वीकार करते नहीं दिखे हैं। सो, आज भी गांधी परिवार के दरबारी दिखते हैं, देश के सेवक नहीं। अब भी इनकी जबान पर हैं वही पुरानी ‘सेक्युलर’ संगठन बनाने की बातें, जो हम दशकों से सुनते आए हैं। सो, हर दूसरे दिन ‘सेक्युलर’ राजनीतिक दलों को संगठित करने की बातें होती हैं, लेकिन विपक्ष को संगठित होने का मुख्य कारण अगर यही है, तो अगला आम चुनाव जीतना आसान नहीं होगा।

याद रखिए कि नरेंद्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने थे तो सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह जैसे राजनेताओं ने कहा था कि ऐसा अगर होता है तो देश टूट सकता है, देश भर में दंगे-फसाद होंगे। माना कि पिछले तीन वर्षों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने भारत को शर्मिंदा किया है, लेकिन एक भी बड़ा दंगा नहीं हुआ। माना कि इन घटनाओं के कारण हिंदू-मुसलिम रिश्ते बिगड़े हैं, लेकिन इतने भी नहीं कि दंगे हों। सो, कहने का मतलब यह कि राहुल गांधी अगर अपनी विरासत वापस लेना चाहते हैं उस चायवाले के बेटे से तो उनको देश के सामने नए सपने रखने पड़ेंगे। भारत के नौजवानों के सामने ऐसी नीतियां पेश करनी होंगी, जिनसे उनको विश्वास हो सके कि उनके लिए कांग्रेस के युवराज वास्तव में कुछ ऐसा कर सकते हैं, जो अभी तक मोदी नहीं कर पाए हैं। राहुल और उनके दरबारियों से हमने बार-बार यही सुना है कि मोदी न अच्छे दिन ला सके हैं देश के अंदर और न विदेश नीति में उनकी ‘छप्पन इंच की छाती’ काम आई है। चलिए मान लेते हैं दोनों बातें, यह भी मान लेते हैं कि परिवर्तन और विकास के न आने से निराशा फिर से फैलने लगी है देश में, लेकिन इसके आगे क्या? इसके आगे क्या करेगी कांग्रेस देश के लिए? अभी तक तो यही देखा है हमने कि कांग्रेस वापस ले जाना चाहती है भारत को उस पुराने दौर में, जब लोकतंत्र के भेस में दिल्ली के तख्त पर बैठा था एक ऐसा राज परिवार जिसको यकीन था कि भारत पर राज करना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। राजनीतिक शक्ति का नशा उनको ऐसा था कि यकीन करना मुश्किल था उनके लिए कि इस तख्त पर और कोई बैठ सकता है।