हाथरस की कहानी को लेकर चैनलों ने जैसा धुआंधार किया, वह किसी गोलीबारी से कम नहीं! लेकिन इतने कैमरों के बावजूद हाथरस की बेटी की कहानी रहस्य बनी रही। पुलिस द्वारा हाथरस की इस दलित बेटी के शव को आधी रात में जला देने की कहानी ने सभी को हतप्रभ किया।
दलित बेटी की कहानी में ‘ट्विस्ट’ ही ‘ट्विस्ट’ रहे। पारिवारिक रंजिश की शुरुआती कहानी कुछ दिन बाद बलात्कार की कहानी बनी, फिर सामूहिक बलात्कार की कहानी बनी, फिर वह अंतरजातीय प्रेम कहानी में बदलने लगी और अंतत: वह ‘आनर किलिंग’ में बदल गई!
सच क्या? किसका सच सच? किसका सच झूठ? बेटी की मां का रोना सच कि गिरफ्तार बेटों की मांओं का रोना सच! किस चैनल का सच सच, किस नेता का सच सच? इतने सचों में कहानी का असली दफ्न हो चुका था! हम एक कहानी के आधा दर्जन संस्करणों में थे।
इतना ही नहीं, कहानी ने तब विराम लिया जब प्रशासन ने और फिर जी हुजूर चैनलों ने पीएफआई के आतंकी इरादों और विदेश से आए सौ करोड़ रुपयों से संचालित संभव जातीय दंगों की कहानी को इस कहानी में घोल दिया! जब देश पर बात आती है, तो सभी देशभक्त हो जाते हैं! कहानी खतम पैसा हजम!
जब बहुत सारे कहानी कहने वाले होते हैं, तो कहानी इसी तरह चिंदियों में बिखरती है। अब आप बटोरते रहें चिंदियां। बीनते रहें एक साफ-सुथरी कहानी। अब कोई कहानी सिर्फ एक कहानी की तरह नहीं आती, बल्कि हजार कहानियों का मुरब्बा बन कर आती है!
चैनल वही बताते हैं, उतना ही बताते हैं और उसी तरह से बताते हैं जिस तरह से उनके ऊपर वाले चाहते हैं, इसीलिए आजकल हर कहानी तार-तार बिखेरी जाती है, ताकि आप बटोरते रहें चिंदियां!
याद करें, जिस तरह सुशांत की कहानी का ‘मल्टी चैनल’ मलीदा बना, उसी तरह हाथरस की बेटी की कहानी का भी ‘मल्टी चैनल’ मलीदा बना। कहानी के इस महामिक्स में आप असली कहानी ढूंढ़ते रह जाओगे!
एक स्व-घोषित राष्ट्रवादी चैनल ने कहानी में तुरंत एक जातीय ‘दंगेबाज’ को ढूंढ़ निकाला। उसने एक स्थानीय दलित कांग्रेसी नेता पर स्टिंग किया, जिसमें वह नेता कहता था कि आखें फोड़ दूंगा, हाथ काट दूंगा, बहुत काट दिए जाएंगे, बहुत मार दिए जाएंगे, दो इधर से मरेंगे दो उधर से मरेंगे… तब राहुल आएंगे…
इस पर अपने राष्ट्रवादी भइया जी ने उसे अपनी तू तू मैं मैं वाली शैली में फटकारा कि अच्छा, तो तू दंगे कराएगा। हाथ काटेगा, सिर काटेगा। नहीं श्योराज, अब तो तू चक्की पीसेगा… स्टिंग में ‘काटने मारने’ की बात करता श्योराज भी एंकर पर जवाबी गोेले दागने लगा कि तेरा स्टिंग करने वाला दंगाई, तू दंगाई, तेरा चैनल भी दंगाई, तुझे गंजा कर दूंगा… और चैनल के स्टिंग का कमाल कि अगले ही दिन श्योराज गिरफ्तार!
यह है भइया जी का पौवा कि जिसे शाप दिया वही तुरंत सजा का पात्र बना! ऐसा तुरंता न्याय करने वाला चैनल जब सारे चैनलों को हीन बता कर अपनी मूंछों पर ताव देगा तो क्या होगा? होगी न चैनल कलह!
यही हुआ! भइया जी की ‘यू शट अप’, कि ‘यू देशद्रोही’ ब्रांड पत्रकारिता को दुश्मनों की नजर लग गई और मुंबई पुलिस कमिश्नर जी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके हमारे प्रिय भइया जी की पत्रकारिता का नशा उतारने लगे!
मगर भइया जी ठहरे भइया जी! वे भी तो अपने दुश्मन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। आए दिन वे सुशांत की कहानी के बहाने मुंबई पुलिस, उसके चीफ और सरकार पर गोले दागते और कोसते रहते और लगे हाथ चुप्पी साधे बॉलीवुड की भी खबर लेते रहते!
वृहस्पतिवार की शाम बड़े पुलिस अफसर ने भइया जी की इस ‘नए किस्म की पत्रकारिता’ की ‘पोल खोली’ और उनके चैनल द्वारा टीआरपी में हेराफेरी करने का आरोप लगा कर उनकी क्रांतिकारी कहानी को ही मुख्य कहानी बना दिया और जरा-सी देर में इक्कीसवीं सदी की राष्ट्रवादी ब्रांड की ‘नवीन पत्रकारिता’ पर यह आरोप लगा कर उसकी धज बिखेरी कि उनके दो चैनलों ने अपने हित में टीआरपी में हेराफेरी कराके तकरीबन दो सौ छब्बीस करोड़ रुपयों का लाभ उठाया है। यह हरकत दर्शकों के साथ ‘विश्वासघात’ है और यह संगीन अपराध भी है।
हमने टीआरपी में गड़बड़ करने वाले दो बंदे पकड़े हैं और दो छोटे चैनलों वाले पकड़े हैं। हमारी तफतीश जारी है। जल्दी ही हम केस बनाएंगे और इस बड़े चैनल के बड़े अधिकारियों से भी पूछताछ करेंगे।
खबर चैनलों के लगभग तीन दशकों के इतिहास में ऐसा विकट चैनल-युद्ध पहली बार हो रहा है! लेकिन इस युद्ध में अपने भइया जी भी कोई कम नहीं। शाम को ही उन्होंने सबसे पहले वह कागज दिखाया, जिसमें उनके एक रकीब चैनल पर पुलिस द्वारा टीआरपी में हेराफेरी करने का आरोप लगाया गया था और प्रश्न किया कि इस रकीब चैनल की जगह उनके चैनल का नाम जांच में कैसे आ गया?
फिर बोले कि दरअसल, मुंबई पुलिस उनसे अपनी खुंदक निकाल रही है। वे कमिश्नर पर इज्जत हतक का केस करेंगे। वे किसी से नहीं डरते, क्योंकि वे राष्ट्रवादी पत्रकार हैं और अगर बुलाया तो पैदल जाएंगे…
यद्यपि मुंबई पुलिस के एक उपायुक्त ने रकीब चैनल पर आकर, उसके द्वारा टीआरपी की हेराफेरी के प्रमाण के होने से इनकार किया और साफ किया कि फिलहाल सिर्फ तीन चैनलों पर आरोप है, लेकिन इससे क्या?
जब चैनलों का ‘बिजनेस मॉडल’ ही अधिकाधिक कमाई का हो, तो इस तरह की हेराफेरी से कोई कब तक बच सकता है? यह अमेरिका में हो चुका है और अब तो हम भी अमेरिका बने जा रहे हैं। किसी ने सच ही कहा है :
‘काजर की कोठरी में कैसा हू सयानो जाय! एक रेख लागिहै पै एक रेख लागि ही!’