हम पत्रकार राजनीतिक मुद्दे उठाने में माहिर हैं, लेकिन आम लोगों की असली समस्याएं राजनीति से प्रभावित कम और प्रशासनिक नाकामियों की वजह से कहीं ज्यादा हैं। मैं अपने आपको आम आदमी या आम औरत नहीं मानती हूं, लेकिन दिल्ली की एक आम नागरिक हूं और इस नाते कहना चाहती हूं कि देश की राजधानी की तकरीबन सारी समस्याएं प्रशासन की लापरवाही से जुड़ी हैं। मेरा घर दिल्ली के एक छोटे गांव में है। अरविंद केजरीवाल जब मुख्यमंत्री थे, तो ऐसा लगा मुझे कि शासन नाम की कोई चीज नहीं थी इस इलाके में। जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार शानदार बहुमत के साथ आई, तो कुछ महीने पहले मुझे उम्मीद थी कि उसके आने से बदलाव जरूर आएगा यहां।
निजी तौर पर मेरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि मेरे घर के सामने सड़ते कूड़े का ढेर बन गया है। शुरुआत इसकी हुई थी मामूली तौर पर। गांव के तालाब के किनारे कुछ लापरवाह लोगों ने अपना कूड़ा फेंकना शुरू किया और देखते-देखते यह फैलता गया। कूड़े का ढेर देख कर और लोगों ने भी अपना कूड़ा यहां फेंकना शुरू कर दिया। आज हाल यह है कि यह ढेर इतना बड़ा हो गया है जैसे बरसों से कूड़ादान ही रहा है। यहां लावारिस जानवर घूमते हैं। अब बारिश के इस मौसम में कूड़ा फैल कर मेरे घर के दरवाजे तक आ जाता है।
जब यहां से नया भारतीय जनता पार्टी का नया विधायक चुना गया, तो मैं अपनी शिकायत लेकर उनके पास गई। विधायक के आंगन में प्रधानमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के बड़े सारे कटआउट दिखे और अंदर शीशे के दरवाजों पर दिल्ली की नई मुख्यमंत्री की तस्वीरें। विधायकजी से मिलने काफी लोग आए हुए थे सो मुझे थोड़ी देर इंतजार करना पड़ा। जब मेरी बारी आई, तो मैंने विधायक साहब को अपनी शिकायत बताई। उन्होंने सारी बात ध्यान से सुनी और अपने सचिव से कहा कि कार्रवाई की जाए। उसके बाद एक बार भी यहां सफाई करने ना कोई आया है और ना ही विधायकजी के सचिव अब फोन उठाते हैं।
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दिल्ली के बाहरी इलाकों में सड़ते कूड़े की समस्या हर दूसरे मोड़ पर देखने को मिलती है। जब भी देखती हूं इन सड़ते कूड़े के ढेर को, तो सोचने लगती हूं कि अगर हम चांद पर जाने की तैयारी कर सकते हैं, तो क्यों नहीं एक ऐसी समस्या का हल ढूंढ पाते हैं जो बीमारियां ऐसी फैलाती है कि इस देश के जो 96,000 बच्चे हर साल मरते हैं पांच साल के होने से पहले, उन में से कोई 8000 मरते हैं पेट की बीमारियों के कारण। इन बीमारियों का मुख्य कारण है-गंदगी। जब सड़ते कूड़े के साथ गंदा पानी भी होता है, वहां पैदा होते हैं मलेरिया और डेंगू। समस्या अति-गंभीर है, लेकिन कभी दिल्ली की विधानसभा में इस पर चर्चा अगर हुई हो, तो इतनी कम कि बेमतलब रही है।
पिछले सप्ताह जब मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता को देखा हाथ में झाड़ू लिए सड़कों की सफाई करते हुए, तो बुरा लगा मुझे और गुस्सा भी आया। इतनी गंभीर समस्या है कि इस तरह के तमाशों से समाधान के आसार कम दिखते हैं। मुख्यमंत्री साहिबा अगर सोचती हैं कि सड़कों पर झूठी सफाई करते देख कर लोग खुश हो जाएंगे, तो गलत सोच रही हैं। उल्टे लोग यही सोचेंगे कि इस बार भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। शायद भूल गई हैं वे कि तमाशों के अरविंद केजरीवाल बादशाह थे। अब इस शहर में कम ही लोग होंगे जो इनको देख कर धोखा खाएंगे।
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मेरे इलाके में दूसरी बड़ी समस्या यह है कि सड़कें इतनी खराब हैं कि कभी तो ऐसा लगता है कि इनकी मरम्मत कभी की ही नहीं गई है। जिन ठेकेदारों के हवाले इनका निर्माण करवाया जाता है, उनको थोड़े पैसे और देकर इनकी देखभाल भी सौंपी जा सकती है जैसे अन्य देशों में होता है। लेकिन मालूम नहीं क्यों इसके बारे में हमारे शासकों ने कभी सोचा ही नहीं है। अमेरिका जब जाती हूं, तो हैरान रह जाती हूं यह देख कर कि कई राजमार्गों पर तख्तियों पर लिखा होता है कि सड़क के हिस्से को ठीक रखने की जिम्मेदारी फलाने गांव के इन परिवारों ने ले रखी है। हम इन तरीकों को क्यों नहीं अपनाने की कोशिश करते हैं, मुझे समझ में नहीं आता है।
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गंदगी और टूटी सड़कें कहने को तो इतनी मामूली बातें हैं कि हमारे शासकों को इनकी तरफ ध्यान देने के लिए समय ही नहीं है, लेकिन असल में ये चीजें आम लोगों के जीवन में सबसे ज्यादा महत्त्व रखती हैं इसलिए कि इनकी तरफ ध्यान जब दिया जाता है, तो असली परिवर्तन दिखता है। इन शब्दों को लिखते वक्त ध्यान आया मुझे कि इन चीजों के बारे में हम मीडियावाले भी बहुत कम ध्यान देते हैं इसलिए कि हम व्यस्त रहते हैं बड़े-बड़े मुद्दों को उठाने में जैसे कि संसद में क्या हो रहा है और अंतरिक्ष में भारत कौन सी नई ऊंचाइयों तक पहुंच रहा है।
हम मीडियावालों की समस्या यह भी है कि अक्सर हम भूल जाते हैं कि राजनीति, चुनाव, संसद और विधानसभाओं का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है आम आदमी के जीवन में परिवर्तन लाना। हम जब सांसदों और विधायकों से मिलने जाते हैं, तो वे सिर्फ बड़े मुद्दे उठाते हैं जैसे डोनाल्ड ट्रंप के नए शुल्क, जैसे गाजा में बच्चों का भूख से मरना, जैसे रूस का यूक्रेन पर हमला। ऐसा नहीं है कि इन बातों की तरफ हमारा ध्यान नहीं जाना चाहिए, लेकिन कभी-कभी हमको समय निकाल कर उन चीजों पर भी रोशनी डालनी चाहिए जिनको सुधारने से आम लोगों के जीवन में असली परिवर्तन आ सकेगा। हम जब अपने देश की बेहाल बस्तियों और बेहाल शहरों पर ध्यान देने लगेंगे, तो शायद राजनेताओं के कानों तक जनता की आवाज पहुंचेगी।