सबरीमला निपटा नहीं था कि साधुजन अचानक मंदिर-मंदिर का जाप करने लगे। संतजन इतने आत्मविश्वास से बोलने लगे कि लगा कि नवंबर के बाद किसी भी दिन मंदिर बना समझिए! अपने भक्त चैनल भी भक्तिभाव से भर कर सेक्युलर लॉबी पर एकाध धौल चपत लगा, चैनल स्क्रीन की एक साइड में मंदिर निर्माण कला का निदर्शन कराते चलते। कि अचानक दशहरे की शाम अमृतसर की एक क्रासिंग पर रावण दहन देखने जुटे लोगों में से साठेक जनों को एक तेज दौड़ती ट्रेन ने कुचल कर मार डाला और इतने ही घायल कर दिए। इधर चैनल रावण दहन दिखाने में मगन थे, उधर लोग कलपते-कराहते, रोते-बिलखते थे। रेल लाइन पर भीड़ खड़ी दिखती और एक तेज दौड़ती ट्रेन उसे रौंदती निकल जाती। बार-बार यही सीन कि देखते-देखते आंखें पथराने लगतीं। बाद में अकाली और कांग्रेस दोनों दल निरीह लाशों पर राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे!
जब इस त्रासदी के बरक्स मीटू कुछ ठंडा होने लगा, तो एक चैनल ने तनुश्री दत्ता का लंबा साक्षात्कार दिखा कर उसे गरमाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब न हुआ। तभी सीबीआइ की कलह-कथा बाहर आ गई। देशकाल, वातावरण देख एक भाषण के बहाने देश के एक बड़े अफसर ने लाइन दी कि गठबंधन सरकारें उचित नहीं हैं। देश को एक मजबूत सरकार चाहिए और कम से कम दस साल के लिए चाहिए।… लेकिन हा हंत! ये कैसे दुर्दिन हैं कि वीररसवादी दो चैनलों को भी अफसर जी की यह वीरगाथा रास न आई। वे भी सीबीआइ की जासूसी कहानी को खोलने में लगे रहे। सीबीआइ की नई जासूस कथा में फ्रीस्टाइल कुश्ती का तो मजा था ही, इसके इशारे दूर-दूर तक जाते थे। इस रहस्य कथा की खूबी यही रही कि कहानी जितनी दिखती थी, उससे कहीं अधिक वह छिपी हुई लगती थी। देश की सबसे बड़ी जासूसी एजंसी के दो बड़े ‘जासूस’ एक-दूसरे पर आरोप लगाते नजर आते थे।
जासूस नंबर एक कहता कि जासूस नंबर दो भ्रष्ट है। जासूस नंबर दो कहता कि नंबर एक भ्रष्ट है! फिर, एक दिन जासूस नंबर एक द्वारा नंबर दो पर एफआइआर कराने और दफ्तर पर छापा डालने की खबर आई, तो नंबर दो की मार्फत खबर आई कि उसने भी जासूस नंबर एक के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं और फरियाद की है कि त्राहिमाम्! त्राहिमाम्!! और हे भक्तो! प्रभु की लीला देखिए कि आधी रात को भी आरत भक्त की पुकार सुनी गई और सीबीआइ के दफ्तर को सील कर दिया गया और ‘खाली कुर्सी की आत्मा’ को भरने के लिए एक नए बंदे को अंतरिम ‘इनचार्ज’ बना दिया गया! संदेह और रहस्य का ऐसा वातावरण बना कि सीबीआइ दफ्तर की रोजमर्रा की निगरानी करने वाले आइबी के चार अफसरों तक को सीबीआइ सुरक्षा गार्डों ने सिर्फ संदिग्ध समझ कर धर दबोचा!
और चौबीस घंटे भी नहीं गुजरे थे कि वकील प्रशांत भूषण ने अंतरिम जासूस के भी खोट निकाल लिए और कहने लगे कि ये श्रीमान जी भी संदिग्ध छवि वाले हैं। हम अदालत जाएंगे। बताइए, कोई कैसे काम करे? फिर भी आनन फानन में अंतरिम जी ने नंबर दो की जांच करने वालों को हटा कर पुण्य कमा ही डाला। इसके आगे हर चैनल जनता का कानूनी ज्ञान बढ़ाने में लग गया। एक बोलता कि नंबर एक को वही समिति हटा सकती है, जिसने उसे नियुक्त किया। सीवीसी कौन होती है हटाने वाली? दूसरा कहता कि सीवीसी की सिफारिश के अनुसार सरकार की कार्रवाई सही है।
इस बीच राहुल ने सीबीआइ की इस जासूस कथा का ‘रहस्य’ एक प्रेस कान्फ्रेंस में खोला कि नंबर एक जासूस को आधी रात को इसलिए हटाया, कि वे रफाल सौदे की जांच शुरू करने जा रहे थे। भाजपा वाले पूछते रहे कि राहुल को कैसे पता चला? राहुल बोले कि सवाल यह है ही नहीं कि राहुल को कैसे पता चला। असल बात यह है कि जनता की जेब से तीस हजार करोड़ रुपया निकाल कर अंबानी की जेब में डाला।… जिस दिन जांच शुरू हो गई, ये खत्म हो जाएंगे। यह सरकार डर गई है। इसीलिए हटाया! सीबीआइ की यह रहस्यकथा इतनी रोमांचक दिखी कि हर मिनट लगता रहा कि असलियत अब खुली कि तब खुली! जितनी पोल खुलती उतनी ही जिज्ञासा बढ़ती कि और आगे क्या?
शुक्रवार की सुबह से सारी कहानी सुप्रीम कोर्ट के परिसर में थी। अदालत ने आदेश किया कि एक रिटायर्ड बड़े जज की निगरानी में नंबर एक अफसर पर लगे आरोपों की जांच दस दिन में पूरी करें और तब तक अंतरिम अफसर जी कोई नीतिगत निर्णय न लें।लेकिन राहुल कहां चूकने वाले थे? वे कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतार लाए और सीबीआई भवन के आगे प्रदर्शन करने निकल पड़े। पहली बार कांग्रेस ने एक अखिल भारतीय रैली कर दिखाई। यह राहुल का एक नया आक्रामक क्षण रहा! कांग्रेस के साथ एनसीपी, टीमएसी और सीपीआइ भी दिखी! राहुल ने लीड ली! मीडिया में छाए रहे। जनता का ध्यान खींचने के लिए रीयल टाइम का टीवी युद्ध इन दिनों इतना तीखा है कि इधर राहुल ने बोलना बंद किया और गिरफ्तारी दी, उधर वित्तमंत्री जी ने मीडिया को सरकारी लाइन से अवगत कराया कि अदालत का फैसला देश के हित में है और वे उसका स्वागत करते हैं।

