Odisha College Student Sexual Harassment: बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। प्रधानमंत्री का यह नारा बहुत याद आया पिछले सप्ताह जब ओडिशा की बीस साल की एक बेटी ने आत्महत्या कर ली। इसलिए कि उसे पढ़ाने वालों ने ही उससे उसकी इज्जत का सौदा मांगा। बेटी ने हिम्मत दिखा कर कालेज प्रबंधन के सामने अध्यापक का नाम लेकर शिकायत दर्ज की, लेकिन उसे अपनी शिकायत वापस लेने को कहा गया। पुलिस में जाकर उसने प्राथमिकी दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने भी उसका साथ नहीं दिया।

फिर उसने सोशल मीडिया पर घोषित किया कि उसको न्याय नहीं मिलता है, तो वह आत्महत्या करने के लिए तैयार है। जब न सुनवाई हुई, न सहायता मिली और न संवेदनशीलता किसी ने दिखाई, तो यह बेटी बच न सकी। अपने शरीर में आग लगा कर उसने आत्महत्या करने का प्रयास किया। आखिरी जुल्म उस पर यह हुआ कि उसको अस्पताल ले जाने में कोई पांच घंटे की देरी हुई। उसका शरीर नब्बे फीसद से ज्यादा जल चुका था। शायद उसकी जान बच जाती अगर अस्पताल पहुंचती समय पर।

पढ़ने वाली बेटी के मरने के बाद अखबारों में लंबे-चौड़े लेख छपे। लिखने वालों ने खूब संवेदना जताई और घड़ियाली आंसू बहाए, लेकिन सच यह है कि इस तरह की कहानियां इतनी ज्यादा सुनने को मिलती हैं भारत में कि आंसू भी लोगों के सूख गए हैं। इस बेटी के मरने के कुछ दिन बाद एक वीडियो देखा मैंने, जिसमें दस साल की एक बच्ची को एक आदमी घसीट कर लेकर जाता है सुनसान सड़क के किनारे झाड़ियों में। उससे बलात्कार करता है। यह खबर तमिलनाडु से थी।

आंकड़ों के मुताबिक, छोटी बच्चियों से बलात्कार के मामले 2016 और 2022 के बीच 96 फीसद बढ़े

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, छोटी बच्चियों से बलात्कार के मामले 2016 और 2022 के बीच 96 फीसद बढ़ गए। इन आंकड़ों के अनुसार, बलात्कार के सबसे अधिक मामले 2022 में राजस्थान में दर्ज हुए। आंकड़ा था 5399, नंबर दो पर आया उत्तर प्रदेश जहां 3690 मामले दर्ज हुए और तीसरे नंबर पर आया मध्य प्रदेश, जहां 3029 मामले दर्ज हुए राष्ट्रीय अपराध रेकार्ड ब्यूरो के मुताबिक।

रही बात पढ़ने वाली बेटियों से बलात्कार की, तो दो दर्दनाक मामले आए हैं पिछले महीनों में कोलकाता से। पहले वाले में एक बेटी जो मेडिकल कालेज में पढ़ रही थी जान से मारी गई बलात्कार के बाद। दूसरे में एक बेटी जो वकालत पढ़ रही थी उससे सामूहिक बलात्कार हुआ कालेज के अंदर। यह बेटी जीवित रही और जिन दरिंदों ने उससे बलात्कार किया वे गिरफ्तार हुए। सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है उस देश में जिसके प्रधानमंत्री ने खुद बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा दिया है।

सवाल का जवाब है कि बेटियों के खिलाफ जब दरिंदगी होती है, तो हमारे राजनेता वास्तव में असली संवेदना कभी नहीं जताते हैं, न असली दर्द होता है उन्हें। बंगाल या तमिलनाडु में जब किसी बेटी से बलात्कार होता है, तो भारतीय जनता पार्टी के नेता खूब हाय-तौबा मचाते हैं। उत्तर प्रदेश या राजस्थान में जब कोई दरिंदगी का मामला सामने आता है, तो हल्ला मचाते हैं विपक्षी दल के नेता।

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जब कुछ साल पहले कश्मीर में एक छोटी बच्ची से बर्बरता हुई थी, तो वहां के हिंदू संगठनों ने साथ दिया था उस पुजारी और उसके बेटे का, जिसने इस बच्ची को मंदिर में कैद करके भूखा-प्यासा रख कर कई दिनों तक उसको नशे की गोलियां देकर उससे ऐसी दरिंदगी की, जिसके लिए मेरी शब्दावली में शब्द नहीं हैं।

राजनीतिक अगर देश की बेटियों के साथ अन्याय कर रहे हैं, तो उससे भी अधिक अन्याय उनके साथ होता है हमारी अदालतों में। बलात्कार के मामले अगर पहुंचते भी हैं अदालतों तक, तो इतना लंबा चलता है कि शिकायत दर्ज करने वाली बेटी ही हार मान लेती है कई बार।

अक्सर जमानत पर छूट जाते हैं बलात्कारी और कई बार तो वे पीड़िता को धमकाने-डराने में लग जाते हैं और कई बार तो उसको जान से मार देते हैं ताकि गवाही न दे सके। ऐसी भी बेटियां हैं इस देश में जिन्होंने शिकायत दर्ज करने के बाद तंग आकर खुदकुशी कर ली है। कुछ बेटियों पर तेजाब फेंका जाता है अगर वे शिकायत वापस लेने के लिए तैयार नहीं होती हैं।

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राजनीति और न्याय के चक्र से रिहा होती हैं, तो इस देश की बेटियों का यह हाल है कि उनके परिजन ही उनको शर्मिंदा करने में लग जाते हैं। ऊपर से कई कहानियां ऐसी हैं जिनमें उनके बाप और भाई ही उनका यौन शोषण करने में लग जाते हैं। यानी सबसे बड़ी समस्या सामाजिक है, खासतौर पर देहातों में जहां छोटी कही जाने वाली जाति की बेटियों से ऊंची कही जाने वाली जाति के लड़के बलात्कार करते हैं।

कहने का मतलब यह है कि यह ऐसी समस्या है जो अच्छे नारे से नहीं हल होने वाली है, लेकिन अगर हमारे राजनेता अच्छे शब्दों से आगे निकल कर वास्तव में बलात्कार के खिलाफ मुहिम चलाने की हिम्मत दिखाते हैं, तो शायद कुछ बदल सकता है। आज नहीं तो कम से कम कल या परसों।

शुरुआत अगर राजनेता करते हैं ईमानदारी से, तो हो सकता है कि कभी न कभी भविष्य में इस देश की बेटियों को वास्तव में बचाने और पढ़ाने का काम होगा। वर्तमान हाल यह है कि रोज बलात्कार का कोई न कोई नया मामला आता है और अक्सर इन बेटियों की कहानियां सुर्खियों में नहीं कही जाती है। छिपा कर लिखी जाती है संक्षिप्त में, जैसे हम सब मान चुके हैं कि ऐसा तो होता ही है हमारे देश में। इसलिए कब तक इसको लेकर दुखी होते रहेंगे।