चैनलों को बंगलुरू का पातक नजर आता है, लेकिन ऐन दिल्ली में पुराने नोट लौटाने आई उस औरत की कहानी एक मिनट से ज्यादा दिखाने लायक न लगी, जो बैंक द्वारा नोट लेने से इनकार किए जाने से निराश होकर सरेआम अपने कपड़े उतारने को मजबूर हुई! उसे किसने नंगा होने को मजबूर किया? नोटबंदी के पचास दिन पूरे होने थे। पीएम बोलने वाले थे। लगभग सभी चैनल प्रोग्राम की जम कर माउंटिंग में लगे थे। रिपोर्टर जिस-तिस से पूछते फिरते थे कि बताइए, मोदीजी क्या बोलने वाले हैं? क्या करने वाले हैं? कुछ युवाओं से बुलवाते थे कि वे ये करेंगे, वो करेंगे। माउंटिंग से लगा कि मोदीजी पीएम नहीं, फरिश्ता हैं। उनसे जो मांगोगे वही मिलेगा! ऐसा तो स्वयं मोदीजी तक ने नहीं सोचा होगा!
पहले भी तो पीएम कई बार लाइव बोले हैं, तब तो ऐसी माउंटिंग नहीं की गई? जनता से ऐसी कोर्निशें तो नहीं बजवाई गर्इं!
लेकिन ईष्यार्लु कांग्रेस से यह भी नहीं सहा गया। किसी क्लासिकल विघ्न-संतोषी की तरह सुरजेवाला उपलब्धियों को कूटने आ गए कि कितना काला सफेद हुआ? कितने आए? कितने गए? इसका हिसाब तो दिया ही नहीं। लाइनों में शहीद हुए लोगों के लिए हमदर्दी का एक शब्द नहीं कहा। जो चैनल बोलते दिखा रहा था, उसने ऐन बीच से काट दिया। दूसरे चैनल पर कुछ देर दिखे, फिर उसने भी काट दिया। फिर एक हिंदी चैनल पर बोलते दिखे, तो वहां भी जल्दी कट किए गए!
सबक है: कूटोगे तो कटोगे!

चैनलों का नियम हो चला है: टीवी में आओ तो ‘सत्यंबू्रयात प्रियंब्रूयात न ब्रूयात सत्यमप्रियम्’ करते जाओ, नहीं तो फूटो!
पचास दिन की उपलब्धियों की फूली इस दिव्यकथा की अगर किसी ने हवा निकाली, तो समाजवादी पार्टी के पारिवारिक दंगल ने। एक दिन पिता ने पुत्र को पार्टी से निकाला, तो दूसरे दिन पुत्र ने पिता को आउट किया। रामगोपाल कितनी बार निकाले और लिए गए, इसका हिसाब ही नहीं है!
भाजपा के प्रवक्ताओं की कभी बांछें खिली दिखतीं, कभी चेहरे तने दिखते। एक कहता ‘नूरा कुश्ती’ है, दूसरा कहता ‘ड्रामा’ है, तीसरा कहता ‘हमें फायदा’ है।
इस देसी दंगल की हवा निकालने वाली थी मोदीजी की लखनऊ की विशालतम रैली! कैमरों ने मोदीजी को तो बोलते दिखाया ही, रैली को बार-बार पैन करके दिखाया ताकि दर्शकों को उसकी विशालता का प्रभाव पड़े! मोदीजी ने सहनशील जनता का धन्यवाद किया। कुछ राहत दिए, कुछ वादे किए। शाम तक चैनलों में तर्कतीर्थ आ बैठे। एंकर प्रसन्न कि देखा, पीएम ने वित्तमंत्री का काम हल्का कर दिया!
लेकिन इस कहानी को भी नए साल की पूर्व रात्रि में बंगलुरू की एक गुंडा-कथा ने हटा दिया। फुटेज दिखते रहे, लड़कियों को गुंडे छेड़ते दिखते रहे। पहले बंगलुरू शर्मसार करते रहे, फिर वहां के गृहमंत्री कुटे, फिर पुलिस कुटी और कहानी एक्टिविस्टों के हाथ पड़ गई! फिर क्या था, कैंपेन शुरू कर दिया गया। एंकर एक्टिविस्ट हो उठे और बंगलुरू के चंद गुंडों ने सारे राष्ट्रीय चैनलों से बाकी खबरें हटवा दीं!

यही नहीं, एक गली में दो गुंडों ने घर लौटती एक लड़की को छेड़ा, दबोचा, मारा-पीटा और फेंका! सीसीटीवी कैमरे के फुटेज सब चैनलों पर रहे। दृश्य डरावना था। अकेली लड़की और दो गुंडों की मनमानी दूर खड़े देखते लोग और एंकर देखने वालों पर लानत भेजते रहे, सिर्फ दर्शक क्यों बने रहे?
दो-दो पातकी कहानी और दोनों बंगलुरू में, हाय हाय! ऐसे मुद्दे पर भी जो आंदोलन न करवा सके, वह चैनल किस काम का? एंकर एक्टिविस्ट थे और कंपटीशन शुरू था! स्टूडियो में सुरक्षित बैठे एक्टिविस्ट सबको शर्मसार करते हुए अपनी बात मनवाने की जिद ठान लेते हैं। उनका दंभ देख पहले से ही बेशर्म बंदे और भी ढीठ हो उठते हैं। फिर इसकी राजनीति बनने लगती है और न्याय की बात हवा हो जाती है। हाय हाय प्रमुख हो जाती है, वही हुआ! कांग्रेस की सरकार कुटती रही!
जब कहानी दम तोड़ने लगी तब बॉलीवुड को नसीहत देता दिखाया जाने लगा। वही बॉलीवुड, जो अपनी फिल्मों के जरिए अक्सर लड़कियों को छेड़ने के गुर सिखाता रहता है। उसी का एक हीरो एक चैनल पर आकर देर तक छेड़ने वालों को फटकारता रहा कि शर्म करो, जिस दिन ये लड़कियां मुकाबला करने पर आ गर्इं उस दिन सुधरोगे नहीं, सीधे स्वर्ग जाओगे। लड़कियो, तुम सेल्फ डिफेंस सीखो! कैसे-कैसे उपदेशक! फिल्में छेड़ना सिखाएं और ये फटकारें! दोनों हाथ लड्डू, गजब! चैनलों को उपदेशक भी सेलीब्रिटी भाते हैं!

चैनलों को बंगलुरू का पातक नजर आता है, लेकिन ऐन दिल्ली में रिजर्व बैंक के ऐलान के अनुसार पुराने नोट लौटाने आई उस औरत की कहानी एक मिनट से ज्यादा दिखाने लायक न लगी, जो बैंक द्वारा नोट लेने ये इनकार से निराश होकर सरेआम अपने कपड़े उतारने को मजबूर हुई! उसे किसने नंगा होने को मजबूर किया? चैनल क्यों सोचें कि किसकी वजह से वह इतनी परेशान हुई?
पांच राज्यों के चुनाव घोषित हो गए हैं और पोल पंडित धंधा करने आ गए हैं। दो दो पोल आ चुके हैं। सैंपल गजब के हैं। एक का पांच हजार के करीब रहा, तो दूसरे का बाईस हजार के आसपास। पच्चीस-तीस करोड़ की आबादी वाले पांच राज्य और ये सैंपल! ये तो ऊंट के मुंह में जीरा तक नहीं! पंडितों ने दोनों में पंजाब को छोड़ बाकी चार राज्यों में भाजपा को आगे दिखाया। एक चर्चा में सिर्फ एक चर्चक ने सैंपल पर सवाल उठाए। फिर एक चर्चा में योगेंद्र यादव ने कुछ काम की बात कही कि विपक्षी दलों, मोदी विरोधी दलों की राजनीति के खोखलेपन को देख आश्चर्य होता है!
कभी गाना बजता था ‘दोस्त दोस्त न रहा’। अब बज रहा है ‘तेरे जैसा यार कहां, कहां ऐसा याराना…’। पटना साहिब के प्रकाशोत्सव के अवसर पर ‘तेरे जैसा यार कहां’ वाला गाना जम कर बजा। मोदीजी ने नीतीश की शराबबंदी की तारीफ की, तो नीतीश ने नोटबंदी की तारीफ की!
मेरी दोस्ती मेरा प्यार! भई वाह!!