आजकल जिसे देखो वही बंदा हमें डराने बैठ जाता है। एक शाम एक चैनल पर डब्लूएचओ के टेडरॉस आकर चेता गए कि ‘सबसे बुरा वक्त अभी आना है। लोग इस चेतावनी को हल्के में न लें।’ सर जी! कभी तो शुभ शुभ बोला करो। जब जब आते हो, डरा के चले जाते हो!
ऐसे में हमें बाबा रामदेव से उम्मीद थी कि कोई ऐसा आसन दिखाएंगे कि सारे डर फुर्र हो जाएंगे, लेकिन अपने किशोर सुलभ उत्साह में वे भी कुछ ‘हाई’ हो गए और कह बैठे कि हमने कोरोनिल नाम से कोरोेना की दवा बना ली है, जो शत प्रतिशत ठीक करती है…
फिर क्या था? वे फार्मा कंपनियों का निशना बन गए, और सारे चैनल आयुर्वेद को ठोकने लग गए।
एक चैनल ने एक स्वीडिश समेत तीन मेडिकल वाले बुलाए। इनमें सबसे तीखा स्वीडिश ही बोलीं कि बिना परीक्षण वाले ऐसे ‘मनगढ़ंत मिश्रणों’ को दवा के रूप में देकर मरीजों की जान खतरे में नहीं डाली जा सकती। आयुर्वेद एक विचार भी है… और ये इम्युनिटी बढ़ाने वाले नुस्खे भी इम्युनिटी के लिए खतरा हो सकते हैं। इसके प्रतिवाद में सिर्फ एक आयुर्वेद वाले ने स्वीडिश को टोका कि ये बताइए कि ‘क्लोरोक्विन’ को पहले इंग्लैंड ने दिया, फिर बंद कर दिया और फिर से देने लगे, जबकि कोरोना की दवा के रूप में उसके भी परीक्षण नहीं हुए। ऐसा क्यों?
इस ‘क्यों’ का जवाब तो नहीं आया, अलबत्ता बहस खत्म होते ही उसी चैनल पर एक आयुर्वेदिक कंपनी के इम्युनिटी बढ़ाने वाले ब्रांडों के विज्ञापन बरसने लगे। है न चैनलों की धंधेखोरी कि एक क्षण पहले इम्युनिटी वाले नुस्खों पर हमला कराया और अगले ही क्षण उनको बेचने निकल पड़े!
बहरहाल, सप्ताह की सबसे मजेदार कहानी चीनी तंबुओं की गिनती की रही। एंकर जन अपनी-अपनी सेटेलाइट और अपने-अपने तंबुआें को दिखाते रहे और नक्शों को ऐसे समझाते रहे, मानो पहुंचे हुए ‘कार्टोग्राफर’ हों!
जो एंकर कल तक कहता रहा कि विवादित जगह पर अब एक भी तंबू नहीं है, वही कहने लगा कि चीनी तंबू नहीं हटे हैं, बल्कि और बढ़ गए हैं। मगर, वाह रे एंकर! इतनी बड़ी पलटी और चेहरे पर एक शिकन तक नहीं! यानी ‘या बेशर्मी तेरा ही आसरा!’
सिर्फ दो चैनल सतत रहे कि तंबू कहीं नहीं गए, बल्कि उनकी संख्या बढ़ गई है। ये देखिए, अब पेगोंग में चीन का नया जमावड़ा। ये देखिए, चीनी टैंक, तोपें, गाड़ियां, बुलडोजर…
एक शाम पीएम ने देश के साठ करोड़ गरीबों के लिए, नवंबर महीने तक, हर महीने पांच किलो गेहूं, पांच किलो चावल, एक किलो चना देने का ऐलान किया और साथ ही ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ का ऐलान किया, तो विपक्ष कुछ हिला, लेकिन ममता दीदी ने पीएम के ऐलान से भी आगे बढ़ कर कहा कि वे अगले बरस के जून तक गरीबों को राशन मुफ्त देंगी। चुनाव चिंतक बोले कि सब चुनाव का चक्कर है, तो दूसरे बोले कि बिहार में भी तो चुनाव हैं!
फिर, एक दिन ‘आत्मनिर्भरता’ का नारा आया और देशभक्त चैनलों ने ‘चीन के बायकाट’ की लाइन पेल दी। चैनलों ने ‘बायकाट’ का इतना शोर मचाया कि लगा कि अब आया चीनी ऊंट पहाड़ के नीचे! इसी बीच बहुत-सी चीनी परियोजनाएं और ठेके बंद करने की खबरें आने लगीं। फिर एक दिन सरकार ने चीन के ‘टिकटॉक’ समेत उनसठ ऐप प्रतिबंधित कर दिए। फिर पीएमओ ने वीबो का खाता बंद कर दिया!
लेकिन एक चैनल में एक विशेषज्ञ ने कहा कि हमारे यहां इक्यासी फीसद मोबाइल सेट चीन के बने हैं। उनसे भी तो हमारी जासूसी की जाती होगी। उनका बायकाट कैसे करेंगे? क्या उतने सस्ते फोन हैं आपके पास? बायकाट की ऐसी चर्चाओं से समझ में आया कि चीन हमारे अंदर कहां-कहां तो घुसा हुआ है?
क्या-क्या बायकाट करेंगे? ऐसे में बायकाट करते-करते हमारी दशा कहीं ‘भइ गति सांप छछुंदर केरी’ वाली न हो जाय! ऐसी ही एक ‘बायकाटवादी’ बहस से ज्ञात हुआ कि सरकार की लाइन है कि बैन भले करो, लेकिन बहुत गाल न बजाओ! लेकिन अपने एंकर, जिनका गाल बजाने से ही पेट भरता है, गाल कैसे न बजाएं?
ऐसी ही एक गालबजाऊ बहस में जब एक साइबर विशेषज्ञ बताने लगा कि दिल्ली में जिस ‘हिकविजन’ के जो सीसीटीवी लगे हैं, वह एक चीनी कंपनी है, जिसका सरगना सीपीसी का नेता है। इनके जरिए चीन घर बैठे देख सकता है कि पीएम कब दफ्तर आते हैं, कब जाते हैं। हम उसकी निगरानी में हैं। यह हमारी सुरक्षा को सबसे बड़ा खतरा है और अफसोस, हमारी सरकार इस स्थिति के लिए एकदम तैयार नहीं है…
जवाब में अक्सर शिष्ट रहने वाले एक भाजपा प्रवक्ता ने साइबर विशेषज्ञ के इस ‘पैरानोइया’ से असहमति जताते हुए कहा कि वे साइबर विशेषज्ञ तो नहीं, फिर भी एक नेता की तरह बात कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने उस ‘एंग्री यंग साइबर एक्सपर्ट’ पर चुटकी ली कि क्या इस साइबर एक्सपर्ट के कोई व्यावसायिक हित हैं, कि हर तरफ चीन का खतरा देखता है… फिर क्या था, सारी बहस तू-तू मैं-मैं में बदल गई!
बहस के बीच बैठे चीन के ‘इनार तांजेन’ ने तुरंत रूडी को सही ठहराया और अमेरिकी कंपनियों के चीन विरोधी प्रचार की ओेर इशारा किया! यारो! जब आप स्वयं चीनियों को अपने चैनलों में आदरणीय मेहमान की तरह बिठाओगे, तो फिर क्या तो छिपना, क्या छिपाना? जिसे ‘दुश्मन’ कहते हो, उसे ही बाप बना कर अपनी बगल में बिठाते हों! क्यों? अपने जनतंत्र में अपने चैनल गोपनीय से गोपनीय मुद्दे तक को तो चैराहे पर लाकर फोड़ते हैं, तो क्या तो गोपनीय रहता है, क्या अगोपनीय?

