जो कहूंगा सच कहूंगा, सच के अलावा कुछ न कहूंगा। जो कहूंगा चैनल देखी-सुनी कहूंगा। अनदेखी, अनसुनी न कहूंगा: न तो पहलू खान पटक-पटक कर पीटा गया दिखा। न चंद वीरपुंगव गोरक्षक उसे सड़क पर दौड़ा-दौड़ा कर मारते दिखे!  मंत्रीजी ने संसद में सच के अलावा कुछ न कहा कि जिस तरह की घटना पेश की जा रही है, ऐसी घटना जमीन पर हुई ही नहीं!  जब एंकर आलोचना में जुटे और प्रवक्ता बगलें झांकने लगे, तो मंत्रीजी ने सत्य को करेक्ट किया कि उनकी बात को ठीक से नहीं समझा गया। वे अलवर के बारे में नहीं बोल रहे थे!  पहला ‘सत्य कथन’ फिर ‘सत्य’ का संशोधन, संपादन, करेक्शन! ‘उत्तर-सत्य’ एक सुसंपादित सत्य होता है! उसकी असली संपादक होती है ताकत!  मंत्रीजी को छोड़ें। अलवर की हत्या को लेकर हुई संसदीय बहसों को भी छोड़ें। सिर्फ उन सीनों की ओर लौटें, जो हजारों बार दिखे। जितनी बार दिखे, कलेजा मुंह को आता रहा। कानूनी तरीके से गाय खरीद कर लाने वाले दूधिए पहलू खान की दिन दहाड़े हत्या को देख हृदय कांप गया! परिवार के एक जन ने कहा कि वे धर्म पूछ कर मार रहे थे! इस बर्बरता का वीडियो तक था! उसी के सीन थे। सीनों में चार-पांच हृष्ट-पुष्ट गोरक्षक थे। वे पहलू खान को पहले दौड़ाते थे, फिर मारते थे, फिर पटकते थे, फिर मारते थे। अंत में वह सड़क पर बेदम होकर गिर गया। फिर भी लात रसीद करते रहे!

सत्य को पीट-पीट कर ही ‘उत्तर-सत्य’ बनाया जाता है। बाइट पर बाइट, बाइट बदल कर बाइट, फिर बाइट पर बाइट और फिर करेक्शन पर करेक्शन, फिर बहस पर बहस कि सत्य क्या था? दमदार लोगों के सामने सत्य दुम दबा कर किसी कोने में छिप जाता है! आह! हमारे चैनल! हमारे सांसद! हमारे बहसीले जीवंत पदार्थ!  लेकिन सबसे बड़े न्यूज मेकर हैं योगीजी! एक दिन लखनऊ मेडिकल विश्वविद्यालय के परिसर से मेडिकल सुविधाओं की ढेर सारी योजना का ऐलान कर दिए! डॉक्टरों को समझाया कि गैंग जैसा काम न करें डॉक्टर। प्राइवेट प्रैक्टिस न करें। पच्चीस नए मेडिकल कॉलेज खोलेंगे! यूपी में पांच लाख डॉक्टरों की जरूरत होगी…! वारी जाऊं! क्या गजब ढाते हैं योगीजी! एकदम दो टूक, बेहिचक, नपा-तुला और साफ-सुथरा! सबसे बेहतरीन कम्यूनिकेटर लगते हैं इन दिनों योगीजी! बोलते वक्त मोदीजी का चेहरा तनावग्रस्त-सा नजर आता है, जबकि योगीजी बोेलते हंै तो एकदम शांत, उदात्त चित्त से और मृदु मुस्कान के साथ! चैनलों ने पहले ही कह रखा था कि योगीजी की कैबिनेट की पहली मीटिंग है। किसानों के कर्ज माफ हो सकते हंै! और शाम होते-होते हो न गया कर्जा माफ! प्रवक्ता बताते रहे कि एक लाख रुपए प्रति किसान कर्ज माफ हुआ है!

योगीजी ने दूरदर्शन को साक्षात्कार दिया, तो कई चैनलों ने उसके अंश दिए। योगीजी कई चैनलों पर ये संदेश देते दिखे:हिंदू धर्म की अवधारणा गलत नहीं। वह जीवन-शैली है। योगी राजसत्ता चला सकता है…  इस बीच यूपी के आबकारी मंत्री ने खबर में आने की कोशिश की, लेकिन देर तक नहीं टिक सके! प्रशांत भूषण कृष्णजी को ‘मनचला’ ट्वीट कर तीन दिन चैनलों में पिटते रहे, फिरमाफी मांग कर निकल गए! एक खबर में अजमेर शरीफ के चीफ ने ‘मुसलमान गोमांस नहीं खाएंगे’ कह कर सनसनी-सी फैलाई, लेकिन अगले रोज उनको काउंसिल से ही रुखसत कर दिया गया! ये खबरें टिकाऊ नहीं रहीं! एक लाइन में रही, दूसरी में गायब हो गई! असली खबरें या तो गायकवाड़जी ने बनार्इं या गोरक्षकों ने बनार्इं! पूरे सप्ताह या तो गायकवाड़जी खबरों में छाए रहे या गोरक्षक!
चैनल गायकवाड़जी को गुंडा, गून कहते रहे। माफी मंगवाते रहे, लेकिन वाह रे गायकवाड़! माफी मांगी तो संसद में आकर सदन से मांगी और लंबा बयान पढ़ा! उनका कहना था कि अधिकारी ने पहले उनका अपमान किया था…!
अलवर के हमलावर गोरक्षकों के बचाव में उनके प्रवक्ताओं के तर्क और भी मजेदार दिखते थे। वे कुछ इस क्रम से तर्क देते थे: कानून को कोई अपने हाथ में नहीं ले सकता! हम हिंसा की निंदा करते हैं! गोहत्या का हक किसी को नहीं…!
लेकिन क्या आप गोरक्षकों को ‘हत्यारा’ मानते हैं? तो प्रवक्ता कन्नी काटने लगते!अपने सत्य की रक्षा इसी तरह की जाती है!
सर्वाेत्तम बातें कहीं राजस्थान के मंत्रीजी ने कि ग्यारह लोगों पर तस्करी का केस है, पांच पर हत्या का केस है। आपस में मारामारी हुई थी। बाद में मौत हुई! कानून अपना काम करेगा!
एनडीटीवी की निधि राजदान टोकती रहीं कि विक्टिम और मारने वालों को एक बराबर कैसे रख रहे हैं? तो वे पूरे आत्मविश्वास से कहते रहे कि छह ट्रक थे, चार को पुलिस ने रोका, दो को लोगों ने रोका। मारामारी हुई! तस्करी का केस बना। उधर हत्या का केस बना! जांच हो रही है, कानून काम कर रहा है! ‘वसुंधराजी क्यों नहीं बोल रहीं?’ ये उनसे पूछिए’! पूर्ण विराम!

इस तरह बनता है ‘उत्तर-सत्य’! पहले दृश्य दिखते हैं, फिर व्याख्या होती है, करेक्शन किए जाते हैं, फिर कुछ कानूनी कथन कहे जाते हैं। हत्यारे और हतक के बीच का फर्क मिट जाता है। सत्य की इस कदर घिसाई होती है कि सत्य खुद को भी पहचान नहीं पाता!
यह है उत्तर-सत्य की लीला! उत्तर-दृश्यों की लीला! उत्तर-सत्य की कथाएं इसी तरह बनती हैं: आप उनकी टाइमिंग देखें, उनका बजाया जाना देखें, फिर राजनीतिक तेवर देखें!
अरसे बाद दिग्विजय सिंह ने सूत्र शैली में यह टिप्पणी की, जो कई चैनलों में बजी कि पहले अटलजी ‘साफ्ट हिंदुत्व’ का चेहरा थे और आडवाणीजी ‘हार्ड हिंदुत्व का’! फिर आडवाणीजी ‘साफ्ट हिंदुत्व का चेहरा बने, तो मोदी ‘हार्ड हिंदुत्व’ का! अब मोदीजी ‘साफ्ट हिंदुत्व’ का चेहरा बन रहे हैं और योगी ‘हार्ड हिंदत्ुत्व’ का!
अब आप ‘साफ्ट’ और ‘हार्ड हिंदुत्व’ के ‘उत्तर-सत्य’ को बांचते रहिए!