असद तो झांकी है, अगली मुठभेड़ बाकी है।’ ‘योगी की कसम, विशेष माफियामुक्त उत्तर प्रदेश।’ ‘आएगी बेगम की खबर, दबने वाला है एसटीएफ ट्रिगर।’ ‘योगी का एलान, मिट्टी में डान! जैसा एलान वैसा अंजाम।’ शुक्रवार की सुबह कई हिंदी चैनलों की ये निष्ठुरतायुक्त कुछ पंक्तियां हैं, जो बार-बार दिखती हैं।
‘हमने गुलाम को समझाया, वह नहीं माना… जो हुआ, ठीक हुआ- गुलाम की मां! गुलाम का बाप कहता है, वो गुलाम का ‘शव’ लेने नहीं जाएगा।…
पहले खबर आती है कि शाइस्ता असद के जनाजे में शामिल नहीं होगी, कि फिर आती है कि वह शव लेने आएगी और खबर आती है कि पुलिस भी वहीं उसे गिरफ्तार करने को तैयार रहेगी।…’
गुरुवार की दोपहर में ‘यूपीएसटीएफ’ द्वारा झांसी के पास एक ‘मुठभेड़’ में उमेश पाल के हत्यारे इनामी बदमाश असद और गुलाम को ढेर किए जाने की खबर आती है और चैनलों में छा जाती है। कुछ ही देर बाद असद और गुलाम की लाशें खेत में पड़ी दिखती हैं। गुलाम के एक हाथ में पिस्तौल अटकी है। असद की पिस्तौल लुढ़की मोटर साइकिल के पास गिरी हुई है। फिर रिपोर्टर सीधे मौके से लाइव करने लगते हैं कि ये हैं बदमाश असद और गुलाम मोहम्मद की लाशें।
माफिया को ‘मिट्टी में मिला देने’ की यह कहानी एकदम निष्करुण तरीके से ही कही जाती है। चैनल खबर देते हैं कि मुठभेड़ की खबर सुनते ही प्रयागराज की अदालत में मौजूद माफिया डान अतीक अहमद रोते-रोते गिर पड़ता है और कह उठता है, ‘जो हुआ उसकी वजह से हुआ…’ लेकिन अगली ही सुबह अतीक के वकील की मार्फत एक चैनल पर लाइन आती है- अतीक ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया है।…
इसके बाद चैनलों पर इस ‘मुठभेड़’ को लेकर राजनीति शुरू हो जाती है। सपा के नेता कहते हैं कि यह फर्जी मुठभेड़ है… ओवैसी कहते हैं कि एक वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है। कानून की धज्जियां उड़ रही हैं… गोली से इंसाफ करेंगे तो जज क्या करेंगे।…
यूपीएसटीएफ के आला अफसर शांत भाव से ‘मुठभेड़’ की कहानी बताते हैं कि हमारे पास सूचना थी… जब उन्होंने पुलिस पर गोली चलाई, तो जवाबी हमले में वे मारे गए…
और अतीक रोता है, चैनल उसका विलाप दिखाते हैं। अतीक भरे गले से कहता है, हमारा परिवार तो पूरी तरह बर्बाद हो गया।…
अब सीधे यूपी विधानसभा: सपा नेता का कटाक्ष और सीएम योगी का जवाब कि (माफिया को) ‘मिट्टी में मिला देंगे।…’ यह वाक्य योगी का ‘ब्रांड’ वाक्य बन चुका है। चैनल इसे बार-बार बजाते हैं… मुठभेड़ के बाद अतीक के एक से एक विलापी बयान चैनल दिखाने लगते हैं: माफियागीरी बची ही कहां… हमारा परिवार पूरी तरह बर्बाद हो गया… मिट्टी में मिला दिया… अब मिट्टी रगड़ रहे हैं।…
एक बार फिर, अतीक को भारी पुलिस सुरक्षा में गाड़ी में साबरमती जेल से प्रयागराज लाया जा रहा है कि रास्ते में रात में गाड़ी खराब हो जाती है और चैनल लाइन देने लगते हैं कि ‘कहीं गाड़ी तो नहीं पलट जाएगी।…’
‘कहीं गाड़ी तो नहीं पलट जाएगी’ और ‘मिट्टी में मिला देंगे’ यूपी के बुलडोजरवाद के नए ‘राजनीतिक ब्रांड’ हैं। उत्साहित होकर एक चर्चक कहने लगता है कि अब तो योगी जी की मांग कई विदेशों में भी होने लगी है, कि हे महाराज! जरा हमारे यहां के अपराधियों को ठोक-ठाक कर ठीक कर दो…
एक ओर मुठभेड़ है, दूसरी और एक पार्टी की एक संभ्रांत प्रवक्ता अंग्रेजी में ट्वीट करती हैं कि यह ‘ठोको कल्चर’ है…बहरहाल, वह दृश्य तो भुलाए नहीं भूलता, जिसमें सरे बाजार एक गाड़ी रुकती है, उमेश पाल उतरता है कि उसका पीछा करते कई लोग पिस्तौलें निकाल कर उसकी ओर गोली चलाने लगते हैं। इन गोली चलाने वालों में से एक असद है, जो दौड़ता हुआ पिस्तौल से गोली दागता है और दूसरा है गुलाम, जो एक दुकान से निकल कर आता है और गोली चलाने लगता है और उस गोलीबारी में ‘गवाह’ उमेश और उसके दोनों पुलिस सुरक्षा गार्ड मारे जाते हैं। रिपोर्टें कहने लगती हैं कि इस गोलीबारी की योजना जेल से अतीक आदि ने बनाई थी।
मगर, यह कैसी विडंबना है कि जब तक उमेश के इनामी हत्यारे नहीं पकड़े गए थे, बहसों में विपक्षी सत्ता को ताना देते थे कि क्या सरकार की मिलीभगत है कि पैंतालीस दिन हुए, एक भी बदमाश नहीं पकड़ा गया! मगर जैसे ही खबर आई कि ‘असद-गुलाम मुठभेड़ में ढेर’ तो रोने लगे कि यह कानून का राज नहीं है।…
उधर सत्तापक्ष बल्ले बल्ले कि जो कहते हैं, कर देते हैं। मिट्टी में मिला दिया न! इस माफिया-कथा के अलावा सर्वाधिक मानीखेज हस्तक्षेप रहा एनसीपी के वरिष्ठ नेता शरद पवार जी का कि उनके बोलते ही विपक्ष के कई मुद्दे निपट गए, जैसे कि पीएम की डिग्री का कोई मुद्दा नहीं, कि सावरकर के बलिदान को नजरंदाज नहीं किया जा सकता, कि (अडाणी को लेकर) जेपीसी की जरूरत नहीं… इसे कहते हैं असली राजनेता कि तीन बोलों में तीनों मुद्दे निपटा दिए।
दूसरी मजेदार कहानी ‘अमूल दूध बरक्स नंदिनी दूध’ की प्रतिस्पर्धा की रही। ‘एक कहे कि ‘नंदिनी दूध’तो कन्नड का अभिमान’ है इसलिए उसे ‘अमूल’ से बचाओ और इसलिए करने लगे ‘गो बैक अमूल’, जबकि दूसरे स्पष्ट करते रहे कि ‘नंदिनी’ भी अन्य राज्यों में बिकता है, तो क्या उसे भी ‘गो बैक’ कहा जाय? यह कैसा ‘अभिमान’ है, जो ‘प्रतिस्पर्धा’ से डरता है!