PM Narendra Modi Movie Review and Rating: काश ये फिल्म पहले ही रिलीज हो जाती तो निर्माता और निर्देशक आज जश्न मना रहे होते। वो तो चुनाव आयोग ने इसे लोकसभा चुनाव के समय रिलीज नहीं होने दिया वरना ये फिल्म बनाने वाले ये दावे करते कि 2019 की लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और भाजपा की जीत में इस फिल्म की भी भूमिका है। खैर, वो दावा करने का वक्त चला गया है। अब तो ये साबित हो गया है कि नरेंद्र मोदी को जीत हासिल करने के लिए फिल्म की जरूरत नहीं थी।
आज की तारीख में इस फिल्म को देखने के पहले हर दर्शक के मन में यही सवाल होगा कि आखिर विवेक ओबेराय ने मोदी का किरदार कैसा निभाया है। उनके लिए उत्तर है कि जिस वास्तविक नरेंद्र मोदी को अक्सर टीवी स्क्रीन पर देखते हैं उसके मुकाबले विवेक ओबेराय निस्तेज दिखते हैं। वास्तविक नरेंद्र मोदी अपने संवाद आत्मविश्वास और सहजता से बोलते हैं और लोगों को दिलों में अपनी जगह बना लेते हैं। लेकिन विवेक ओबेराय के रूप में हम स्क्रीन पर जिस मोदी को देखते हैं उसमें न तो वो आत्म विश्वास है और न सहजता। हां बोमन ईरानी टाटा की भूमिका में कुछ देर के लिए आकर्षण पैदा करते हैं। मां की भूमिका में जरीना वहाब भी सहज दिखीं।
`पीएम नरेंद्र मोदी’ में बचपन में चाय बेचने वाले शख्स से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक,. भाजपा के पदाधिकारी, गुजरात की राजनीति और भारतीय राजनीति में शीर्ष पर पहुंचने वाले नरेंद्र मोदी के कई पड़ावों को दिखाया गया है। फिल्म मोदी के बचपन से शुरू होती है और पहली बार प्रधानमंत्री बनने तक पहुंचती है और ये दिखाती कि कैसे एक साधारण परिवार में पैदा होनेवाले शख्स भारतीय राजनीति मे शिखर पर पहुंच गया। वैसे इस फिल्म के निर्माता इस फिल्म की अगली श्रृंखला अभी से बनाना शूरू कर दें तो शायद उनको फायदा हो क्योंकि इस बार यानी 2019 के लोकसभा चुनाव मोदी की जीत न सिर्फ अधिक चमत्कारिक है और दमदार भी। इसलिए इस फिल्म का पार्ट टू बनाना एक अच्छा खयाल हो सकता है। लेकिन क्या उसमें भी विवेक ओबेराय ही मुख्य भूमिका में होंगे?
खैर ये सब खयाली बाते हैं। फिलहाल तो ये कहा जा सकता है कि `पीएम नरेंद्र मोदी’ चुनाव के बाद भी लोगों की रुचि और उत्सुकता का विषय हो सकती है। विवेक ओबेराय की वजह से नहीं बल्कि वास्तविक नरेंद्र मोदी की वजह से।