Unknown Facts About Lord Rama: भगवान श्री राम का नाम कौन नहीं जानता… वे सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि मर्यादा और आदर्श का प्रतीक भी हैं। महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य रामायण में उनके जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना को विस्तार से लिखा है। श्री राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने जीवनभर धर्म, सत्य, प्रेम और कर्तव्य का पालन किया। उनके जीवन से हमें संस्कार, परिवार और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की प्रेरणा भी मिलती है। ऐसे में आइए इस लेख में आज हम आपको बताते हैं भगवान राम के जीवन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में।
भगवान श्री राम का जीवन परिचय
श्री राम का जन्म त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ के घर हुआ था। उनकी माता कौशल्या थीं और उनके तीन भाई – लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। भगवान श्री राम अयोध्या के महाराज दशरथ के सबसे बड़े पुत्र थे। भगवान राम का विवाह मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री माता सीता से हुआ था। वहीं, लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला, शत्रुध्न की पत्नी श्रुतकीर्ति और भरत की पत्नी मांडवी थी। भगवान राम को राजा दशरथ ने अपनी पत्नी कैकेयी के कहने पर 14 वर्षों के लिए वनवास भेज दिया था। इस दौरान सीता और लक्ष्मण जी भी उनके साथ थे। वनवास के समय उन्होंने कई ऋषियों और संतों से मुलाकात की, आदिवासियों को संगठित किया और समाज में एकता और प्रेम का संदेश दिया।
भगवान विष्णु के सातवां अवतार
भगवान राम को भगवान विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वे धरती पर धर्म और सही राह दिखाने के लिए आए थे। जब उनका जन्म हुआ, तो देवता और गंधर्व उनके दर्शन करने लगे और खुशी में फूलों की बारिश हुई। भगवान राम ने हमेशा सही रास्ते पर चलने की सीख दी और हर रिश्ते की मर्यादा निभाई। वे एक आदर्श बेटे, पति और राजा बने। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सच और धर्म के रास्ते पर चलना कितना जरूरी है। इसलिए आज भी लोग उन्हें पूजा करते हैं।
भगवान राम का महत्व
भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए कई अवतार लिए हैं, जिनमें श्री राम उनका सातवां अवतार माने जाते हैं। उन्होंने असुरों का संहार किया, धर्म की रक्षा की और लोगों को सही मार्ग दिखाया। उनका जीवन हर इंसान के लिए एक प्रेरणा है। महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में तो तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में श्री राम की महानता का वर्णन किया है। भगवान राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र और पति ही नहीं, बल्कि एक न्यायप्रिय और दयालु राजा भी थे। उन्होंने अपने राज्य में सभी को एक समान माना, धर्म और नीति का पालन किया और प्रजा की भलाई के लिए जीवन समर्पित कर दिया। तुलसीदास जी ने अपनी रचना रामचरितमानस में रामराज्य की सुंदर व्याख्या भी की है।
वनवास के दौरान श्री राम का योगदान
वनवास के दौरान श्री राम ने न केवल अपने परिवार और धर्म के प्रति समर्पण दिखाया, बल्कि समाज के पिछड़े और उपेक्षित लोगों के लिए भी कार्य किया। उन्होंने वनवासियों और दलितों को संगठित किया, उन्हें शिक्षा दी और उनके अधिकारों की रक्षा की। यही कारण था कि जब रावण के खिलाफ युद्ध हुआ, तो सभी जाति और समुदाय के लोग श्री राम के साथ खड़े थे।
श्री राम की मृत्यु और बैकुंठ गमन
भगवान राम का यह मानना था कि जो भी पृथ्वी पर आता है, उसे एक दिन इस लोक को छोड़कर जाना ही पड़ता है। माता सीता के धरती में समा जाने के बाद, श्री राम ने भी अपना सांसारिक रूप त्याग दिया और अपने असली स्वरूप, भगवान विष्णु का रूप धारण कर बैकुंठ धाम चले गए। हालांकि, उनकी मृत्यु की सही तिथि किसी को ज्ञात नहीं है।
भगवान राम के अनसुने 10 रोचक तथ्य
ऐसा बताया जाता है कि जब भगवान राम को वनवास हुआ था, तब उनकी उम्र 27 साल थी।
श्री राम और सीता के दो जुड़वा बेटे थे – लव और कुश।
रावण के साथ युद्ध के समय इंद्रदेव ने श्री राम के लिए दिव्य रथ भेजा था।
भगवान श्री राम ने 10,000 वर्षों तक पृथ्वी पर शासन किया।
भगवान श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी को हुआ था, जिसे रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
रावण की मृत्यु के बाद श्री राम ने उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बनाया।
भगवान राम ने ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या को उनके पत्थर बनने के श्राप से मुक्त करवाया था।
एक राजा अरण्य ने रावण को श्राप दिया था कि उनके वंश का ही कोई व्यक्ति उसकी मृत्यु का कारण बनेगा, और श्री राम उसी वंश में जन्मे।
समुद्र पार करने से पहले श्री राम ने एकादशी व्रत रखा था।
जब श्री राम 14 वर्ष का वनवास खत्म कर अयोध्या लौटे, तब अयोध्यावासियों ने खुशी में दीप जलाए थे और तब से इस दिन को दिवाली के रूप में मनाई जाती है।
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