लंकापति रावण से जुड़े कई प्रसंग बड़े ही चर्चित हैं। इन्हें अक्सर कहा-सुना जाता रहता है। आज हम भी आपके लिए एक बड़ा ही रोचक प्रसंग लेकर आए हैं। इस प्रसंग में उस घटनाक्रम का उल्लेख किया गया है जब ब्रम्हा जी ने रावण की तपस्या में बाधा डाली थी। रावण को भगवान शिव का भक्त बताया जाता है। रावण की शिवभक्ति के बारे में यहां तक कहा जाता है कि उससे बड़ा शिवभक्त इस दुनिया में नहीं हुआ। एक बार रावण शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या करने गया। रावण ने काफी लम्बे समय तक शिव की कड़ी तपस्या की। बताते हैं कि शिव जी रावण की तपस्या से प्रसन्न हो गए। और राणव को कोई वरदान मांगने के लिए कहा।
प्रसंग के मुताबिक, रावण ने शिव जी से वरदान के रूप में उन्हें उसके साथ लंका जाने के लिए कहा। शिव जी शिवलिंग रूप में उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गए। लेकिन उन्होंने यह शर्त रखी कि शिवलिंग को रास्ते में कहीं भी रखा नहीं जाएगा। रावण ने यह शर्त मान ली। और रावण शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चल दिया। चूंकि कैलाश पर्वत से लंका की दूरी बहुत अधिक थी। इसलिए रावण रास्ते में ही थक गया। और शिवलिंग को रास्ते में ही एक जगह पर रखकर आराम करने लगा। इससे शिवलिंग वहीं पर स्थापित हो गया।
रावण उस शिवलिंग को वहां से उठाने में असफल साबित हुआ। और उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। अब रावण ने पश्चाताप करने के लिए शिवलिंग पर प्रतिदिन 100 कमल के फूल अर्पित करना शुरू किया। रावण ने ऐसा लगातार 12 साल तक किया। लेकिन ब्रम्हा को रावण की भक्ति पर संदेह था। उन्होंने एक दिन 100 कमल के फूलों में से एक को चूरा लिया। ऐसे में रावण ने अपना सिर काटकर शिव को एक कमल के फूल के रूप में अर्पित कर दिया। इससे प्रसन्न होकर शिव ने रावण की नाभि में अमृतकुंड की स्थापना की।