Sakat Chauth, Vrat, Puja Vidhi, Muhurat, Mantra, Significance: हर माह में दो चतुर्थी तिथि आती है एक शुक्ल पक्ष में जिसे विनायकी चतुर्थी कहा जाता है दूसरी कृष्ण पक्ष में जिसे संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2020) कहते हैं। इस तरह एक साल में कुल 24 चतुर्थी व्रत पड़ते हैं। लेकिन सभी में माघ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व माना गया है। जिसे सकट चौथ, संकटाचौथ, तिलकुट चौथ (Tilkut Chauth) आदि नामों से भी जाना जाता है। जानिए इस व्रत की विधि, महत्व और संपूर्ण व्रत कथा…
Makar Sankranti 2020 Date: When is Makar Sankranti Festival in 2020?
महत्व: संकष्टी का अर्थ होता है संकटों का हरण करने वाली चतुर्थी। इस व्रत में भगवान गणेश की पूजा की जाती है। महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु और खुशहाल जीवन की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं। इस दिन निर्जला व्रत रख भगवान गणपति की विधि विधान अराधना की जाती है तथा उन्हें तिल के लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
Mercury Transit 2020: बुध ने बदली अपनी राशि, मिथुन, सिंह और कुंभ वालों की बढ़ेगी परेशानी
व्रत की विधि: व्रत रखने वाले इस दिन सुबह स्नान कर निर्जला व्रत करने का संकल्प लें। रात में चंद्र दर्शन के बाद इस व्रत को खोला जाता है। कई जगह महिलाएं पूरे दिन कुछ ग्रहण नहीं करती और अगले दिन इस व्रत को तोड़ती हैं। तो वहीं कुछ स्थानों पर व्रत तोड़ने के बाद खिचड़ी, मूंगफली और फलाहार किया जाता है। इस दिन शकरकंद जरूर खाया जाता है।
Mercury Transit 2020: आज बुध बदलेंगे अपनी राशि, इन 5 राशियों के लोग हो जायें सतर्क
पूजा विधि: सकट चौथ के दिन भगवान गणेश की पूजा करने के लिए सुबह स्नान कर स्वच्छ हो जाएं। उसके बाद घर के मंदिर को साफ कर पूजा की तैयारी करें। पूजा के लिए एक साफ चौकी लें जिस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की मूर्ति को स्थापित करें। फिर विधि विधान पूजा करें। कुछ जगहों पर इस दिन तिल और गुड़ का बकरा बनाकर उसकी बलि दी जाती है। व्रत रखने वाली महिलाएं एक जगह एकत्रित होकर गणेश जी की कथा सुनती हैं। ध्यान रखें, बप्पा की पूजा में जल, अक्षत, दूर्वा, लड्डू, पान, सुपारी का जरूर उपयोग करें। लेकिन तुलसी के पत्ते का भूलकर भी इस्तेमाल न करें।
चंद्रोदय रात 8:33 पर होगा। सकट की तिथि 13 जनवरी को शाम 5:32 से शुरु होकर 14 जनवरी दोपहर 2:49 तक है।
माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विशेष माना गया है. सकट चौथ, तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है.
पूजा के बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत तोड़ा जाता है। चंद्रमा को शहद, रोली, चंदन और रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें। कुछ स्थानों पर व्रत तोड़ने के बाद महिलाएं सबसे पहले शकरकंद का प्रयोग करती हैं।
सुबह स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर गणेशजी की प्रतिमा को ईशान कोण में एक चौकी पर स्थापित कर दें। ध्यान रहे चौकी पर लाल या फिर पीला कपड़ा अवश्य बिछा दें। फिर गणेशजी की प्रतिमा पर गंगाजल छिड़क कर उनकी पूजा शूरू करें। इसके बाद रोली, अक्षत, दूर्वा और फूल चढ़ाएं। फिर पान, सुपारी और लड्डू का भोग लगाएं। इसके बाद देसी घी और धूप आदि से उनकी पूजा करें और आरती उतारें। इसे ओम गणेशाय नम: मंत्र का जप करते हुए भगवान को अर्पित करें। सकट चतुर्थी के दिन कुछ घरों में तिल और गुड़ का बकरा बनाकर उसकी बलि दी जाती है। इस दिन महिलाएं समूह में एकत्र होकर भगवान गणेश की कथा भी सुनाती हैं।
दिल्ली 8 बजकर 37 मिनट
मुंबई 9 बजकर 8 मिनट
नोएडा 8 बजकर 37 मिनट
लखनऊ 8 बजकर 27 मिनट
पटना 8 बजकर 8 मिनट
चंडीगढ़ 8 बजकर 36 मिनट
जयपुर 8 बजकर 45 मिनट
कानपुर 8 बजकर 27 मिनट
फरीदाबाद 8 बजकर 37 मिनट
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय…
एक दंत दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय…
हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जय…
‘सूर’ श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय…
सकट चौथ व्रत में महिलाएं पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर शाम के समय भगवान गणेश की विधि विधान पूजा करती हैं। लेकिन कोई भी पूजा बिना व्रत कथा को पढ़े अधूरी मानी जाती है। यहां देखिए सकट व्रत की कथा विस्तार से...
पूजा के बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत तोड़ा जाता है। चंद्रमा को शहद, रोली, चंदन और रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दें। कुछ स्थानों पर व्रत तोड़ने के बाद महिलाएं सबसे पहले शकरकंद का प्रयोग करती हैं।
सुबह स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर गणेशजी की प्रतिमा को ईशान कोण में एक चौकी पर स्थापित कर दें। ध्यान रहे चौकी पर लाल या फिर पीला कपड़ा अवश्य बिछा दें। फिर गणेशजी की प्रतिमा पर गंगाजल छिड़क कर उनकी पूजा शूरू करें। इसके बाद रोली, अक्षत, दूर्वा और फूल चढ़ाएं। फिर पान, सुपारी और लड्डू का भोग लगाएं। इसके बाद देसी घी और धूप आदि से उनकी पूजा करें और आरती उतारें। इसे ओम गणेशाय नम: मंत्र का जप करते हुए भगवान को अर्पित करें। सकट चतुर्थी के दिन कुछ घरों में तिल और गुड़ का बकरा बनाकर उसकी बलि दी जाती है। इस दिन महिलाएं समूह में एकत्र होकर भगवान गणेश की कथा भी सुनाती हैं।
चंद्रोदय रात 8:33 पर होगा। सकट की तिथि 13 जनवरी को शाम 5:32 से शुरु होकर 14 जनवरी दोपहर 2:49 तक है।
शाम को चन्द्रोदय के बाद तिल, गुड़ आदि के जरिए पूजा की जाती है। चन्द्रमा को अर्घ्य देकर तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। शकरकंदी भी रखी जाती है। अर्घ्य और पूजा के बाद सब कथा सुनते हैं। इसके उपरांत सबको प्रसाद दिया जाता है।
सकट चौथ पर गणपति की पूजा से सारे संकट दूर हो जाते हैं. सकट चौथ का व्रत विशेष तौर पर संतान की दीर्घायु और सुखद भविष्य की कामना के लिए रखा जाता है. सकट चौथ माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ के व्रत से संतान की सारी बाधाएं दूर होती हैं. इस वर्ष सकट चौथ का पर्व 13 जनवरी को मनाया जा रहा है.
एक दिन माता पार्वती नदी किनारे भगवान शिव के साथ बैठी थीं। उनको चोपड़ खेलने की इच्छा हुई, लेकिन उनके अलावा कोई तीसरा नहीं था, जो खेल में हार जीत का फैसला करे। ऐसे में माता पार्वती और शिव जी ने एक मिट्टी की मूर्ति में जान फूंक दी और उसे निर्णायक की भूमिका दी। खेल में माता पार्वती लगातार तीन से चार बार विजयी हुईं, लेकिन एक बार बालक ने गलती से माता पार्वती को हारा हुआ और भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया। इस पर पार्वती जी उससे क्रोधित हो गईं। क्रोधित पार्वती जी ने उसे बालक को लंगड़ा बना दिया। उसने माता से माफी मांगी, लेकिन उन्होंने कहा कि श्राप अब वापस नहीं लिया जा सकता, पर एक उपाय है। संकष्टी के दिन यहां पर कुछ कन्याएं पूजन के लिए आती हैं, उनसे व्रत और पूजा की विधि पूछना। तुम भी वैसे ही व्रत और पूजा करना। माता पार्वती के कहे अनुसार उसने वैसा ही किया। उसकी पूजा से प्रसन्न होकर भगवान गणेश उसके संकटों को दूर कर देते हैं।
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 08:33 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 13, 2020 को 05:32 पी एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त – जनवरी 14, 2020 को 02:49 पी एम बजे
आज माघ माह की तृतीया तिथि है। शाम 5 बजे के बाद से चतुर्थी तिथि शुरू हो जायेगी। आज के दिन ही सकट चौथ व्रत भी रखा जा रहा है। ये व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए महिलाएं रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु और सुखी जीवन प्राप्त होता है। सकट चौथ के नाम से जाने जाने वाले इस व्रत में गणेश जी की पूजा का विधान है। इसे संकष्टी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। जानिए पंचांग अनुसार सकट पूजा का मुहूर्त और अन्य जानकारी…
एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने द्वार पर भगवान गणेश को खड़ा कर दिया और कहा कोई अंदर न आ पाए। लेकिन तभी कुछ देर बाद भगवान शिव वहां पहुंच गए तो गणेश जी ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र गणेश का यह हाल देखकर मां पार्वती बहुत दु,खी हुईं और शिव जी से अपने पुत्र को जीवित करने का हठ करने लगीं। जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया। तब से उनका नाम गजमुख , गजानन हुआ। इसी दिन से भगवान गणपति को प्रथम पूज्य होने का गौरव भी हासिल हुआ और उन्हें वरदान मिला कि जो भी भक्त या देवता आपकी पूजा व व्रत करेगा उनके सारे संकटों का हरण होगा और मनोकामना पूरी होगी।
संकष्टी चतुर्थी या संकट चौथ का व्रत संतान की लंबी उम्र व खुशहाल जीवन के लिए रखा जाता है साथ ही इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की पूजा की जाती है। माना जाता है कि सकट चौथ का व्रत व इस दिन लंबोदर की पूजा से सारे संकट दूर हो जाते हैं और संतान की दीर्घायु और सुखद जीवन का वरदान प्राप्त होता है। संकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रतुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में दो बार होता है लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की महिमा सबसे ज्यादा है।
इस व्रत में चांद के दर्शन किये जाते हैं। पूरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत रख शाम के समय भगवान गणेश की पूजा करके और चांद के दर्शन कर व्रत खोलती हैं।
चन्द्रोदय : 20:33:59 (दिल्ली में)
चन्द्रास्त : 09:20:00
आज सकट चौथ (Sakat Chauth) व्रत है। ये व्रत हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इस दिन महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। हर साल माघ मास (Magh Mas) के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ये व्रत रखा जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2020), माघी चतुर्थी, तिलकुट चौथ इत्यादि नामों से भी जाना जाता है। सकट वाले दिन भगवान गणेश की विधि विधान पूजा की जाती है। लेकिन भगवान गणेश की पूजा इस आरती को उतारे बिना मानी जाती है अधूरी…
सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई। पुजारी ने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से यह समस्या दूर हो सकती है। इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर भट्टी में डाल दिया। वह सकट चौथ का दिन था।
काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की। उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो भट्टी में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था।
इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंच पूरी कहानी बताई। इसके पश्चात राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया।
तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए व्रत को करने लगीं।
सकट चौथ सोमवार, जनवरी 13, 2020 को
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय - 08:33 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 13, 2020 को 05:32 पी एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त - जनवरी 14, 2020 को 02:49 पी एम बजे
सकट चौथ यानी संकष्टी चतुर्थी आज 13 जनवरी 2020 को शाम 05.35 से शुरू होगी। यह 14 जनवरी के दिन दोपहर 02.50 तक रहेगी। 13 जनवरी यानी सोमवार के दिन ही सुबह-शाम गणेश जी की वंदना होगी। इसी दिन रात को चांद के दर्शन के साथ पूजा कर व्रत संपन्न होगा।
सकट चौथ वास्तव में गणेश चतुर्थी जो कि साल में 4 बार पड़ती है उनमें से एक है। सकट चौथ के दिन सुहागन महिलाएं सुबह-शाम गणेशजी की पूजा करती हैं। रात में चांद के दर्शन और पूजा के पश्चात पति का आशीर्वाद लेकर ही इस व्रत को तोड़ती हैं। यह व्रत संतान की उम्र लंबी और दाम्पत्य जीवन में कोई संकट न आए इसके लिए की जाती है।
श्री महागणपति प्रणव मूलमंत्र: ऊँ ।ऊँ वक्रतुण्डाय नम: ।श्री महागणपति प्रणव मूलमंत्र: ऊँ गं ऊँ ।महाकर्णाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।।ऊँ गं गणपतये नम:।ऊँ श्री गणेशाय नम: ।ऊँ नमो भगवते गजाननाय ।ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ।
सकट के दिन ही भगवान गणेश को प्रथम पूज्य होने का गौरव हासिल हुआ था यही नहीं इसी दिन भगवान गणेश को 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। कहा जाता है कि इस दिन गणपति किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते हैं।
सकट के दिन ही भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकलकर आए थे। यही वजह है कि इसे सकट चौथ भी कहा जाता है। कहानी ये है कि एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो पहरेदारी के रूप में द्वार पर गणेश को खड़ा कर दिया। बोलीं कि किसी को अंदर नहीं आने देना। उसी वक्त भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं। जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेश गजानन कहलाए जाने लगे।
सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान गणेश और चंद्रमा की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में होता है लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की महिमा सबसे ज्यादा है।
माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विशेष माना गया है। सकट चौथ, तिलकुटा चौथ, संकटा चौथ, माघी चतुर्थी, संकष्टी चतुर्थी के नामों से भी जाना जाता है.
सकट चौथ पूरे साल में पड़ने वाली 4 बड़ी चतुर्थी तिथियों में से एक है। सकट चौथ पर सुहागन स्त्रियां सुबह-शाम गणेशजी की पूजा करती है और रात में चंद्रमा के दर्शन और पूजा करने के बाद पति का आशीर्वाद लेती हैं। इसके बाद व्रत खोला जाता है। इस तरह व्रत करने से संतान की उम्र लंबी होती है और दाम्पत्य जीवन में कभी संकट नहीं आता। शादीशुदा जीवन में प्रेम के साथ सुख भी बना रहता है। इस व्रत को करने से पति के भी सारे संकट दूर हो जाते हैं।
राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया। उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेश जी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की। दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चो का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाले संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगीं।
सकट चौथ का व्रत रखने वाली महिलाएं पूरे दिन बिना खाए पिए रहती हैं और रात के समय चंद्रमा के उदित होने के बाद उसे अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। इस दिन व्रत रख संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस व्रत की पूजा में गुड़, तिल, गन्ने और मूली का प्रयोग किया जाता है। शाम को चंद्रमा के निकलने के बाद व्रत रखने वालों को तिल, गुड़ का अर्घ्य देकर चंद्र देव की पूजा करनी होती है। इस दिन गुड़ या चीनी की चाशनी में काले तिल को मिलाकर लड्डू तैयार किया जाता है। जिसका भोग भगवान गणेश को लगाया जाता है।
इस तिथि में गणेश जी की पूजा भालचंद्र नाम से भी की जाती है। इस दिन उपवास का संकल्प लेकर व्रती प्रातः से चंद्रोदय काल तक नियमपूर्वक रहे, सांयकाल लकड़ी के पाटे पर लाल कपडा बिछाकर मिट्टी के गणेश एवं चौथ माता की तस्वीर स्थापित करें। रोली, मोली, अक्षत, फल, फूल आदि श्रद्धा पूर्वक अर्पित करें। गणेशजी एवं चौथ माता को प्रसन्न करने के लिए तिल और गुड़ से बने हुए तिलकुटे का नैवेद्य अर्पण करें ,तत्पश्चात तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें लाल चन्दन, कुश, पुष्प, अक्षत आदि डालकर चन्द्रमा को यह बोलते हुए अर्घ्य दें-'गगन रुपी समुद्र के माणिक्य चन्द्रमा ! दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम !गणेश के प्रतिविम्ब !आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए'।चन्द्रमा को यह दिव्य तथा पापनाशक अर्घ्य देकर गणेश जी कथा का श्रवण या वाचन करें।
गणपति जी का सर पर हाथ हो, हमेशा उनका साथ हो,
खुशियों का हो बसेरा, करे शुरुआत बप्पा के गुणगान से मंगल फिर हर काम हो.
सकट चौथ की शुभकामनाएं
सकट चौथ सोमवार, जनवरी 13, 2020 को
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 09:00 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 13, 2020 को 05:32 पी एम बजे से
चतुर्थी तिथि समाप्त – जनवरी 14, 2020 को 02:49 पी एम बजे तक
सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान गणेश और चंद्रमा की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में होता है लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की महिमा सबसे ज्यादा है.
इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत रखकर शाम को फलाहार लेती हैं और दूसरे दिन सुबह सकट माता पर चढ़ाए गए पूरी पकवानों को प्रसाद रूप में ग्रहण करती हैं। तिल को भूनकर गुड़ के साथ कूट लिया जाता है। तिलकुट का पहाड़ बनाया जाता है। कहीं कहीं तिलकुट का बकरा भी बनाया जाता है। उसकी पूजा करके घर का कोई बच्चा तिलकूट बकरे की गर्दन काटता है। फिर सबको उसका प्रसाद दिया जाता है। पूजा के बाद सब कथा सुनते हैं।
गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
इसके बाद भालचंद्र गणेश का ध्यान करके पुष्प अर्पित करें।
इस व्रत को निर्जला रखा जाता है। व्रत रखने वालों को सुबह सूर्योदय पहले उठकर गुड़, तिल, गन्ने और मूली का प्रयोग करते हुए भगवान गणेश की पूजा करनी होती है। इस व्रत में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसे पीले वस्त्र अर्पित किये जाते हैं। फिर पूरे दिन व्रत रखकर शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देकर ये व्रत पूरा किया जाता है। इस दिन पूजा के समय व्रत कथा को पढ़कर भगवान गणेश को गुड़ और तिल से बने लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
सकट चौथ पर गणपति की पूजा से सारे संकट दूर हो जाते हैं. सकट चौथ का व्रत विशेष तौर पर संतान की दीर्घायु और सुखद भविष्य की कामना के लिए रखा जाता है. ये व्रत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि सकट चौथ के व्रत से संतान की सारी बाधाएं दूर होती हैं. इस वर्ष सकट चौथ का पर्व 13 जनवरी को मनाया जाएगा.
सकट चौथ सोमवार, जनवरी 13, 2020 को
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 09:00 पी एम
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 13, 2020 को 05:32 पी एम बजे से
चतुर्थी तिथि समाप्त – जनवरी 14, 2020 को 02:49 पी एम बजे तक