हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के चतुर्थी तिथि के साथ गणेश उत्सव आरंभ हो जाता है, जो अनंत चतुर्दशी को गणेश जी को विदाई देने के साथ समाप्त होता है। इन 10 दिनों के दौरान भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न तरह के उपायों को अपनाते हैं। गणेश चतुर्थी के अलावा हर बुधवार के दिन गणपति बप्पा की पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्त होती है। ऐसे में भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए फूल, फूल, मोदक के साथ कई वस्तुएं चढ़ाई जाती है। गणपति को दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दूर्वा के बिना बप्पा की पूजा पूर्ण नहीं होती है। माना जाता है कि दूर्वा चढ़ाने से सभी तरह के सुख और संपदा में वृद्धि होती है। दूर्वा एक तरह की घास होती है, जो अधिकतर गार्डन, मैदान, खेतों आदि में मिल जाती है। लेकिन इसे तोड़ते समय कुछ गलतियां कर देते हैं, जिससे बप्पा रुष्ट हो जाते हैं। आइए जानते हैं दूर्वा संबंधी हर एक नियम।
इन दिन न तोड़ें दूर्वा
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि जिस तरह रविवार के दिन तुलसी तोड़ने की मनाही होती है। उसी तरह रविवार के दिन दूर्वा बिल्कुल भी नहीं तोड़ना चाहिए। इससे एक प्रकार का दोष लगता है। ऐसे में आप एक दिन पहले दूर्वा तोड़कर रख सकते हैं।
दूर्वा संबंधी नियम
- दूर्वा को कभी भी गंदी जगहों से नहीं तोड़ना चाहिए। इसे हमेशा साफ गार्डन आदि से तोड़ना चाहिए।
- दूर्वा को कभी भी उखाड़ना नहीं चाहिए, बल्कि अंगुली की मदद से तोड़ना शुभ माना जाता है।
- दूर्वा तोड़ते समय शुद्धता का पूरा ध्यान रखें। इसलिए नहा धोकर ही तोड़ने के लिए जाएं।
- दूर्वा चढ़ाने से पहरले उसे साफ पानी से अवश्य धो लेना चाहिए।
- दूर्वा को कभी भी अकेले गणपति को नहीं चढ़ाना चाहिए, बल्कि इसे जोड़े में चढ़ाना ज्यादा शुभ माना जाता है। इसलिए हमेशा दूर्वा के 21 जोड़ों को चढ़ाना चाहिए।
- दूर्वा घास क्षत-विक्षत नहीं होनी चाहिए। दूर्वा के डंठल में 3, 5 या 7 जैसी विषम संख्या में पत्ते होने चाहिए।
दूर्वा चढ़ाते समय बोलें ये मंत्र
- इदं दूर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः
- ओम् गं गणपतये नमः
- ओम् एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्
- ओम् श्रीं ह्रीं क्लें ग्लौम गं गणपतये वर वरद सर्वजन जनमय वाशमनये स्वाहा तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुंडाय धिमहि तन्नो दंति प्रचोदयत ओम शांति शांति शांतिः
- ओम् वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
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