राधिका नागरथ
तुम यंत्री हो मैं यंत्र हूं’ यह जीवन का मूल मंत्र स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने अपने जीवन में जिया था। फागुन मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जन्मे इस अवतार पुरुष ने जो वचन अपने भक्तों से कहें, कोलकाता के बौद्धिकों से जो वातार्लाप इस कमरपुकुर के साधु द्वारा हुए, उन सबको बांग्ला में रामकृष्ण कथामृत नाम से मास्टर महाशय ‘म’ ने पांच भागों में लिखा एवं प्रकाशित किया। कालांतर में वे दुनिया की अनेकों भारतीय एवं विदेशी भाषाओं जैसे स्पेनिश, फ्रेंच, जर्मन आदि में अनुवादित और प्रकाशित हुआ जिसकी लाखों प्रतियां बिकी।

रामकृष्ण परमहंस के बोल कितने सजीव और प्रभावशाली थे इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय बहुत चर्चित पत्रिका द वीक ने अपने कवर पेज पर लिखा राम कृष्णा आउट सेल्स कार्ल मार्क्स। यानी रामकृष्ण कथामृत कार्ल मार्क्स के संग्रह से भी ज्यादा बिका। रामकृष्ण मिशन मठ के प्रमुख संत स्वामी निखिलेश्वरानंद बतलाते हैं कि उस पत्रिका में छपा कि कार्ल मार्क्स के कंपलीट वर्क्स तीन साल में पूरे पश्चिम बंगाल में 2000 प्रतियां बिकी थीं लेकिन रामकृष्ण वचनामृत का 1982 में 45 दिनों में 45 लाख रुपए की बिक्री हो जाना एक विश्व रेकॉर्ड था और वह भी एक साम्यवादी कहे जाने वाले प्रदेश बंगाल में।

रामकृष्ण वचनामृत ने लाखों लोगों को आत्महत्या करने से बचाया। इस खंड के लेखक स्वयं मास्टर महाशय, जो ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्कूल में अध्यापक थे और खुद को सदा गुप्त ही रखना चाहते थे इसलिए केवल अपने नाम का ना प्रयोग करते हुए सिर्फ ‘म’ लिखते थे, वे स्वयं भी जीवन के दुखों से हताश हो, पारिवारिक कलह से परेशान, घर छोड़ आत्महत्या के विचार से निकले थे, जब रामकृष्ण देव को देखने मात्र से उनका जीवन बदल गया। रामकृष्ण वचनामृत ने करोड़ों लोगों को जीवनदान ही नहीं दिया अपितु जीवन जीने का मूल मंत्र कि सब कुछ प्रभु आप ही करवा रहे हैं, इसलिए जो हो रहा है हमारे हित में हो रहा है, शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करने का मार्ग भी बतलाया। रोजमर्रा जिंदगी की घटनाओं का दृष्टांत देते हुए वे वेदांत के गूढ़ रहस्य को सहजता से ही समझा जाते थे जिसे बहुत बड़े-बड़े विद्वान भी कहने में सक्षम नहीं थे।

पुरी के शंकराचार्य ने इस वचनामृत को शताब्दी का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ बतलाया और कहा कि इसमें सभी शास्त्रों का सार है, इसको पढ़कर सभी शास्त्रों को आसानी से समझा जा सकता है। महान साहित्यकार क्रिस्टोफर इशरवुड, फ्रांसीसी दार्शनिक रोमा रोला ने कहा कि यह इतना जीवंत ग्रंथ लिखा गया है जैसे रामकृष्ण परमहंस सामने बैठकर हम लोग से बातचीत कर रहे हो।

केशव चंद्र सेन रामकृष्ण परमहंस के बड़े तार्किक शिष्य माने जाते थे। जितने रामकृष्ण सीधे एवं सहज, उतने ही वे तार्किक और जटिल। अपने अधिकांश वार्तालाप में केशवचंद्र की यही कोशिश रहती थी कि वे सिद्ध कर सकें कि ईश्वर कहां है, उसे किसी ने नहीं देखा। एक दिन उनका तर्क इतना बढ़ गया कि शिष्यों की भीड़ इकट्ठी हो गई।

रामकृष्ण उठे और नाचने लगे और उन्हें भाव समाधि होने लगी। यह देख केशव चंद्र सेन परेशान हो गए कि वे प्रतिवाद मिले तो आगे विवाद करें। जितना केशव चंद्र सेन तर्क बनाएं उतना ही रामकृष्ण और भाव में नाचते।

आखिरकार केशव ने कहा कि अब तो आप भी मानने लगे हैं कि ईश्वर नहीं है। पर तब परमहंस ने उत्तर दिया कि तुम्हें ना देखा होता तो मान भी लेता कि ईश्वर नहीं है किंतु तुम जैसी विलक्षण प्रतिभा जहां पैदा होगी, वह ईश्वर के बिना तो हो ही नहीं सकती। अब तो पक्का विश्वास हो गया कि ईश्वर जरूर साकार रूप में भी है उन्होंने कहा, ईश्वर निराकार है वह तो प्रतिभा प्रतिभा संपन्न प्रज्ञा के रूप में ही हो सकता है। उस दिन तो केशव भीड़ से उठकर चले गए किंतु जब लौटे तो पक्के आस्तिक बनकर और वे फिर रामकृष्ण देव के ही हो कर रहे जीवन भर।

रामकृष्ण कहा करते थे जिस तरह पानी का कोई रूप नहीं है, किंतु उसको जमा देने पर वह बर्फ का आकार ले लेता है, उसी तरह ईश्वर निराकार भी है, और साकार भी। वह अपनी शक्ति द्वारा किसी भी रूप में प्रकट हो सकते हैं।